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जनसंख्या वृद्धि की तुलना में रोजगार में तीन गुना अधिक बढ़ोतरी, पढ़ाई से साथ कमाई भी कर रहे युवा

विश्व में डिजिटलीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ी है जिसने समाजों को रूपांतरित किया है और भविष्य के काम और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थों के साथ एक नई आर्थिक क्रांति की शुरुआत की है। भारत के इस आर्थिक क्रांति में सबसे आगे रहने के लिए दोहरे फायदे हैं एक अनुकूल जनसंख्या संरचना और तेजी से बढ़ती डिजिटल प्रौद्योगिकियां। गिग-प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था इस उभरते हुए प्रतिमान बदलाव के केंद्र में है।

By Ajay Krishna Srivastava Edited By: Shivam Yadav Updated: Thu, 16 May 2024 10:30 PM (IST)
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जनसंख्या वृद्धि की तुलना में रोजगार में तीन गुना अधिक वृद्धि हुई।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। पूरे विश्व में डिजिटलीकरण की रफ्तार तेजी से बढ़ी है, जिसने समाजों को रूपांतरित किया है और भविष्य के काम और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थों के साथ एक नई आर्थिक क्रांति की शुरुआत की है। 

भारत के इस आर्थिक क्रांति में सबसे आगे रहने के लिए दोहरे फायदे हैं, एक अनुकूल जनसंख्या संरचना और तेजी से बढ़ती डिजिटल प्रौद्योगिकियां। गिग-प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था इस उभरते हुए प्रतिमान बदलाव के केंद्र में है। 

आईएलओ की 2021 वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में डिजिटल श्रम प्लेटफार्मों की संख्या पांच गुना बढ़ गई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म परिवहन, खुदरा, व्यक्तिगत और घरेलू देखभाल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नवीन समाधान प्रदान करते हैं। 

ये विभिन्न कौशल सेट वाले श्रमिकों को आशाजनक आय के अवसर और व्यवसायों को व्यापक बाजार पहुंच प्रदान करते हैं। गिग अर्थव्यवस्था ने महामारी के दौरान भी लचीलापन दिखाया है, जहां प्लेटफार्म वर्करों ने शहरी भारत में एक अनिवार्य भूमिका निभाई है।

अलग-अलग प्लेटफार्म पर की गई चर्चा

विगत दिनों भारत में रोजगार को लेकर अलग-अलग प्लेटफार्म पर चर्चा की गई और आंकड़ों की एकरूपता की कमी से कभी भी स्पष्ट तस्वीर नहीं बन पाई। परन्तु धरातलीय सर्वेक्षणो के माध्यम से और सरकारी आंकड़ों को लेते हुए अगर कोई अध्ययन हो तो उस पर एक व्यापक बहस होनी चाहिए। 

इस क्रम में अर्थशास्त्र विभाग डीएवी पीजी कालेज के अध्यक्ष प्रो. अनूप कुमार मिश्र ने गत दो अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच एक व्यावहारिक सर्वेक्षण किया, जिसमें प्रतिदिन ओला राइडर्स की सवारी करके उनकी आकांक्षाओं, कमाई और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जांच की गई थी। 

करीब 50 ओला बाइकर्स के बीच सर्वेक्षण में पाया गया कि शहरी वाराणसी में एक ओला बाइकर औसतन प्रतिमाह 18,000 से 25 हजार रुपये कमा रहा था। उम्र का आयाम 22 साल से 28 साल के बीच था और लगभग हर जाति का व्यक्ति इस काम में शामिल था। 

40 प्रतिशत ओला बाइकर्स ने इसे पढ़ाई या अन्य नौकरी के साथ-साथ चॉइस के तौर पर पार्ट-टाइम काम के रूप में चुना। 50 प्रतिशत ओला बाइकर्स को यह फुल-टाइम नौकरी के रूप में मिला और वे आम तौर पर मासिक लगभग 24 हजार कमाते थे। 

सर्वेक्षण में शामिल 10 प्रतिशत ओला बाइकर इस काम में नए थे और वे अपनी पसंद या संतुष्टि के बारे में जवाब देने में सक्षम नहीं थे। 80 प्रतिशत ओला बाइकर्स 2018-19 से इस काम से जुड़े हुए थे।

वाराणसी में रोजगार और प्लेटफार्म अर्थव्यवस्था से संबंधित सर्वेक्षण के परिणामों का समर्थन भारत में बदलते रोजगार पैटर्न से संबंधित एक स्वतंत्र शोध द्वारा भी किया जाता है। 

एक स्वतंत्र, सार्वजनिक नीति थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल एंड इकानमी प्रोग्रेस के प्रोफेसर लवीश भंडारी और अमरेश दुबे ने 1983 से 2023 तक के एनएसएसओ के आंकड़ों का उपयोग करते हुए पाया कि 1983 के बाद से विचार किए गए हर उप-अवधि में, प्रमुख रोजगार में वृद्धि हुई है। 

रोजगार में सबसे तेजी से वृद्धि 2017-18 से 2022-23 के बीच हुई है, जब लगभग 8 करोड़ अतिरिक्त रोजगार दर्ज किए गए थे। यह सालाना लगभग 3.3 प्रतिशत की वृद्धि के बराबर है, जो इस अवधि के दौरान जनसंख्या वृद्धि से कहीं अधिक है। उन्होंने पाया कि यह वृद्धि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र, विनिर्माण, कृषि, निर्माण और सेवा के साथ-साथ आयु वर्ग और महिलाओं आदि में भी समान रूप से फैली है। 

गौरतलब है कि इस अवधि में महिलाओं के लिए वृद्धि सबसे अधिक आठ प्रतिशत सालाना रही। उनके शोध में यह भी पाया गया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के वृद्ध नागरिक बड़ी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत सालाना की दर से रोजगार की स्थिति में प्रवेश कर रहे हैं। 

शोधकर्ताओं ने पाया कि इन नए प्रवेशकों का सबसे आम कारण बढ़ती परेशानी है और महिलाओं और वृद्धों के पास काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। उनके विचारों के अनुसार, अन्य संभावनाएं भी हो सकती हैं जैसे घटती प्रजनन दर, पानी, ऊर्जा आदि तक बेहतर पहुंच, देखभाल और घर से जुड़े काम करने वालों के पास अब काम करने का विकल्प चुनने पर अधिक लचीलापन है। 

आर्थिक क्षेत्रों में सबसे अधिक सफलता सेवा और कृषि क्षेत्र में रही है। पशुधन और मत्स्य पालन में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई हो सकती है। उस वृद्धि की एक विशेषता यह है कि कुल रोजगार वृद्धि में 80 मिलियन के रूप में, 44 मिलियन का एक बड़ा हिस्सा स्वयं के खाते के श्रमिकों और अवैतनिक महिला श्रमिकों के लिए है। 

ये आमतौर पर स्व-नियोजित होते हैं और रोजगार के इस स्वरूप को जरूरी नहीं कि उद्यमशीलता के रूप में देखा जाए बल्कि उन लोगों के लिए एक पिछला कदम है जिनके पास कोई अन्य रास्ते नहीं हैं। 

शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि यह वही वर्ग है जो मुद्रा योजना का लाभार्थी था जिसने 2015-16 से शुरू होकर 2022 के अंत तक की अवधि में 38 करोड़ खातों में लगभग 23 लाख करोड़ रुपये का वितरण किया।

प्रो. अनूप मिश्र का मानना है कि विगत आठ से दस वर्षों में भारत में रोजगार की प्रवित्ति और स्वभाव बदला है और रोजगार के आंकड़ों को स्थापित अर्थशत्रियों ने नाकारा है जिसमे भारत में वर्ष 2017 के बाद रोजगार में वृद्धि दर्शनीय है।