दुनिया में पहली बार BHU ने की जीनोडाइग्नोसिस से कालाजार के सुपरस्प्रेडर्स की पहचान
काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित मेडिसिन विभाग आइएमएस (चिकित्सा विज्ञान संस्थान) के चिकित्सकों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विभाग के प्रो. श्याम सुंदर एवं डा. ओपी सिंह की टीम ने दुनिया में पहली बार जीनाडाइग्लोसिस तकनीक से कालाजार के सुपरस्प्रेडर्स (संक्रमण फैलाने वाले संवाहक) की पहचान की है।
By Abhishek sharmaEdited By: Updated: Wed, 06 Jan 2021 02:13 PM (IST)
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। कालाजार बीमारी के संक्रमण को रोकने के प्रयासों की कड़ी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित मेडिसिन विभाग, आइएमएस (चिकित्सा विज्ञान संस्थान) के चिकित्सकों ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विभाग के प्रो. श्याम सुंदर एवं डा. ओपी सिंह की टीम ने दुनिया में पहली बार जीनाडाइग्लोसिस तकनीक से कालाजार के सुपरस्प्रेडर्स (संक्रमण फैलाने वाले संवाहक) की पहचान की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से यह शोध 287 लोगों पर किया गया। यह कार्य जो कुछ दिन पहले चार जनवरी को ब्रिटेन और अमेरिका से प्रकाशित शोध पत्रिका लैंसेट माइक्रोब में प्रकाशित हुआ। इस शोध के माध्यम से बीएचयू ने सरकार को बता दिया है कि अगर कालाजार के रोगी बढ़ते हैं तो सबसे पहले सुपरस्प्रेडर्स का ही उपचार जरूरी होगा। ताकि संक्रमण में फैलने से रोका जा सके। यह शोध भारतीय उपमहाद्वीप में कालाजार उन्मूलन के कार्य प्रणाली निर्धारित करने में कारगार साबित होगा।
वैसे तो कालाजार करीब 60 देशों में हैं, लेकिन पूर्वी भारत में इसके मरीज ज्यादा हैं, खासकर बिहार में। यह बीमारी दूषित वातावरण में पनपने वाले परजीवी से संक्रमित सैंडफ्लाई (आम बोलचाल में बालू मक्खी) के काटने से फैलती है। हर साल दुनिया में 50-60 हजार नए मरीजों के मामले आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए मेडिसिन विभाग की लैब में बालू मक्खी की एक कालोनी तैयार की गई। इससे पहले एक कालोनी बिहार के मुजफ्फरपुर में भी विकसित है। प्रो. श्याम सुंदर एवं डा. ओपी सिंह के निर्देशन में विशेषज्ञों एवं शोधकर्ताओं ने बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंदेशन के सहयोग से बिहार के 17 हजार लोगों को शोध में शामिल किया। इसमें से चिन्हित 287 लोगों पर प्रयोग किया गया।
क्या है जीनोडाइग्नोसिस इस तकनीक के तहत कालाजार के संवाहक मच्छर बालू मखी से लोगों को कटवाया गया। इसमें पता चला कि 55 फीसद कालाजार मरीज और 78 फीसद पीकेडीएल के मरीज ही बालू मक्खी के लिए संक्रामक थे और बिना लक्षण वाले संक्रमित व्यक्ति तथा प्रारंभिक उपचार के बाद वाले मरीज बालू मक्खी के लिए संक्रामक नहीं पाए गए। वैसे इस तकनीक का प्रयोग अन्य दूसरे रोगों में पहले से होते आया है। डा. ओम प्रकाश सिंह बताते हैं कि कालाजार के रोकथाम के लिए अभी तक कोई टीका नहीं हैं और जो दवाइयां हैं वह भी सीमित ही हैंं। ऐसे में जरूरी है कि सुपरस्प्रेडर्स की खोज कर संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।
क्या है सुपरस्प्रेडर्स स्विटजरलैंड के प्रख्यात वैज्ञानिक डा. पिरेटों के सिंधातों बताते हैं कि किसी भी गंभीर बीमारी हर वाले मरीज संक्रमण फैलाने वाले नहीं होते। कुछ ही प्रतिशत ऐसे मरीज होते हैं जिनसे कालाजार का संक्रमण फैलने का खतरा रहता है, जिसे सुपरस्प्रेडर्स कहा जाता है। कोरोना में भी यह पाया गया कि सभी सभी लोगों संक्रमण फैलाने की स्थिति नहीं थी। इस शोध में सुपरस्प्रेडर्स की पहचान करके और उनका प्रभावी उपचार करने का सुझाव सरकार को दिया गया है।
क्या है पीकेडीएल अभी तक कालाजार की मुख्य दवा नहीं होने के कारण कैंसर आदि रोगों की दवा से ही उपचार किया जाता है। ऐसे में देखा गया है कि रोग तो ठीक हो जाता है लेकिन 100 में से करीब 10 रोगियों में साइड इफेक्ट के कारण पीकेडीएल (त्वचा संबंधी एक बीमारी) हो जाती है। वैसे सूडान में यह आंकड़ा करीब 60 फीसद तक है। पीकेडीएल रोगों में सुपरस्प्रेडर्स अधिक पाए जाते हैं।
कालाजार मिटाने को एक साथ आए हैं पांच देश कालाजार को 2015 तक खत्म करने के लिए वर्ष 2005 भारत, नेपाल और बांग्लादेश के साथ समझौता हुआ। इसके पड़ोसी देशों के कारण या उनमें खतरे को देखते हुए दो देशों को और जोड़ा गया है। अब इस अभियान में एशिया उपमहाद्वीप भारत, नेपाल, बांग्लादेश के साथ ही श्रीलंका और भूटान भी जुड़ गए हैं।
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