Bindu Madhav Temple of Varanasi : विध्वंस के पूर्व पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह भव्य था बिंदु माधव मंदिर
Varanasi News बिंदु माधव का मंदिर स्वास्तिक के आकार का था। इसकी चारों भुजाएं समान थीं। एक गुंबद के ऊपर नोकदार शिखर था। मंदिर की चारों भुजाओं पर ऊंची मीनारें थीं जिन पर चढऩे के लिए बाहर सीढिय़ां थीं।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Thu, 02 Jun 2022 08:17 PM (IST)
वाराणसी, शैलेश अस्थाना : औरंगजेब ने काशी में कई मंदिर तोड़वाए। उन्हीं में से एक था पंचगंगा घाट स्थित बिंदु माधव मंदिर। श्रीकाशी विश्वेश्वर मंदिर ध्वंस के बाद उसने 1669 में ही बिंदु माधव मंदिर ध्वस्त कराकर वहां आलमगीर मस्जिद बनवा दी। यह तथ्य इतिहास में वर्णित है। ज्ञानवापी मस्जिद में कमीशन कार्यवाही के बाद अब बिंदु माधव मंदिर में पूजा-पाठ की अनुमति के लिए भी कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।
सन् 1660 में काशी आए फ्रांसीसी यात्री बर्नियर और 1665 में आए तावर्निये ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर और बिंदु माधव मंदिर की भव्यता का वर्णन अपने यात्रा वृत्तांत में किया है। तावर्निये ने तो बिंदु माधव मंदिर को पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तरह भव्य बताया है। इतिहासकार इस मंदिर को श्रीकाशी विश्वेश्वर मंदिर से भी प्राचीन बताते हैं। अतीत में यह पंचगंगा घाट से रामघाट तक विस्तारित था।इतिहासकार जे. सरकार की पुस्तक इंडिया आफ औरंगजेब टाइम्स के भाग दो पृष्ठ संख्या 230-37 के हवाले से डा. मोतीचंद ने 'काशी का इतिहास में पृष्ठ 178 पर लिखा है- 'तावर्निये के अनुसार बिंदु माधव मंदिर की ख्याति सारे हिंदुस्तान में जगन्नाथ मंदिर की तरह थी। मंदिर के प्रवेश द्वार से गंगा तक सीढिय़ां थीं और उनके बीच-बीच में अंधेरी मढिय़ां। इनमें से कुछ में तो ब्राह्मण रहते थे और कुछ में वे अपना भोजन बनाते थे।
स्वास्तिक के आकार का था मंदिर
तावर्निये ने लिखा है- 'बिंदु माधव का मंदिर स्वास्तिक के आकार का था। इसकी चारों भुजाएं समान थीं। एक गुंबद के ऊपर नोकदार शिखर था। मंदिर की चारों भुजाओं पर ऊंची मीनारें थीं, जिन पर चढऩे के लिए बाहर सीढिय़ां थीं। मीनारों के शीर्ष तक पहुंचने के मार्ग में भीतर हवा आने के लिए कई झरोखे और ताखे थे। मीनार (धरहरा) के शिखर के नीचे और मंदिर के ठीक बीच में सात से आठ फीट लंबी और पांच से छह फीट चौड़ी एक वेदिका थी। मंदिर के बाहर से मूर्तियां स्पष्ट दिखाई देती थीं। इस वेदिका के समीप स्थापित मूर्तियों में एक पांच या छह फीट की थी। कभी-कभी मूर्ति के गले में सोने अथवा माणिक, मोती अथवा पन्ने की माला भी दीख पड़ती थी। वेदिका के बाईं ओर गरुड़ की प्रतिमा थी। कहावत थी कि इस पर चढ़कर भगवान सारे संसार की सैर करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार और प्रधान द्वार के बीच एक दूसरी वेदिका पर संगमरमर की पालथी मारे एक मूर्ति प्रतिष्ठित थी।
मत्स्य पुराण से स्कंद पुराण तक है बिंदु माधव मंदिर का उल्लेखबीएचयू में प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफेसर और प्राचीन भवनों व मूर्तियों के निर्माण व स्थापत्य कला के विशेषज्ञ डा. मारुतिनंदन तिवारी बताते हैं कि पुराणों में सबसे प्राचीन मत्स्य पुराण से लेकर स्कंदपुराण तक के काशी खंड तक में बिंदु माधव मंदिर का वर्णन मिलता है। यह भगवान विष्णु का मंदिर था, जिसकी ख्याति पूरे भारत में थी।
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