ई हौ रजा बनारस--- काशी के डोमराजा : गर्दिश में सितारे
वाराणसी : 'हमहन क पुरखा पुरनिया कब्बों चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र के खरीदले रहलन बस एक ठे
By JagranEdited By: Updated: Wed, 04 Apr 2018 10:44 AM (IST)
वाराणसी :
'हमहन क पुरखा पुरनिया कब्बों चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र के खरीदले रहलन बस एक ठे आन के भरोसे कुनबा क सम्मान बचल हौ भइया, वरना तोहरे सामने सारा हाल हौ, अइसन तमाचा पड़ल हौ वक्त क कि काशी के डोमराजा के सामने जीये-मरे क सवाल हौ।' गंगा किनारे मीरघाट के शेर वाली कोठी के बइठके में पलंगगिरी पर नंगे बदन बैठे डोमराज परिवार के प्रतिनिधि जगदीश चौधरी की आंखें छलक पड़ती हैं अपनी व्यथा-कथा को साझा करते हुए। रूंधे गले से अतीत की यादों को छेड़ते हुए चौधरी कहते हैं कि 'वक्त के अंधड़ में सब बिला गयल भइया। कब्बों बग्घी आउर पालकी क सवारी करे वाले आज पैदल चप्पल घिसरावत हउवन। दुई जून के रोटी बदे दिहाड़ी पर जवानी खपावत हउवन। बाऊ (अंतिम डोमराजा स्व. कैलाश चौधरी)' के जमाने तक रंग-पानी सब बनल रहल। मणिकर्णिका महाश्मशान पर डोमराजा क पताका तनल रहल। ओनके मरते कइसे सब कुछ मुठ्ठी के बालू मतिन फिसलत चल गयल, कुछ पते नाहीं चलल।' बताते हैं कि किस तरह परिवार की बढ़ती के साथ शवदाह के पालियों की संख्या बंटती चली गई। रही-सही कसर प्रशासन ने अग्निदान शुल्क के नियमन से पूरी कर दी। मणिकर्णिका के जिस घाट पर कभी डोमराजा की समानांतर सत्ता चलती थी, उसी घाट पर अब लकड़ी के दबंग ठेकेदारों और उनके का¨रदों का हुकुम चलता है। कहते हैं चौधरी 'पहिले लकड़ी गिरावे से लेके चिता सजावे आउर मुर्दा जरावे तक क जिम्मेदारी हमहनें (डोमराजा कुनबा) उठावत रहली, अब ठेकेदारन क दलाल मनमानी पर उतारू हउवन। डोमराजा अब डोमवा क पदवी पावत हउवन। खटनी के अस्सी ठे रुपल्ली बदे दलालन के आगे हाथ फइलावत हउवन।' चौधरी परिवार के ही एक और सदस्य बेटू चौधरी परिवारों की संख्या में बढ़ोत्तरी तथा विकल्पों के अभाव को इस बदहाली का जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है, जहां पहले एक रुपइया में दुई जने खात रहलन, उहां अब ओही एक ठे रुपइया, बीस ठे मुंह क साझेदारी हव। तब 'कर' के नकदी के अलावा सोना-चानी, अनाज, जगह, जमीन क दान भी मिलत रहल। अब सरकारी रेट ढाई सौ रुपइया के सब झंड हव। लोगन क 'सरधा' खतम हो गयल त जौन डोमराजा तब शंकरजी क अवतार रहलन अब बुरबक हव बक.. हव। जगदीश चौधरी की मानें तो पूरी बिरादरी में नौजवानों की तफरी अब हजार के ऊपर जा रही है। सबकी जवानी इसी पैतृक पैसे में खपी जा रही है। आंगन में गइया की सेवा कर रहीं कैलाश चौधरी की चौधरानी सारंगा देवी वहीं से वार्ता में शामिल हो जाती हैं। कहती हैं पाली क ई हाल हव कि शेर कोठी के जिम्मे महीने में चार दिन क पाली हव, बाकी दिन ठन्न-ठन्न कंगाली हौ। तोहीं बतावा भइया, अब चार दिन क कमाई हजार रुपइया में 'डोमवा' नहाए का निचोड़े का। चूल्हा जरावे बदे कउने देवी-देवता क हाथ जोड़े। इस विभीषिका का एक और बड़ा कारण शिक्षा का अभाव भी है। अपवादों को छोड़ दें तो डोम परिवार के किसी सदस्य ने शायद ही कभी स्कूल या कालेज का मुंह देखा हो। दरवाजे सटी खड़ी परिवार की बिटिया रागिनी को मलाल है कि दो-चार जमातों के बाद उसकी पढ़ाई छोड़वा दी गई। यह बोलते वक्त कि पहले स्कूल जात रहली, उसके चेहरे पर दुनिया भर की उदासी घिर आती है। लालू-शालू की उम्र ने अभी कैशौर्य की दहलीज भी नहीं लांघी है, मगर वे स्कूल नहीं जाते। घाट पर पाली अगोरते हैं। शालू को यह भी मलाल है कि घर से बाहर के बच्चे उसे उसके नाम से ना पुकार कर 'डोमवा' बुलाते हैं।
पुराने ठाठ-बाट चाहे जैसे रहे हों, आज हकीकत यह है कि राजाओं के राजा हरिश्चंद्र को बीच बाजार खरीदने वाले इन राजाओं के सितारे गर्दिश में हैं। त्रासदी यह है कि वंश वृद्धि के बाद भी इनकी रोजी-रोटी का जरिया अखंड धूनी उस आग के भरोसे है जिसके बारे में किंवदंती है कि इस अग्नि से दाह संस्कार के बिना मोक्ष का द्वार नहीं खुलता है। जगदीश चौधरी कहते हैं, 'जीवन में रोजी-रोटी के अलावा लड़िकन के सुनावे बदे बस पुराने दिनन क किस्सा कहानी याद रह गयल हव कि कइसे उनहने क बब्बा कैलाश चौधरी दिल्ली जाके इंदिरा जी के मरनी का टैक्स वसूलले रहलन'
---
पालियां रेहन भी, दहेज भी चौधरी जगदीश बातचीत के दौरान एक बड़ी घरऊ बात यह बताते हैं कि पालियां दहेज में भी दी जाती हैं। आड़े वक्त में रेहन भी रखीं जाती हैं। कहते हैं 'अब रकम-पताई, गहना-गुरिया सब चुक गयल। घरऊ धरोहर के रूप में अब बस पालिये क सहारा हौ।' चौधरी के अनुसार ईश्वर चौधरी के परिवार को मिली पाली दहेजू पाली है। उनके मुताबिक 'हमार बुआ जब ओह घरे में गइलिन त दहेज में दू-चार दिन क पालियो लेत गइलिन।' बेटू चौधरी कहते हैं कि 'आड़े-गाढ़े वक्त में पालिये कर रेहन इज्जत बचावे ला। ई जरूर हव कि पाली से छूंछ भइले के बाद गुजारा बदे देहाड़ी पर खटनी खटे के पड़ला। पाली छोड़ावे के बदे समझ ला एक ठे जंग लड़े के पड़ला।'
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।