दीप ज्योति पर्व: दक्षिण भारत से पहुंची देशी-विदेशी फूलों की खेंप, विश्वनाथ धाम की सज्जा आरंभ
महादेव के शहर काशी में दीप ज्योति पर्व की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। यहां सजावट के लिए दक्षिण भारत से देशी-विदेशी फूलों की खेप मंगाई गई है। इससे विश्वनाथ धाम की सजावट शुरू हो गई है। षष्ठदिवसीय (छह दिन) उत्सव में होंगे। इसमें धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम धनतेरस से अन्नकूट तक भव्य आयोजन होगा। इन सबके अलावा यहां की आतिशबाजी देखने लायक होगी।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। इस बार षष्टदिवसीय दीप ज्योति पर्व के लिए श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में तैयारियां आरंभ हो गई हैं। दक्षिण भारत से कई क्विंटल देशी-विदेशी फूलों की खेप बाबा दरबार पहुंची और साथ में अनेक सज्जा कलाकार भी। सबने पहुंचते ही बाबा के दरबार की साज-सज्जा का कार्य बुधवार से आरंभ कर दिया।
आंध्र प्रदेश के एक भक्त बाबूलाल ने ने बाबा दरबार सजाने का दायित्व लिया है। वह फूलों व पुष्प सज्जा के अंतरराष्ट्रीय व्यवसायी हैं। अनेक प्रकार के देशी-विदेशी पुष्पों से बाबा धाम का पूरा परिसर सजाया जा रहा है। दीपोत्सव के पूर्व बाबा विश्वनाथ का दरबार विविध प्रकार पुष्पों से सजकर महमह हो उठेगा।
एसडीएम शंभूशरण ने बताया कि इस बार षष्टदिवसीय दीप ज्योति पर्व अपूर्व होगा। बाबा दरबार में पूरे छह दिन तक विविध धार्मिक-सांस्कृतिक अनुष्ठान किए जाएंगे। धनतेरस के दिन से ही बाबा धाम स्थित मां अन्नपूर्णा का दरबार भव्यतम रूप में आ जाएगा।
मां भक्तों पर दोनों हाथों से दो दिनों तक अपना खजाना लुटाएंगी तो दीपावली के दिन दीपमालिकाओं से बाबा का परिसर जगमगा उठेगा। अन्नकूट के दिन लगभग 14 क्विंटल मिष्ठान्न व अन्य कुल 56 प्रकार के व्यंजनों से मां अन्नपूर्णा व बाबा विश्वनाथ को भोग लगाया जाएगा। दीपावली के दिन विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन मंदिर चौक में किया जाएगा।
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मंदिर में बनेंगी मिठाइयां-नमकीन तो बाहर से भी आएंगी
अन्नकूट महोत्सव पर 56 भोग के लिए 14 क्विंटल मिठाइयों व अन्य व्यंजनों का चढ़ावा अनुमानित है। इसके लिए अनेक प्रकार की मिठाइयां जैसे अनेक प्रकार के लड्डू व अनेक प्रकार की नमकीन, मठरी आदि मंदिर प्रशासन स्वयं बनवाएगा जबकि अन्य मिठाइयां काशी की विभिन्न विश्वसनीय दुकानों से भी आएंगी।
दीप ज्योति पर्व इस बार छह दिवसीय, दो दिनी अमावस्या के चलते वृद्धिदीप ज्योति पर्व इस बार छह दिवसीय होगा। अमावस्या दो दिन होने से यह अवसर उपलब्ध हुआ है। उत्सवी शृंखला का आरंभ मंगलवार 29 अक्टूबर को धनतेरस व भगवान धन्वंतरि जयंती के साथ होगा। तीन नवंबर रविवार को गोवर्धन पूजा, भैया दूज, भगवान चित्रगुप्त पूजा (कलम-दवात पूजा) के साथ समापन होगा।
धनतेरस पर सुख-समृद्धि, आरोग्य संग ऋणमाेचक संयोग कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मां लक्ष्मी व कुबेर की कृपा प्राप्ति के लिए धनतेरस व आरोग्य के लिए आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाई जाती है। तिथि विशेष पर प्रदोष काल में लक्ष्मी-कुुबेर की पूजा-आराधना की जाती है।धन-संपदा, बर्तन, गहने व गृहोपयोगी अन्य वस्तुएं खरीदी जाती हैं। त्रयोदशी मंगलवार को होने से भौम प्रदोष का संयोग बन रहा है। भौम प्रदोष व्रत व प्रदोष काल में भगवान शिव व हनुमानजी की पूजा-आराधना संग हनुमान जी को चतुर्मुखी दीपक जलाने से ऋणमुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
पियरी क्षेत्र में झालर व बत्ती की लगी दुकान। जागरण
नरक चतुर्दशी व श्रीहनुमत जन्मोत्सव कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक निवारण चतुर्दशी मनाई जाती है। इसी दिन मेष लग्न में भगवान हनुमान का जन्म होने से लग्न काल में हनुमत जन्मोत्सव मनाते हैं। 30 अक्टूबर बुधवार को चतुर्दशी तिथि में मेष लग्न शाम 4:54 बजे से 6:31 बजे तक है। चतुर्दशी तिथि 31 अक्टूबर गुरुवार को दोपहर 3:12 बजे तक होने से दूसरे दिन भी भगवान हनुमान का जन्मोपरांत दर्शन-पूजन का सुअवसर मिलेगा। नरक निवारण चतुदर्शी पर नरक यातना से मुक्ति के लिए यम के नाम दीपदान की प्रथा है।प्रदोष काल में घर के बाहर चतुर्मुखी दीपक जलाया जाता है। दीपमालिका, लक्ष्मी-काली पूजन का पर्व दीपावली दीप ज्योति पर्व शृंखला का मुख्य आयोजन कार्तिक अमावस्या पर दीपावली के रूप में मनाते हैं। दीपमाला सजा कर श्रीसमृद्धि की देवी मां लक्ष्मी, भगवान गणेश व मां सरस्वती का पूजन करते हैं। भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी का प्रसंग भी पर्व से जुड़ने से आतिशबाजी की जाती है। इसे भी पढ़ें- एक घंटे में प्रयागराज से पहुंचें मिर्जापुर, बनेंगे पांच एलिवेटेड फ्लाईओवरअमावस्या 31 अक्टूबर गुरुवार को 3.13 बजे से अगले दिन एक नवंबर को 5:13 बजे तक है। प्रदोषकालीन व निशीथव्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को होने से पर्व इसी दिन मनाया जाएगा। पितरों को दीप दर्शन व काली पूजा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार सायंकाल दीपमाला सजा, मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना कर दोनों हाथों में दीपक लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को दीप दर्शन कराने का विधान है। इंडक्शन के लिए कढ़ाई, कूकर आदि बर्तन। जागरण
मान्यता है कि पितृपक्ष में आए पितृगण अपने-अपने स्वलोक को गमन करें और उनका मार्ग आलोकित हो। मार्ग आलोकन से प्रसन्न हो पितृगण वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसके पश्चात मंदिरों में भी दीपदान करना चाहिए। अर्धरात्रि उपरांत दरिद्र निस्तारण की परंपरा है। तंत्र साधना अनुगामी अर्धरात्रि में महाकाली पूजा करते हैं। बंगीय समाज भी काली पूजनोत्सव मनाता है। स्नान-दान की अमावस्या उदयातिथि में अमावस्या एक नवंबर को मिल रही जो शाम 5:13 बजे तक रहेगी। ऐसे में स्नान-दान की अमावस्या एक नवंबर को होगी। परेवा मान व अन्नकूट दो नवंबर को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि में दो नवंबर को परेवा काल में शुभ कार्य व यात्रा का निषेध है। उसी दिन अन्नकूट महोत्सव होता है।मां अन्नपूर्णा व भगवान विश्वनाथ दरबार सहित देवालयों में महिलाएं नवान्न कूट, अन्नकूट महोत्सव मनाती हैं। इष्टदेवों को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। गोवर्धन पूजा, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजा, यमुना स्नान तीन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए की गई गोवर्धन पूजा में गो व गोवंश-पूजा, भैया दूज, भगिनी गृह भोजन, बहन के साथ यमुना स्नान के पर्व इस दिन होते हैं। कायस्थ व लेखनीजीवी समुदाय समस्त बौद्धिक कर्मों के आदि प्रणेता भगवान चित्रगुप्त व आजीविका के साधन कलम-दवात की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
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मान्यता है कि पितृपक्ष में आए पितृगण अपने-अपने स्वलोक को गमन करें और उनका मार्ग आलोकित हो। मार्ग आलोकन से प्रसन्न हो पितृगण वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसके पश्चात मंदिरों में भी दीपदान करना चाहिए। अर्धरात्रि उपरांत दरिद्र निस्तारण की परंपरा है। तंत्र साधना अनुगामी अर्धरात्रि में महाकाली पूजा करते हैं। बंगीय समाज भी काली पूजनोत्सव मनाता है। स्नान-दान की अमावस्या उदयातिथि में अमावस्या एक नवंबर को मिल रही जो शाम 5:13 बजे तक रहेगी। ऐसे में स्नान-दान की अमावस्या एक नवंबर को होगी। परेवा मान व अन्नकूट दो नवंबर को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि में दो नवंबर को परेवा काल में शुभ कार्य व यात्रा का निषेध है। उसी दिन अन्नकूट महोत्सव होता है।मां अन्नपूर्णा व भगवान विश्वनाथ दरबार सहित देवालयों में महिलाएं नवान्न कूट, अन्नकूट महोत्सव मनाती हैं। इष्टदेवों को 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। गोवर्धन पूजा, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजा, यमुना स्नान तीन को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए की गई गोवर्धन पूजा में गो व गोवंश-पूजा, भैया दूज, भगिनी गृह भोजन, बहन के साथ यमुना स्नान के पर्व इस दिन होते हैं। कायस्थ व लेखनीजीवी समुदाय समस्त बौद्धिक कर्मों के आदि प्रणेता भगवान चित्रगुप्त व आजीविका के साधन कलम-दवात की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।