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बीएचयू आइ बैंक में हुआ पहला कार्निया प्रत्यारोपण, जौनपुर के आनंद साहू के नेत्रदान से रोशन हुई एक जिंदगी

बीएचयू के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में बनकर तैयार आइ बैंक में पहला कार्निया प्रत्यारोपण किया गया। बैंक के प्रभारी आचार्य डा. प्रशांत भूषण के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने जौनपुर निवासी 55 वर्षीय आनंद कुमार साहू के मरणोपरांत किए गए नेत्रदान से एक अंधेरी जिंदगी में उजाला घोल दिया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 10 Jun 2022 10:04 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jun 2022 10:04 PM (IST)
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में पहला कार्निया प्रत्यारोपण किया गया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान में बनकर तैयार आइ बैंक में शुक्रवार को पहला कार्निया प्रत्यारोपण किया गया। बैंक के प्रभारी आचार्य डा. प्रशांत भूषण के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने जौनपुर निवासी 55 वर्षीय आनंद कुमार साहू के मरणोपरांत किए गए नेत्रदान से एक अंधेरी जिंदगी में उजाला घोल दिया। अब उनकी आंखें मरणोपरांत भी दुनिया देख सकेंगी। अभी आइ बैंक का औपचारिक उद्घाटन इसी माह के अंतिम सप्ताह में होगा।

प्रभारी प्रोफेसर डा. प्रशांत भूषण ने बताया कि आइ बैंक बनकर तैयार है। इसमें कोशिका गणना के लिए स्पेकुलर, कार्निया के मूल्यांकन के लिए स्लिट लैंप, कार्निया संरक्षण के लिए लेमिनार फ्लोहुड व अन्य आवश्यक मशीनें लगाई जा चुकी हैं, जिन्होंने काम करना भी शुरू कर दिया है। केवल कुछ सूक्ष्मदर्शियां आनी बाकी हैं। कुछ ही दिनों में ये भी आ जाएंगी और इसी महीने के अंतिम सप्ताह में इसका औपचारिक उद्घाटन भी हो जाएगा।

बैंक काम करे, इसके लिए नेत्रदान के प्रति जागरूकता जरूरी

प्रो. प्रशांत भूषण ने बताया कि नेत्र बैंक नेत्रहीन लोगों के जीवन में उजाला ला सके और वे भी दुनिया देख सकें, इसके लिए लोगों में नेत्रदान के प्रति जागरूकता होना आवश्यक है। अधिक से अधिक लोग जागरूक हों, इसके लिए संस्थान की ओर से अभियान चलाया जा रहा है।

अस्पताल में दिवंगत होने वाले मरीजों के स्वजनो को भी इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि मृत व्यक्ति की कार्निया से किसी की जिंदगी रोशन हो सके। किसी व्यक्ति की मृत्यु के दो घंटे से लेकर से छह घंटे के अंदर उसकी कार्निया का दान किया जा सकता है। मृतक के आंख से केवल पतली सी झिल्लीनुमा संरचना को निकाला जाता है। इससे शव में किसी प्रकार की विकृति नहीं आती। काउंसलर व तकनीशियन प्रतीक सिंह ने बताया कि धीरे-धीरे लोगाें में जागरूकता आ रही है, लेकिन अभी संख्या बहुत कम है।


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