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नहीं रहे बीएचयू के पूर्व कुलपति डा. लालजी, मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार

डा. लालजी सिंह का पार्थिव शरीर जौनपुर के सिकरारा विकास खंड के कलवारी गांव से दोपहर बाद वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के लिये रवाना रवाना किया गया।

By Amal ChowdhuryEdited By: Updated: Mon, 11 Dec 2017 05:49 PM (IST)
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नहीं रहे बीएचयू के पूर्व कुलपति डा. लालजी, मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार

वाराणसी (जेएनएन)। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मश्री डा. लालजी का रविवार की शाम निधन हो गया। हार्ट अटैक के बाद आनन-फानन में उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की आइसीयू में भर्ती कराया गया था। जहां इलाज के दौरान रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांसें लीं। इसकी सूचना मिलते ही कार्यवाहक कुलपति डा. नीरज त्रिपाठी सहित बीएचयू के अधिकारी वहां पहुंच गए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति पद्मश्री डॉ.लालजी सिंह के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। योगी ने कहा कि लालजी सिंह के निधन से देश ने एक प्रखर शिक्षक एवं उच्च कोटि का वैज्ञानिक खो दिया है। सोमवार को जारी शोक संदेश में योगी ने कहा कि डॉ.लालजी सिंह भारत में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनक थे। उन्होंने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के आदिवासियों के डीएनए के संबंध में काफी अध्ययन किया था। मुख्यमंत्री ने उनके परिवारीजन के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि विषम परिस्थितियों में अध्ययन करते हुए डॉ.लालजी सिंह ने जो प्रगति हासिल की, वह नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है।

डा. लालजी सिंह का पार्थिव शरीर जौनपुर के सिकरारा विकास खंड के कलवारी गांव से दोपहर बाद वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के लिये रवाना रवाना किया गया। देर शाम उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा।

विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डा. राजेश सिंह बताया कि पूर्व कुलपति एवं जौनपुर के ब्लॉक सिकरारा कलवारी गांव निवासी डा. लालजी सिंह तीन दिन पहले अपने गांव आए थे। वह रविवार की शाम हैदराबाद जाने के लिए फ्लाइट पकड़ने बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचे थे। उनकी फ्लाइट शाम 5.30 बजे थी। इससे पहले ही करीब चार बजे उन्हें हृदयाघात हो गया। उन्हें उपचार के लिए शीघ्र सर सुंदरलाल अस्पताल लाया गया। जहां पर डा. धर्मेंद्र जैन की देखरेख में इलाज चल रहा था।

वह यहां पर 22 अगस्त 2011 से 22 अगस्त 2014 तक कुलपति थे। उन्हें डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक भी कहा जाता है। उनकी जिनोम नाम से कलवारी में ही एक संस्था है। इसमें रिसर्च का कार्य आज भी होता है। डा. लालजी सिंह वर्तमान में सीसीएमबी, हैदराबाद के निदेशक भी थे। श्री पेरंबदूर (तमिलनाडु) में 21 मई, 1991 को राजीव गांधी हत्‍या के सुबूत जुटाने और नैना साहनी के तंदूर हत्याकांड को सुलझाने में उनका बहुत योगदान था।

प्रख्यात वैज्ञानिक व सीसीएमबी (कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र), हैदराबाद के निदेशक, बीएचयू के पूर्व कुलपति पद्मश्री डा. लालजी सिंह का जन्म सिकरारा क्षेत्र के कलवारी गांव में पांच जुलाई 1947 को हुआ था। इंटरमीडिएट की शिक्षा लेने के बाद उन्होंने बीएचयू से उच्च शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1971 में पीएचडी उपाधि प्राप्त करने के लिए कोलकाता चले गए।

जहां उन्होंने विज्ञान में 1974 तक फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद अमेरिका गए। वापस आने के बाद सीसीएमबी हैदराबाद में निदेशक पद पर लंबे तक योगदान दिया। विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने के साथ ही कई चर्चित राज खोले।

उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त: डा. लालजी सिंह की उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त हैं। लेकिन डीएनए के जरिए राजीव गांधी हत्याकांड, बेअंत सिंह, नैना साहनी तंदूर हत्याकांड जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों का राजफाश करने में बड़ी भूमिका निभाई। इन्हें वन्यजीव संरक्षण, रेशम कीट, जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम व प्राचीन डीएनए अध्ययन में महारथ हासिल थी।

आनुवंशकीय रोगों के इलाज में मदद: डा. लालजी सिंह ने अपने गांव में ही जीनोम फाउंडेशन की स्थापना करने के बाद से अब तक हजारों लोगों के रक्त का नमूना लेकर आनुवंशकीय रोगों के इलाज में सहायता कर रहे थे।

पुरस्कार भी बहुत मिले: विश्व पटल पर देश का झंडा बुलंद करने वाली इस शख्सियत को पद्मश्री, पूर्वांचल रत्न, विज्ञान गौरव, फिक्की पुरस्कार, विदेशी अकादमियों में फेलोशिप, भारतीय एकेडमी आफ साइंसेज समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं।

लेते थे एक रुपये: डा. लालजी सिंह का देश के प्रति समर्पण भाव ऐसा था कि बतौर कुलपति वह विवि से सिर्फ एक रुपये की सैलरी लेते थे। पूर्व में डा. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन भी ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर चुके हैं। विविध विभागों के लिए सीधे संपर्क कर विज्ञान की शाखाओं को मजबूत करने के लिए उनका कार्यकाल याद किया जाता है।

बीएचयू में लाए कई अहम प्रोजेक्ट: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति डा. लालजी सिंह जनहित में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट लाएं। इसमें सेंट्रल डिस्कवरी सेंटर, नया एलडी गेस्ट हाउस, ट्रामा सेंटर में निर्माणाधीन बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर व शिक्षकों के लिए फ्लैट शामिल है। डा. सिंह ने प्लानिंग कमिशन से मिले 100 करोड़ रुपये से शोध की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए सीडीसी प्रोजेक्ट को अपने यहां मंगवाया। इसमें आधुनिक व कीमती उपकरण लगाए जाएंगे। सेंटर में आइआइटी और बीएचयू के साथ ही पूर्वांचल के अन्य कालेजों के विद्यार्थी भी शोध कर सकेंगे।

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विदेश में बैठे वज्ञानिकों से ली जा सकेगी राय: यही नहीं इसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के तहत विदेश में बैठे वैज्ञानियों से भी शोध के बारे में परामर्श लिया जा सकेगा। इसमें हाई इमेजनरी लैब बनेगा। यही नहीं डा. लालजी ने यहां पर बने ट्रामा सेंटर की भी डिजाईन की थी। इसके साथ ही स्पोस्ट्स कांप्लेक्स और सुंदरबगिया में बनने वाले शिक्षक फ्लैट्स की भी डिजाइन उन्होंने ने ही की थी। लक्ष्मण दास अतिथि गृह को नया रूप देते हुए नया भवन बनवाया। उनके द्वारा लाया गया बोन मैरो ट्रांसप्लांट सेंटर का निर्माण हो रहा है।

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