Gyanvapi Masjid Case : एएसआई के पूर्व संयुक्त महानिदेशक बोले - 'बिना खोदाई के नहीं मिल सकेंगे पर्याप्त सुबूत'
Gyanvapi Masjid Varanasi ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एएसआई के पूर्व संयुक्त महानिदेशक ने जागरण को बताया कि बिना खोदाई किए पर्याप्त साक्ष्यों का संकलन मुश्किल है। श्रृंगार गौरी प्रकरण में शिवलिंग के आयु निर्धारण के लिए अन्य कोई उपाय नहीं हैं।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Fri, 14 Oct 2022 01:12 PM (IST)
वाराणसी, जागरण संवाददाता। ज्ञानवापी परिसर में बिना खोदाई के पर्याप्त सुबूत नहीं मिल सकेंगे यह कहना है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संयुक्त महानिदेशक डा. बीआर मणि का। श्रृंगार गौरी प्रकरण में शिवलिंग के आयु निर्धारण और आसपास के क्षेत्रों की जांच की मांग मंदिर पक्ष की ओर से की गई है। इस पर आज फैसला आ सकता है। अगर फैसला मंदिर पक्ष में आता है तो मांग के अनुरूप इसकी जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ही मिलेगी।
अयोध्या में रामंदिर विवाद में इनके नेतृत्व में ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने पर्याप्त सुबूत जुटाए थे। वो कहते हैं कि अभी कोई ऐसी तकनीक नहीं आई है जिससे किसी संचरना की उम्र या उसकी पूरी बनावट के बारे में सीधे तौर पर जाना जा सके। किसी भी स्थान की जानकारी जुटाने का दो तरीका होता है। डायरेक्ट या इंनडायरेक्ट। डायरेक्ट तरीके में आसपास का एरिया खोदाई करके देखा जा सकता है। जब वह शिवलिंग स्थापित किया गया उस वक्त के लेवल पर कोई कार्बन मिलता है तो उसकी डेटिंग की जा सकती है। यह बिना खोदाई के संभव नहीं होगा। वहीं इनडायरेक्ट जांच में शिवलिंग है तो उसके बनावट के आधार पर आर्ट हिस्टोरियन उसके आयु का निर्धारण कर सकते हैं। जीपीआर भी एक तकनीक है जानकारी जुटाने की। इसमें बिना खोदाई के
एलाइनमेंट का पता चल सकता है कि उसके नीचे क्या है। यह काफी गहराई तक जांच कर सकता है। अब तो नई तकनीक के जीपीआर 50 मीटर तक जांच कर लेते हैं। वहीं ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग के कार्बन डेटिंग की चर्चा हो रही है। ऐसे में जान लेना चाहिए कि शिवलिंग पत्थर का है और पत्थर की कार्बन डेटिंग नहीं की जा सकती है। जिस वस्तु की कार्बन डेटिंग की जाती है उसमें कार्बन तत्वों का होना जरूरी है। आसपास के क्षेत्रोे में ऐसे तत्वों की तलाश करके कार्बन डेटिंग के जरिए उनका आयु निर्धारण किया जा सकता है।
हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि वह तत्व शिवलिंग के निर्माण के वक्त का होना चाहिए। उसके बाद या पहले का होने पर सटीक जानकारी नहीं मिल सकेगी। अगर अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विशेषज्ञों को ज्ञानवापी परिसर में जांच का आदेश देता है तो उसकी अनुमति से परिसर में खोदाई की जा सकती है। साथ ही आर्ट हिस्टोरियन की मदद भी ली जा सकती है। वहां मौजूद अन्य संचरनाओं के बनावट आदि से उसके आयु की जानकारी जुटाई जा सकती है। रामंदिर समेत अन्य कई अन्य मामलों में इसने केस निर्धारण में अहम भूमिका निभाया है।
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