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Dala Chhath 2020 : सूर्य उपासना पर्व की तैयारी शुरू, 18 से 21 तक चार दिवसीय आयोजन

संतान प्राप्ति पुत्रों के दीर्घजीवी व यशस्वती होने की मनोकामना पूर्ति के लिए सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ कार्तिक मास शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी यानी 18 नवंबर से प्रारंभ होकर 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देकर समापन होगा।

By saurabh chakravartiEdited By: Updated: Mon, 16 Nov 2020 05:21 PM (IST)
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18 नवंबर से प्रारंभ होकर 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देकर समापन होगा।

वाराणसी, जेएनएन। संतान प्राप्ति, पुत्रों के दीर्घजीवी व यशस्वती होने की मनोकामना पूर्ति के लिए सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ कार्तिक मास शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी यानी 18 नवंबर से प्रारंभ होकर 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देकर समापन होगा। चार दिवसीय इस पर्व की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। घरों में साफ-सफाई के साथ खरीदारी शुरू कर दिया है। जिसके चलते बाजारों में चहल-पहल बढ़ गई है। नदियों व तालाबों के किनारे पूजन स्थलों को साफ किया जा रहा है। पर्व पर शामिल होने के लिए मुंबई, दिल्ली, गुजरात, कोलकाता आदि महानगरों से बड़ी संख्या में परदेशी घर को लौट रहे हैं। जिसके चलते ट्रेनों व बसों में भीड़ बढ़ गई है।

डाला छठ व्रत का प्रसाद

डाला छठ व्रत का मुख्य प्रसाद ठेकुआ है। यह गेहूं का आटा, गुड़ और देशी घी से बनाया जाता है। प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर पकाया जाता है। ऋतु फल में नारियल, केला, पपीता, सेब, अनार, कंद, सुथनी, गागल, ईख, ङ्क्षसघाड़ा, शरीफा, कंदा, संतरा, अनन्नास, नींबू, पत्तेदार हल्दी, पत्तेदार अदरक, कोहड़ा, मूली, पान, सुपारी, मेवा आदि का सामथ्र्य के अनुसार गाय के दूध के साथ अर्घ्‍य दिया जाता है। यह दान बांस के दऊरा, कलसुप नहीं मिलने पर पीतल के कठवत या किसी पात्र में दिया जा सकता है।

बंद कमरे में व्रती करते हैं खरना का प्रसाद ग्रहण

नहाय-खाय के दूसरे दिन सभी व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। सुबह से व्रत के साथ इसी दिन गेहूं आदि को धोकर सुखाया जाता है। दिन भर व्रत के बाद शाम को पूजा करने के बाद व्रती खरना करते हैं। इस दिन गुड़ की बनी हुई चावल की खीर और घी में तैयार रोटी व्रती ग्रहण करेंगे। कई जगहों पर खरना प्रसाद के रूप में अरवा चावल, दाल, सब्जी आदि भगवान भाष्कर को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा केला, पानी सिंघाड़ा आदि भी प्रसाद के रूप में भगवान आदित्य को भोग लगाया जाता है। खरना का प्रसाद सबसे पहले व्रती खुद बंद कमरे में ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है।

चार दिवसीय उपासना का पर्व

18 नवंबर को नहाय खाय

19 नवंबर को खरना

20 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य

21 नवंबर को उदयाचल सूर्य को अघ्र्य

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