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भिक्षावृत्‍त‍ि से मुक्‍ति: सरकार ने ही छीन ली भिखारियों से भ‍िक्षुक कर्मशाला, अब भटकने पर हैं मजबूर

समाज कल्याण से जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि भिखारियों के प्रवास के लिए प्रदेश में आठ स्थानों पर सरकारी प्रवास स्थल बनाया गया था। इसमें वाराणसी भी शामिल रहा। इसको भिक्षुक कर्मशाला के नाम से जाना जाता था। यह एक तरह से सुधार गृह की तौर पर कार्य करता था! सांस्कृतिक संकुल चौकाघाट की पूरी जमीन भिखारियों के प्रवास व सुधार के लिए निर्धारित थी

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 07 Aug 2024 03:39 PM (IST)
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भिखारियों के लिए कोई स्थायी आश्रय स्थल नहीं है। जागरण सांकेतिक तस्‍वीर

 जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी को भिक्षावृत्ति से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान जारी है लेकिन विडंबना है कि भिखारियों के लिए यहां कोई स्थायी आश्रय स्थल नहीं है। रैन बसेरा व सामाजिक संस्थाओं के आंगन को ही ठौर बनाया जा रहा है लेकिन भिखारी यहां ठहरते का नाम ही नहीं लेते हैं।

जनपद में पिछले एक साल से अभियान चल रहा है। समझा बुझा कर 98 भिक्षुक को ट्रेन व बस का टिकट कटाकर घर भेजा गया तो 73 को परिवार के हवाले किया गया। कुल 198 को शेल्टर होम, 108 को अपना घर, आठ को वृद्धा आश्रम व 28 बच्चों को बाल सुधार गृह भेजा गया लेकिन भिखारियों की संख्या काशी में कम नहीं हुई। आश्रय स्थल से यह मौका देख भाग जाते हैं। सिर्फ असहाय ही पड़े हुए हैं।

बताया जा रहा कि लीज की अवधि समाप्त होते ही प्रशासन ने 2001 में इसे हटा दिया। इसके बाद में पर्यटन विभाग के हवाले कर दिया गया। इसके बाद भिक्षुक कर्मशाला आशापुर में निर्मित अनुसूचित व जनजाति बालिका छात्रावास में शिफ्ट कर दी गई।

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कुछ दिन यहां यह संचालित हुई लेकिन 2008 में सरकार ने स्वत: प्रदेश के समस्त भिक्षुक कर्मशाला को बंद करने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद यह आशापुर में भी बंद हो गया। कर्मचारी अन्य स्थलों पर समायोजित कर दिए गए। आशापुर में निर्मित छात्रावास को 2016 में बालक वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया। अब यहां छात्रावास संचालित है।

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अधिनियम प्रभावी पर अमल नहीं

प्रदेश में भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम 1975 प्रभावी है। पुलिस पहले बिना किसी वारंट के भीख मांगने वालों को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती थी। मजिस्ट्रेट भिखारी होने की पुष्टि पर भिक्षुक कर्मशाला भेज देते थे। कभी एक साल के लिए कभी तीन साल के लिए। दोबारा पकड़े जाने पर पांच साल के लिए भिक्षुक कर्मशाला या जेल भेज देती थी लेकिन अब भिक्षुक के लिए कर्मशाला समाप्त होने के बाद यह कार्रवाई भी बंद है।

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