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Varanasi News: बिजली विभाग में करोड़ों का घोटाला करने वाले पर कसा शिकंजा, लेखाकार पर FIR; अधिकारियों से भी जुड़े हैं तार

यूपीपीसीएल के निर्देशों के अनुसार 27 दिसंबर 2021 से प्रदेश के सभी डिस्काम के सभी खंडीय अधिकारियों या वितरण अधिकारियों को किसी मद में भुगतान करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तब से भुगतान के लिए प्रत्येक डिस्काम मुख्यालय स्तर पर केंद्रीय भुगतान प्रकोष्ठ (ईआरपी) का गठन किया गया था। इसके जरिए संबंधित फर्म सप्लायर ठेकेदार कार्मिक अथवा संबंधित एजेंसी के खाते में धनराशि सीधे स्थानांतरित की जाती और...

By Mukesh Chandra Srivastava Edited By: Riya Pandey Updated: Sun, 07 Apr 2024 08:59 AM (IST)
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भुगतान शीट को एडिट कर अपने खाते में पैसे मंगाने वाले पर कसा शिकंजा
जागरण संवाददाता, वाराणसी। भुगतान शीट एडिट कर अपने खाते में करोड़ों रुपये मंगाने वाला पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (पीयूवीवीएनएल) में तैनात लेखाकार केशवेंद्र द्विवेदी के खिलाफ जब निलंबन व एफआइआर हुआ तो वह फरार हो गया है। उसके तार उच्चाधिकारियों से भी जुड़े होने की आशंका जताई जा रही है।

यही कारण है कि बिजली विभाग के कर्मचारी नेता उच्च स्तरीय एसटीएफ से जांच कराने की मांग कर रहे हैं ताकि इसमें जो भी संलिप्त हो उसपर कार्रवाई हो। उनका मानना है कि इतना बड़ा घोटाला डिस्काम के बड़े अधिकारियों की शह के बगैर संभव नहीं है।

बताया जा रहा है कि केशवेंद्र द्विवेदी ने घोटोले पर घोटाले कर इतने पैसे जमा कर लिए कि प्रयागराज के पाश मार्केट में ‘करोड़ों की बिल्डिंग’ बनवा ली है, जिससे प्रतिमाह लाखों रुपये ‘किराया’ आता है। इस बड़े मार्केट में बिल्डिंग क्रय कर एक नामचीन ज्वेलरी प्रतिष्ठान को शोरूम खोलने को दिया है। अब अफसरों के मिलीभगत की जांच के बाद मामले में लीपापोती की आशंका भी जताई जा रही है।

लेखा विंग में ही तैनात केशवेंद्र के एक सीनियर अधिकारी ने अपने कम समय के कार्यकाल में ही हाईडिल कालोनी के आसपास एक आलीशान भवन बनवा रखा है।

2015 में हुई थी घोटालेबाज कर्मचारी की नियुक्ति

खास बात है कि यह बिना लोन के ही करोड़ों का भवन बनाया गया है।  घोटालेबाज कर्मचारी की नियुक्ति 2015 में हुई थी। वह शुरू से ही गड़बड़झाला करता रहा है। उसका लक्ष्य अवैध रूप से करोड़ों रुपये कमाने का था। अब कर्मचारी की नियुक्ति प्रक्रिया व बैक ग्राउंड की भी जांच की मांग उठने लगी है। साथ ही इस पद से सीधे संपर्क वाले अधिकारियों की संलिप्तता की भी जांच की मांग उठने लगी है। उसकी पत्नी भी भिखारीपुर स्थित हाईडिल कालोनी स्थित क्षेत्रीय लेखा कार्यालय में कार्यरत हैं।

विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यूपीपीसीएल के निर्देशों के अनुसार 27 दिसंबर 2021 से प्रदेश के सभी डिस्काम के सभी खंडीय अधिकारियों या वितरण अधिकारियों को किसी मद में भुगतान करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तब से भुगतान के लिए प्रत्येक डिस्काम मुख्यालय स्तर पर केंद्रीय भुगतान प्रकोष्ठ (ईआरपी) का गठन किया गया था।

मामला सामने आने पर भ्रष्ट कर्मचारियों में हड़कंप

इसके माध्यम से संबंधित फर्म, सप्लायर, ठेकेदार, कार्मिक अथवा संबंधित एजेंसी के खाते में धनराशि सीधे स्थानांतरित की जाती है। बावजूद इसके केशवेंद्र द्विवेदी फ्राड कर अपने ही खाते में राशि मंगवाता रहा। वैसे विभाग के उच्चाधिकारी इस बात का हमेशा दावा करते रहे हैं कि ईआरपी एक फूल प्रूफ सिस्टम है, जिसमें कोई कभी किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं कर सकता है।

खैर, मामला सामने आने के बाद सभी भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों में हड़कंप की स्थिति हैं। अब उनके ऊपर भी जांच व कार्रवाई की तलवार लटकने का खतरा बढ़ गया है।

यह है मामला

बताया जा रहा है कि केशवेंद्र द्विवेदी ने 10 ट्रांजेक्शन के जरिए 4.69 करोड़ का भुगतान अपने खाते में लिया है। हाल के दिनों में जो दो ट्रांजेक्शन करके उसने पैसा भुगतान लिया था उसको तो विभाग ने रिकवर कर लिया लेकिन लेबर सेस के पैसों की पड़ताल अब भी विभाग की ओर से जारी है।

आंतरिक जांच से जुड़े सूत्र बताते हैं कि लेबर सेस के जिन पैसों का उसने भुगतान वर्ष 2021 में लिया है उनमें सबसे पहला ट्रांजेक्शन 21 लाख, उसके बाद क्रमश: 4.90 लाख, 21.29 लाख, 15 लाख, 77.98 लाख, 25 लाख, 77 हजार और 25 हजार अपने खाते में लिया।

इसके अलावा 2024 अप्रैल में उसने 2.9 करोड़ और 94 लाख का भुगतान लिया। इन्हीं दोनों भुगतान के बाद उसकी कार्रस्तानी पकड़ में आई। इस मामाले में उसके प्रतिनिधि अतुल सिंह से भी पूछताछ की जा रही है। आरोपित लेखाकार ने 10 लाख रुपये बिजली विभाग को खुद के खाते से लौटा दिया है। वहीं बाकी पैसों के लौटाने की बात अफसरों के सामने कबूल करते हुए लिखितनामा दिया है।

ऐसे करता था घोटाला

फर्जीवाड़ा करके जब उसने पैसों का भुगतान खाते में लिया था तो पंजाब नेशनल बैंक अर्दली बाजार के बैंक मैनेजर में आपत्ति जताई थी। कारण कि खातों का मिलान नाम से नहीं हो रहा था। इसके लिए छह बार बैंक ने आरटीजीएस ट्रांजेक्शन की नोटिस भी भेजी थी लेकिन चूंकि भुगतान की प्रक्रिया लेखाकार ही करता था इसलिए उसने हर बार यही कहा कि यह कुतर्क देता था कि सबकुछ ठीक है।

कारण कि अमूमन आरटीजीएस में खातेदार का नाम न देकर उसका बैंक खाता और आईएफएससी कोड ही लोग देते हैं।

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