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यूपी की 78 लोकसभा सीटों के लिए भाजपा ने नियुक्त किए पर्यवेक्षक, पूछे जा रहे ये प्रश्न

लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। 2019 में यूपी की अकेले 62 सीटों पर जीत दर्ज करने भारतीय जनता पार्टी 2024 लोकसभा चुनाव में महज 33 सीटों पर सिमट गई। अब इस हार के बाद भाजपा ने हार के कारण जानने के लिए यूपी की 78 लोकसभा सीटोंपर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है।

By Ashok Singh Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 24 Jun 2024 11:31 AM (IST)
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

अशोक सिंह, वाराणसी। भाजपा लोकसभा चुनाव के पहले बड़े-बड़े दावे कर रही थी। इसके बावजूद जब परिणाम आए तो सब उलटा हो गया। उत्तर प्रदेश में करारी हार के 15 दिन बाद भाजपा जागी और प्रदेश भर में पर्यवेक्षक भेजकर हार के कारणों का पता लगाया जा रहा है। संगठन के लोगों के सामने पैर के नीचे से जमीन खिसक गई और उनको पता नहीं चला। अब उन्हीं को हार का कारण पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई है।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की वाराणसी और लखनऊ सीट को छोड़कर अन्य 78 सीटों के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं। ये पर्यवेक्षक लोकसभा क्षेत्रों में जाकर विधानसभावार बैठकें कर रहे हैं। इनके द्वारा कुछ निर्धारित प्रश्न पूछे जा रहे हैं। जैसे जमीन पर कार्यकर्ता कितना सक्रिय था, बूथ मैनेजमेंट कैसा था, जनप्रतिनिधियों का जनता से कितना संपर्क रहा, पुलिस-प्रशासन, लेखपाल, बीएलओ का कार्यकर्ताओं के प्रति क्या रुख था, केद्र व राज्य सरकार की योजनाओं का असर कितना रहा, विपक्ष का भाजपा के खिलाफ आरक्षण-संविधान का प्रोपोगंडा कितना कारगर रहा, आदि।

अब सबसे हास्यास्पद बात है कि जो प्रश्न आज पूछे जा रहे हैं वह चुनाव के पहले पूछे जाते हैं। भाजपा पूरे देश में बूथ मैनेजमेंट का ढिंढोरा पीटती है जो जमीन पर कहीं था ही नहीं। तभी तो कई बूथ पर बूथ कमेटी और पन्ना प्रमुख मिलकर 25 सदस्य थे वहां पार्टी को पांच वोट मिले। कमेटी व कार्यकर्ता सक्रिय था या नहीं यह संगठन को पता ही नहीं। वर्षों से ए, बी और सी श्रेणी बूथों पर अलग-अलग ढंग से मेहनत की बात कागजों पर चल रही थी। नीचे से ऊपर तक हर स्तर पर छलावा हो रहा था। इतना ही नहीं, जनप्रतिनिधि के जनता और कार्यकर्ता से लगाव की पड़ताल तो टिकट वितरण के पूर्व होती है।

तब न तो संगठन को पता था न ही पता करने की कोशिश हुई। तब तो पार्टी अतिआत्मविश्वास में थी कि मोदी के नाम पर सब जीत जाएंगे। जनता तो वर्षों से चिल्ला रही है कि पुलिस, प्रशासन, लेखपाल, तहसीलदार सब बेलगाम हैं। कार्यकर्ताओं की इतनी भी हैसियत नहीं कि इंश्योरेंस फेल हो चुकी बाइक को पुलिस रोक ले तो उसे छुड़ा सकें। पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि कार्यकर्ता के फंसने पर कानून समझाते हैं।

जिम्मेदार नहीं बताएंगे असली कारण

लोकसभावार पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट प्रदेश और प्रदेश राष्ट्रीय नेतृत्व को देगा। पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रदेश स्तर की एक महिला नेता चार महीने से वाराणसी में डेरा डाली थीं। उनको जमीनी हकीकत ही नहीं पता चली। वह दूसरे लोकसभा में हार का कौन कारण निकाल लेंगी। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिम्मेदार असली कारण पार्टी हाईकमान को क्यों बताएंगे। वह सच बताएंगे तो खुद ही कार्रवाई के दायरे में आ जाएंगे। जानकार बताते हैं कि यह स्थिति 2022 चुनाव में ही थी। वो तो पार्टी जीत गई और सब छिप गया।

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