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नहीं रहे काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी, निधन से शोक में डूबी काशी; लंबे समय से थे बीमार

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी का जन्म 10 जनवरी 1954 को शुभ मुहूर्त में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत पं. महावीर प्रसाद तिवारी के आंगन में पिता डॉ. कैलाशपति तिवारी व मां रामा देवी की गोद में हुआ था। बालक की वैभवशाली जन्मकुंडली देखकर ज्योतिषाचार्य दादा ने कुलपति नाम दिया। पूर्व महंत ने बुधवार की शाम लगभग पौने पांच बजे अंतिम सांस ली। ऐसा रहा जीवन...

By Shailesh Asthana Edited By: Riya Pandey Published: Wed, 26 Jun 2024 06:56 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jun 2024 06:56 PM (IST)
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत का निधन

जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी नहीं रहे। वह कई महीनों से न्यूरो संबंधित रोग से ग्रस्त थे और ओरियाना अस्पताल में भर्ती थे। वहीं उन्होंने बुधवार की शाम लगभग पौने पांच बजे अंतिम सांस ली। अस्पताल से उनका शव टेढ़ीनीम स्थित उनके आवास पर लाया गया है। उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। उनके निधन का समाचार मिलते ही काशी के धार्मिक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई।

दादा ने नाम दिया था कुलपति

डॉ. कुलपति तिवारी का जन्म 10 जनवरी 1954 को शुभ मुहूर्त में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत पं. महावीर प्रसाद तिवारी के आंगन में पिता डॉ. कैलाशपति तिवारी व मां रामा देवी की गोद में हुआ था। बालक की वैभवशाली जन्मकुंडली देखकर ज्योतिषाचार्य दादा ने कुलपति नाम दिया।

चार वर्ष की अवस्था में बसंत पंचमी तिथि पर बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव और कुलपति तिवारी का शिक्षारंभ संस्कार विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने स्थित महंत आवास में एक साथ हुआ। बाद में सरकार ने नौ करोड़ रुपये महंत परिवार को देकर उस आवास को श्रीकाशी विश्वनाथ नव्य-भव्य धाम में समाहित कर लिया।

पूर्व महंत की शिक्षा से जुड़ी जानकारी

छह वर्ष की उम्र में कालिका गली स्थित श्रीविश्वनाथ सनातन प्राथमिक विद्यालय से उन्होंने आधुनिक शिक्षा का विधिवत आरंभ किया। यहां कक्षा पांच तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुलपति तिवारी ने काशी के कमच्छा स्थित सेंट्रल हिंदू स्कूल (सीएचएस) में प्रवेश लिया।

कक्षा छह से दस तक की परीक्षा में प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी रहने वाले कुलपति तिवारी ने उच्च शिक्षा के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।

बीकाम. और एमकाम. करने के बाद भी सामाजिक सूत्रों को समझने की जिज्ञासा लिए कुलपति तिवारी ने समाजशास्त्र विषय से एमए. किया और विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र के प्रकांड विद्वान प्रो. सत्येंद्र त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ‘श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की संरचना और प्रकार्य’(धर्म के समाजशास्त्र के अंतर्गत एक शोध) विषय पर शोध करके डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

इसी बीच पिता डॉ. कैलाशपति तिवारी ने, कुलपति तिवारी को सामवेद के दस अक्षरों वाले मंत्र से दीक्षित भी किया। इसी दीक्षित मंत्र की परंपरा सन 1659 से लिंगिया पं. नारायण महाराज के समय से महंत परिवार में चली आ रही है।

पिता की मृत्यु के बाद संभाला महंत का दायित्व

सात मार्च 1993 को पिता डॉ. कैलाशपति तिवारी के निधन के उपरांत डॉ. कुलपति ने काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत का दायित्व संभाला। महंत की गद्दी पर आसीन होने के बाद श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी लोक परंपराओं पर आधारित वार्षिक आयोजनों को और भव्यता प्रदान की।

हालांकि बाद में महंत पद को लेकर भाई से हुए पारिवारिक विवाद में यह गद्दी जाती रही। फिर भी सावन मास में पूर्णिमा तिथि पर काशी विश्वनाथ के झूलनोत्सव, दीपावली के अगले दिन होने अन्नकूट पर्व, बसंत पंचमी पर बाबा विश्वनाथ के तिलकोत्सव, महाशिवरात्रि पर विवाहोत्सव और अमला एकादशी पर बाबा के गवना के उत्सव पर काशी विश्वनाथ मंदिर में निभाई जाने वाली परंपराओं का निर्वहन वे पूर्ववत अनवरत करते आ रहे थे।

कई सामाजिक, शैक्षिक संगठनों से था जुड़ाव

श्रीविश्वनाथ सनातन धर्म इंटर कालेज के प्रबंधक समेत अनेक संस्थाओं से जुड़े रहे। वर्तमान में वह सवर्ण समाज संगठन के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक और कौमी एकता परिषद के मार्गदर्शक आदि पदों को सुशोभित करते हुए अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों से जुड़े थे।

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