Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की दलीलों से सहमत नहीं हुई अदालत, कहा- पूरी संपत्ति अनादि काल से देवता में निहित

varanasi gyanvapi masjid Case ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में पांच महिलाओं की ओर से दाखिल मुकदमे को सुनवाई योग्य न बताकर खारिज करने की मांग करने वाली अंजुमन इतेजामिया मसाजिद के प्रार्थना पत्र को अदालत ने खारिज कर दिया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 11:51 PM (IST)
Hero Image
वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की दलीलों से सहमत नहीं हुई अदालत

जागरण संवाददाता, वाराणसीः ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में पांच महिलाओं की ओर से दाखिल मुकदमे को सुनवाई योग्य न बताकर खारिज करने की मांग करने वाली अंजुमन इतेजामिया मसाजिद के प्रार्थना पत्र को अदालत ने खारिज कर दिया। आदेश में जिला जज ने कहा कि प्रतिवादी संख्या चार (अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद) वादी के वाद को पूजा स्थल प्लेसेज आफ वार्शिप एक्ट 1991, वक्फ अधिनियम 1995 और यूपी श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 से बाधित होना साबित नहीं कर सका है। इसलिए उनके उस आवेदन जिसमें बताया गया है कि मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है खारिज करने योग्य है।

26 पेज के आदेश में जिला जज ने पोषणीयता (मुकदमा सुनने योग्य है या नहीं) पर दोनों पक्षों की ओर से हुई बहस के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया है। बताया कि भूखंड संख्या 9130 (विवादित स्थल) पर मौजूद मस्जिद में 600 वर्षों से मुसलमान नमाज अदा करते रहे हैं। पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 में यह प्राविधान है कि पूजा स्थल उसी स्थिति में रहेंगे जिसमें वे 15 अगस्त 1947 को थे।

यह एक वक्फ संपत्ति है और इसे संख्या 100 (वाराणसी) यूपी की संपत्ति के रूप में। इस पर वादी उस भूखंड पर मस्जिद नहीं है पूरी संपत्ति अनादि काल से देवता में निहित है। यहां मंदिर रहा है। उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के अनुसार यूपी राज्य विधानमंडल ने मंदिर की परिभाषा के तहत ज्योतिर्लिंग के अस्तित्व को मान्यता दी है जो विवादित ढांचे के नीचे मौजूद है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या के मामले में बताया है कि एक उपासक किसी देवता के हितों की रक्षा के लिए मुकदमा कर सकता है। वादी पक्ष ने कहा कि बिना किसी लिखित आदेश के वर्ष 1993 में मां शृंगार गौरी का दर्शन-पूजन रोक दिया गया। वादी पक्ष ने डा. एम इस्माइल फारूकी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तर्क दिया कि मस्जिद किसी प्रथा का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। मुसलमानों द्वारा नमाज कहीं भी, यहां तक कि खुले में भी पढ़ी जा सकती है। वहीं प्रतिवादी ने तर्क दिया कि दीन मोहम्मद और अन्य बनाम राज्य के सचिव के केस में अदालत ने माना कि है ज्ञानवापी मस्जिद और आंगन के नीचे की जमीन मुस्लिम वक्फ़ है।

रामजानकी देवता बनाम बिहार राज्य सरकार केस का हवाला

वादी पक्ष के वकील ने राम जानकीजी देवताओं और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य 1999 (5) मुकदमे के फैसले का का भी हवाला दिया। इसमें यह माना गया था कि मंदिर बनाने के लिए यह पर्याप्त है यदि यह सार्वजनिक धार्मिक पूजा का स्थान है और अगर लोग इसकी धार्मिक प्रभावकारिता में विश्वास करते हैं। भले ही कोई मूर्ति हो या कोई संरचना या अन्य सामग्री है। यह पर्याप्त है अगर भक्तों या तीर्थ यात्रियों को लगता है कि कोई अलौकिक शक्ति है जिसकी उन्हें पूजा करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।

रामजन्म भूमि मंदिर केस की चर्चा

वादी पक्ष ने एम सिद्दीक (राम जन्मभूमि मंदिर) बनाम सुरेश दास (2020) केस का भी हवाला दिया। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि हिंदू दर्शन में देवत्व निर्बाध, सार्वभौमिक और अनंत है। जिस स्थान पर पूजा होती वह स्थान भगवान का होता है। वहीं बीके मुखर्जी के हिंदू ला की चर्चा कि जिसमें बताया गया है कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान छवि को एक जीवित प्राणी के रूप में माना जाता है।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर