पांच हजार साल पुराने रंगों के रहस्य से उठेगा परदा, सोनभद्र की पंचमुखी पहाड़ी क्षेत्र में मिले 23 शैलाश्रय
सोनभद्र की पंचमुखी पहाड़ी के दो किलोमीटर क्षेत्र में 23 शैलाश्रय मिले हैं। इन पर इस्तेमाल हुए रंगों के रहस्य का अध्ययन बीएचयू के विज्ञानी कर रहे हैं। पांच हजार साल पुराने शैलचित्रों के रंग इतने गहरे कैसे हैं। इसको लेकर चित्रों का रासायनिक विश्लेषण भी हो रहा है। साथ ही प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग और आइआइटी बीएचयू ने शैलाश्रयों का दस्तावेजीकरण किया।
By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Tue, 29 Aug 2023 03:18 PM (IST)
वाराणसी, संग्राम सिंह। पांच हजार साल पुराने शैलचित्रों के रंग इतने गहरे कैसे हैं। प्रदूषण और पर्यावरण परिवर्तन के दुष्परिणाम झेलने के बाद भी अब तक इतने चटक क्यों हैं। इनका रहस्य उजागर करने की तैयारी है। सोनभद्र की पंचमुखी पहाड़ी के दो किलोमीटर क्षेत्र में 23 शैलाश्रय मिले हैं, इन पर इस्तेमाल हुए रंगों का अध्ययन शुरू हुआ है। चित्रों का रासायनिक विश्लेषण भी हो रहा है। शिक्षा मंत्रालय ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग और आइआइटी बीएचयू के रसायन संकाय से अध्ययन रिपोर्ट मांगी है। नई दिल्ली की संस्था भारतीय ज्ञान प्रणाली (आइकेएस) को प्रोजेक्ट की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है।
सेटेलाइट की मदद से शैलाश्रयों का सूक्ष्म दस्तावेजीकरण करने में मिली सफलता
सेटेलाइट की मदद से पहली बार शैलाश्रयों का सूक्ष्म दस्तावेजीकरण करने में सफलता मिली है। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी उपकरण से पांच सैंपल संग्रहित किए हैं। आइआइटी में डी-स्ट्रेच साफ्टवेयर द्वारा रंगों का परीक्षण हो रहा है। अगर शैलचित्रों में जैविक तत्व मिलते हैं तो तिथि निर्धारण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आइआइटी में रसायन की शोधार्थी डा. नीलम सिंह कहती हैं कि नमूनों में मिले रंगों का अध्ययन शुरू हो गया है। इसे पूरा करने के बाद रिपोर्ट मंत्रालय को भेजी जाएगी। सरकार उन रंगों का इस्तेमाल परियोजनाओं में कर सकती है।
एक ही पत्थर पर पंच शिवलिंग
बीएचयू में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. सचिन तिवारी ने बताया कि पहाड़ी में एक ही पत्थर पर पंच शिवलिंग मिले हैं। साहीजहांकला गांव स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर में इसका पूजा-पाठ हो रहा है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। एक वीर स्तंभ के अलावा यहां प्राचीन स्थापत्य खंड बिखरे पड़े हैं।गुत्थी सुलझाने में जुटे
प्रो. सचिन तिवारी ने बताया कि किन कारणों से चित्रों के रंग सुरक्षित हैं। चित्रों को बनाने के लिए किन माध्यमों व तकनीकों का प्रयोग हुआ है। इनका काल क्रम क्या है। चूंकि अभी डाटा अनुमान पर आधारित है, अब कोशिश है कि वैज्ञानिक विधि से काल क्रम का निर्धारण हो सके। भारतीय शैलकला में प्रयुक्त रासायनिक संरचना व माध्यम के लिए वर्णक का विश्लेषण किया जाना है। इसके अलावा आधुनिक जनजातीय समूहों में रंग निर्माण के पीछे के कारण और प्रौद्योगिकी व विज्ञान को स्पष्ट करना है।
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