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एंटीबायोटिक्स की अधिकता की वजह से इस्तेमाल करनी पड़ रही फोर्थ जनरेशन की महंगी दवा, BHU में मरीजों पर हुआ शोध

बीएचयू के इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के शोध में 90 प्रतिशत ऐसे ही मामले सामने आए हैं। 400 गंभीर मरीजों पर शोध हुआ इसमें 367 मरीज ऐसे मिले जिनके शरीर में हल्की मध्यम व उच्च एंटीबायोटिक दवाओं का असर हुआ ही नहीं। उन्हें चौथे जनरेशन की दवा देने की स्थिति बन गई। यूरोप के जर्नल फ्रंटीयर्स इन सेल्यूलर एंड इन्फेक्शन माइक्रोबायोलाजी ने 2023 में यह शोध प्रकाशित किया है।

By Jagran NewsEdited By: Vinay SaxenaUpdated: Thu, 27 Jul 2023 10:02 PM (IST)
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बीएचयू के प्रोफेसर अशोक कुमार। फोटो- जागरण
वाराणसी, संग्राम स‍िंह। जौनपुर के 48 वर्षीय संतोष कुमार (बदला हुआ नाम) मामूली बीमारी से भी परेशान हो जाते थे। वायरल सर्दी-जुकाम व दस्त होने पर तुरंत मेडिकल स्टोर जाते और एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक दवा) दवा खरीद लेते। वह एक-दो खुराक के बाद दवा खाना बंद कर देते। यह उनकी आदत थी, इससे उन्हें तुरंत आराम तो मिल जाता, लेकिन बीमारी का पूरा इलाज नहीं होने से बचे हुए नकारात्मक बैक्टीरिया उनके शरीर में पलते गए। वक्त के साथ वह और ताकतवर होते गए।

एंटीबायोट‍िक के साथ चौथी जनरेश्नन की दवा से हुए प्रभाव    

अगस्त 2022 में उनके किडनी में संक्रमण हुआ। बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में इलाज शुरू हुआ। हालत बिगड़ती चली गई। हल्की व मध्यम (पहली व दूसरी जनरेशन) एंटीबायोटिक दवाएं निष्प्रभावी सिद्ध हुईं। उन्हें कार्बापेनम रेजिस्टेंस (तीसरी जनरेशन) दवा दी गई, लेकिन उससे भी राहत नहीं मिली। फिर इस एंटीबायोटिक के साथ दो और महंगी चौथी जनरेशन की दवा देनी पड़ी तब प्रभाव हुआ। इस तरह उन्हें महंगे और अपेक्षाकृत लंबे इलाज से गुजरना पड़ा।

शोध में 90 प्रत‍िशत ऐसे मामले आए सामने 

यह प्रकरण तो सिर्फ बानगी है। बीएचयू के इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के शोध में 90 प्रतिशत ऐसे ही मामले सामने आए हैं। 2017 से 2022 तक 400 गंभीर मरीजों पर शोध हुआ, इसमें 367 मरीज ऐसे मिले, जिनके शरीर में हल्की, मध्यम व उच्च एंटीबायोटिक दवाओं का असर हुआ ही नहीं। उन्हें चौथे जनरेशन की दवा देने की स्थिति बन गई। यूरोप के जर्नल 'फ्रंटीयर्स इन सेल्यूलर एंड इन्फेक्शन माइक्रोबायोलाजी' ने 2023 में यह शोध प्रकाशित किया है। इस दिशा में जरूरी कदम उठाने के लिए आइएमएस ने इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च, नई दिल्ली को ब‍िंदुवार रिपोर्ट भेजी है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल में सतर्कता बरतने पर काम करने लगा है।

नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणु से बचने के लिए मानव और जानवर संतुलित आहार से शरीर को सशक्त बना ही रहे हैं, ऐसे में अधिक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल उनके शरीर को और मुश्किल में डाल रहा है। कोई इस सच से मुंह मोड़ नहीं सकता। अब आइएमएस ने इस दिशा में काम भी शुरू किया है। बनारस समेत कई जिलों के प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों में पिछले महीने जागरुकता कार्यक्रम चला। आइसीएमआर ने भी जरूरी निर्देश दिए हैं। - प्रो. अशोक कुमार, डीन रिसर्च, इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस, बीएचयू

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