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GI Festival in Varanasi : एक छत के नीचे उपलब्‍ध उत्तर भारत के उत्पाद, बिक गए 17 लाख के सामान

काशी में पहली बार आयोजित उत्तर भारत का जीआइ महोत्सव अपने पूरे रंग में ढल गया है। एक-एक दिन में हजारों-हजार लोग उत्पाद को देखने के साथ खरीदारी करने के लिए पहुंच रहे हैं। छह दिवसीय महोत्सव में अभी तक 25 हजार से अधिक लोग पहुंचे हैं।

By Arun Kumar MishraEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Wed, 19 Oct 2022 10:09 PM (IST)
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दीनदयाल हस्तकला संकुल में जीआई प्रदर्शनी में हड्डी से बनाए गए उत्पाद भी है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी में पहली बार आयोजित उत्तर भारत का जीआइ महोत्सव अपने पूरे रंग में ढल गया है। एक-एक दिन में हजारों-हजार लोग उत्पाद को देखने के साथ खरीदारी करने के लिए पहुंच रहे हैं। छह दिवसीय महोत्सव में अभी तक 25 हजार से अधिक लोग पहुंचे हैं। वहीं, ग्राहकों ने 17 लाख रुपये से अधिक की खरीदारी कर जीआइ उत्पाद की पसंद पर अपना ठप्पा लगाया। ऐसा पहला अवसर है जब एक छत के नीचे उत्तर भारत के 11 प्रांतों के जीआइ उत्पाद के 100 स्टाल लगाए गए हैं।

जिला उद्योग केंद्र के सहायक प्रबंधक संजय कुमार ने बताया कि महोत्सव का आयोजन केंद्र सरकार व डीपीआइआइटी द्वारा किया जा रहा है। जीआइ उत्पाद के प्रचार व बिक्री पर लगातार जोर दिया जा रहा है।

नौकरी का आफर छोड़ थामा स्वरोजगार का दामन

भागलपुरी सिल्क जीआइ उत्पाद है। द संस्कृति की श्रीधी कुमारी बताती हैं कि स्वरोजगार से पहले फारेंसिक एंथ्रोपोलाजी की लखनऊ विवि से डिग्री हासिल की। ग्वालियर से बीएड किया। नौकरी का आफर मिला लेकिन शुरुआती संघर्ष के बाद भागलपुरी सिल्क के काम में हमने और 10 लोगों को रोजगार देने का मन बनाया है।

आइसीआर की नौकरी छोड़ महंगा रहे हैं दुनिया

कंप्यूटर साइंस में बीटेक व इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइसीआर) की नौकरी छोड़ अभिनव गुप्ता ने कन्नौज इत्र के काम में भविष्य संवारा है। बताते हैं कि 2015 में 50 हजार की नौकरी छोड़ दी। हमारे यहां 18 कारीगर काम पर हैं। इत्र को अमेरिका व जर्मनी आदि देशों से आर्डर आता है। 1.40 लाख जीएसटी व सात लाख रुपये आयकर जमा कर रहे हैं।

दुनिया में बेच रहे हैं हड्डी के आकर्षक आभूषण

संभल हार्न बोन क्राफ्ट एक जीआइ उत्पाद है। मोहम्मद सोएब बताते हैं कि ट्रक मेंं भरकर मध्यप्रदेश से हड्डी खरीदते हैं। इससे आभूषण रखने के बाक्स, फोटो फ्रेम, सींग से चम्मच समेत विभिन्न प्रकार की चूड़ियां आदि बनाते हैं। इसकी सबसे अधिक मांग अमेरिका, इंग्लैंड व खाड़ी देश समेत भारत के विभिन्न शहरों में किया जाता है। सभी सामान हाथों से बनाया जाता है।

प्रयागराज की परंपरागत कला हो रही दुनिया दिवानी

प्रयागराज का मूंज शिल्प जीआइ पंजीकरण की दिशा में है। आधुनिक दौर में भी हजारों साल पुराने मूंज की कला को दुनिया निहार रही है। नसरीन व सीमा बताती हैं कि सभी सामान हाथों से बनाते हैं। अक्टूबर व नवंबर तक ही मूंज मिलते हैं। ऐसे में साल भर के लिए अभी ही खरीद लिया जाता है। मूंज से वैवाहिक हल्दी का सेट और अन्य आभूषण बनाए जा रहे हैं। फोटो फ्रेम से लेकर इयर रिंग, गुच्छा, डलिया आदि बनाई जाती है। इसकी मांग अमेरिका, इटली आदि देशों से की जा रही है।

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