Coronavirus के इलाज में कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी ने दुनिया में जगा रखी है आस
अब तक के वैज्ञानिक अध्ययन में यह सामने आया है कि कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी कोरोना संक्रमण के उपचार में निर्णायक साबित हो सकता है।
By Edited By: Updated: Sun, 12 Apr 2020 09:37 AM (IST)
वाराणसी, जेएनएन। अब तक के वैज्ञानिक अध्ययन में यह सामने आया है कि कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी कोरोना संक्रमण के उपचार में निर्णायक साबित हो सकता है। इसके बारे में कई जर्नल में शोध प्रकाशित हैं। चीन, अमेरिका सहित कई देशों में क्लीनिकल ट्रायल चल रहा। मगर क्या ये थेरेपी वाकई में इतनी कारगर है कि कोरोना को हराने में अहम साबित हो सकती है। देश-दुनिया में इस पर किए जा रहे दावों पर चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित मॉलीक्यूलर बॉयोलाजी यूनिट के विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीत कुमार सिंह से दैनिक जागरण संवाददाता ने बातचीत की।
सवाल : कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी क्या है।जवाब : जब कोई वायरस शरीर में पहुंचता है तो प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें समाप्त करने को कई तरह की एंटी बॉडीज बनाने लगती है। यह एंटी बॉडीज कई तरह की होती है। इनमें कुछ न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज होते हैं, जो संबंधित वायरस के खिलाफ बिल्कुल विशिष्ट होते हैं। न्यूट्रीलाइजिंग एंटी बॉडी वायरस नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संक्रामक बीमारी से स्वस्थ हुए व्यक्ति का सीरम लेकर गंभीर मरीज में चढ़ाने की प्रक्रिया को ही कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी कहते हैं।
सवाल : इसमें किन बातों का ध्यान रखा जाता है।जवाब : कन्वालीसेंट सीरम थेरेपी में डोनर से सीरम लेने के बाद यह टेस्ट होता है कि उसमें पाई जाने वाली न्यूट्रीलाइजिंग एंटी बाडी वायरस के खिलाफ कितनी प्रभावी है। इसके बाद मरीज की दशा मसलन धमनी में ऑक्सीजन का अनुपात, रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा, प्रति मिनट श्वसन तंत्र आवृत्ति आदि का ध्यान रखा जाता है। यह प्रक्रिया विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में ही संपन्न की जाती है।
सवाल : किस तरह डोनर का निर्धारण होता है।जवाब : सबसे पहले यह देखा जाता है कि डोनर संक्रामक बीमारी से कितने दिन पहले ठीक हुआ। डोनर की सहमति के बाद चिकित्सक तय करता है कि वह रक्त दे पाएगा कि नहीं। रक्त परीक्षण करना होता है कि उसमें कोई वायरस रह तो नहीं गया।सवाल : एंटीबॉडी टाइटर क्या है।जवाब : एंटीबॉडी जो बीमारी के खिलाफ बनी है, उसकी न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडी (एंटीबॉडी टाइटर) काउंट को देखा जाता है। गंभीर मरीज को चढ़ाए जाने वाले सीरम में यह 1:320 से अधिक होना चाहिए।
सवाल : यह थेरेपी कितनी कारगर है।जवाब : अभी इस थेरेपी को पूरी तरह अमल में नहीं लाया गया है, लेकिन इसके सकारात्मक परिणाम इस बात को पुष्ट करते हैं कि गंभीर मरीजों के इलाज में यह विधि अपनाई जा सकती है। अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने अपने यहा इंवेस्टीगेशनल ड्रग रेगुलेटरी पाथवे (21सीएफआर312) के तहत इसकी स्वीकृति दी है। अभी तक गंभीर मरीजों के इलाज में इसे ट्रायल स्तर पर रखा गया है। अमेरिका के अलावा चीन में भी इसका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।
सवाल : इसमें किस तरह की दिक्कतें हैं।जवाब : इसमें कई तरह की चीजों की स्टडी करनी होती है। डोनर को लेकर आश्वस्त होना होता है कि उसके भीतर वायरस रह तो नहीं गया है। पीसीआर (पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) टेस्ट करके देखना होता है कि शरीर में वायरस का आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) तो नहीं रह गया। सार्स कोरोना वायरस (2003), एच1एन1 इंफ्लुएंजा (2009) व मार्स कोरोना वायरस (2012) के संक्रमण के दौरान इसके क्लीनिकल ट्रायल के दौरान कुछ केस में सकारात्मक प्रभाव देखे गए थे। यह विशेषज्ञों की देखरेख में ही संभव है, क्योंकि कई केस में इम्यूनोलॉजिकल रिस्पास नकारात्मक भी मिले थे।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।