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Varanasi: रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ काशी की बेटियों ने कराया यज्ञोपवीत संस्कार

Varanasi यज्ञोपवीत जिसे हमें सामान्यतः जनेऊ के नाम से जानते हैं। यह कोई महज साधारण धागा नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म में इसके साथ कई विशेष मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आमतौर यज्ञोपवीत संस्कार बालकों का होता है लेकिन वाराणसी में इसी रूढ़िवादी परंपराओं को बेटियों ने तोड़ा है। हीं काशी में बसंत पंचमी पर बुधवार को यज्ञोपवीत संस्कार करा कर पांच बेटियों ने रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ने का कार्य किया।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Thu, 15 Feb 2024 12:07 PM (IST)
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राजसूत्र पीठ की ओर से बालिकाओं का हुआ यज्ञोपवीत संस्कार

जागरण संवाददाता, वाराणसी। आमतौर यज्ञोपवीत संस्कार बालकों का होता है। बालिकाओं का यज्ञोपवीत संस्कार सुनने वाले के लिए अचरज में होना स्वाभाविक है। वहीं काशी में बसंत पंचमी पर बुधवार को यज्ञोपवीत संस्कार करा कर पांच बेटियों ने रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ने का कार्य किया।

शिवपुर स्थित ऋषिव वैदिक अनुसंधान केंद्र में पांच बेटियों समेत 12 बच्चों का सामूहिक उपनयन संस्कार हुआ। बीएचयू के सेवानिवृत्त आचार्य व प्रकांड विद्वान भक्तिपुत्र रोहतम ने बच्चों यज्ञोपवीत संस्कार में कराया।

बेटियां हुईं शामिल

भक्तिपुत्र रोहतम ने बताया कि वेदों में कन्या उपनयन संस्कार के बाद शिक्षा ग्रहण करके ही योग्य वर का चयन करने की बात लिखी गई है। राजसूत्र पीठ के संस्थापक ट्रस्टी रोहित सिंह, रोहित सिंह बताया कि ग्रीष्म अवकाश के समय 101 बच्चों का पुन सामूहिक यज्ञपावीत संस्कार आयोजित किया जाएगा। इसमें 50 प्रतिशत बेटियों को शामिल करने का लक्ष्य है।

क्या है यज्ञोपवीत संस्कार

यज्ञोपवीत, जिसे हमें सामान्यतः जनेऊ के नाम से जानते हैं। यह कोई महज साधारण धागा नहीं है, बल्कि हिन्दू धर्म में इसके साथ कई विशेष मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि तपस्वियों, सप्त ऋषि तथा देवगणों ने कहा है कि यज्ञोपवीत ब्राह्मण की शक्ति है। ब्राह्मणों का यह आभूषण स्वर्ण या मोतियों का बना हुआ नहीं है, ना ही यह मोतियों से बना हुआ है। साधारण धागे से बने हुए इस पवित्र यज्ञोपवीत के माध्यम से ही देवता, ऋषियों और पितृ का ऋण चुकाया जाता है।

ज्ञोपवीत धारण करने के नियम

  • जन्म सूतक, मरण सूतक, मल−मूत्र त्यागते समय कान पर यज्ञोपवीत चढ़ाने में भूल होने के प्रायश्चित में उपाकर्म से, चार मास तक पुराना हो जाने पर, कहीं से टूट जाने पर जनेऊ उतार देना चाहिए।
  • उतारने पर उसे जहां तहां नहीं फेंक देना चाहिए, वरन किसी पवित्र स्थान पर नदी, तालाब या पीपल जैसे पवित्र वृक्ष पर विसर्जित करना चाहिए।
  • बाएं कंधे पर इस प्रकार धारण करना चाहिए कि बाएं पार्श्व की ओर न रहे। लंबाई इतनी होनी चाहिए कि हाथ लंबा करने पर उसकी लंबाई बराबर बैठे।
  • कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि ब्राह्मण बालक का 5 से 8 वर्ष तक की आयु में, क्षत्रिय का 6 से 11 तक, वैश्य का 8 से 12 वर्ष तक की आयु में यज्ञोपवीत करा देना चाहिए।
  •  ब्राह्मण का वसंत ऋतु में, क्षत्रिय का ग्रीष्म में और वैश्य का उपवीत शरद ऋतु में होना चाहिए। ब्रह्मचारी को एक तथा गृहस्थ को दो जनेऊ धारण करना चाहिए क्योंकि गृहस्थ पर अपना तथा धर्मपत्नी दोनों का उत्तरदायित्व होता है।

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