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Gyanvapi Masjid case : 'आर्डर 7 रूल 11' पर अदालत ने लिया फैसला, मुकदमे की सुनवाई की राह तय, जानें...

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अदालत को आर्डर 7 रूल 11 पर फैसला लिया है। इस बाबत मुकदमे की सुनवाई का भविष्‍य भी तय हो गया है। अदालत ने मुस्लिम पक्ष का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 04:19 PM (IST)
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ज्ञानवापी मामले में अदालत को सुनवाई करने के अधिकार पर फैसला ले लिया।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। 'आर्डर 7 रूल 11' पर अदालत को फैसला ले लिया  है। इस नियम के तहत अदालत ने मुस्लिम पक्ष का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया है। मुकदमा खारिज होने के साथ ही इससे जुड़े सभी मामलों की सुनवाई में बड़ा मोड़ आ गया है। अदालत ने सुनवाई जारी रखने का फैसला लिया है तो ज्ञानवापी मस्जिद के भविष्‍य को लेकर अदालती कार्रवाई अब आगे भी जारी रहेगी।

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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी प्रकरण में आज मुकदमे की पोषणीयता पर फैसला लिया है। इसमें अदालत ने तय किया कि पांच महिलाओं की ओर से दाखिल मुकदमा सुनने योग्य है। महिलाओं ने अदालत में दाखिल प्रार्थना पत्र में ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन के साथ वहा मौजूद दृश्य अदृश्य देवी देवदाओं की प्रतिमाएं व चित्र आदि को सुरक्षित रखने की मांग की थी।

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प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद ने वाद को जनहित याचिका जैसा व प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट, ज्ञानवापी को वक्फ संपत्ति समेत अन्य दलीलों के साथ मुकदमे को सुनने योग्य नहीं बताया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश्व की अदालत में आर्डर 7 रूल नंबर 11 (पोषणीयता) पर सुनवाई हो रही है। आसान भाषा में समझा जाए तो इसके तहत कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के बजाए सबसे पहले ये तय किया जाता है कि क्या याचिका सुनवाई करने लायक है भी या नहीं।

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इसके अलवा जो राहत की मांग याचिकाकर्ता की ओर से मांगी जा रही थी, क्या उसे कोर्ट द्वारा दिया भी जा सकता है या नहीं। रूल 7 के तहत कई वजह है, जिनके आधार पर कोर्ट शुरुआत में ही याचिका को खारिज कर देता है। अगर याचिकाकर्ता ने वाद को दाखिल करने की वजह स्पष्ट नही की हो या फिर उसने दावे का उचित मूल्यांकन न किया हो या उसके मुताबिक कोर्ट फीस न चुकाई गई हो। इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण आधार है वो है कि कोई कानून उस मुकदमे को दायर करने से रोकता हो तो अदालत उसे खारिज कर सकती थी।

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