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वाराणसी में आज से खुल गया स्वर्ण अन्नपूर्णा मंदिर का द्वार, वार्षिक विधान के अनुसार चार दिन होंगे दर्शन

वाराणसी में स्वर्ण अन्नपूर्णा मंदिर का द्वार खोल दिया गया। चार दिनी विधान अनुसार दर्शन-पूजन का यही क्रम 26 अक्टूबर तक चलेगा। हालांकि 25 को सूर्यग्रहण के कारण मंदिर के कपाट दोपहर दो बजे से सात बजे तक बंद रहेंगे।

By pramod kumarEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Sun, 23 Oct 2022 10:51 AM (IST)
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अन्नपूर्णा मंदिर में प्रथम तल पर विराजमान स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट धनतेरस के दूसरे दिन खुल गए।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी उदया तिथि में रविवार को मिलने से बाबा विश्वनाथ के गेट नंबर एक (ढुंढिराज गणेश द्वार) स्थित अन्नपूर्णा मंदिर में प्रथम तल पर विराजमान स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट धनतेरस के दूसरे दिन खुल गए। भोर में चार बजे मंगला आरती व खजाना पूजन के बाद श्रद्धालुओं के लिए कपाट खोल दिए गए। भक्तगण दर्शन-पूजन करने में जुटे हैं।

अन्न-धन का खजाना बांटा जा रहा है। मध्याह्न भोग आरती के लिए आधे घंटे का विश्राम होगा और फिर रात 11 बजे तक दर्शन पूजन का क्रम चलेगा। चार दिनी विधान अनुसार दर्शन-पूजन का यही क्रम 26 अक्टूबर तक चलेगा। हालांकि 25 को सूर्यग्रहण के कारण मंदिर के कपाट दोपहर दो बजे से सात बजे तक बंद रहेंगे। अंतिम दिन अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा और रात 11 बजे महाआरती के साथ एक साल के लिए मंदिर के पट फिर बंद हो जाएंगे।

पूरा होगा 40 घंटे का इंतजार 

हर साल स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट धनतेरस पर ही खुल जाते हैं, लेकिन इस बार तिथियों के फेर से एक दिन बाद मंदिर के कपाट खुल रहे हैं। इससे अनजान महिलाओं का जत्था शुक्रवार दोपहर से बैरिकेडिंग में कतारबद्ध हो गया। पुलिस व मंदिर प्रशासन की ओर से बताने-समझाने के बाद महिलाएं कतार में लगी रहीं। उनका दृढ़ संकल्प रविवार को मंदिर के कपाट खुलने के बाद पूरा होगा। उनकी आस्था को देखते हुए मंदिर प्रशासन की ओर से महिलाओं के चाय-नाश्ता व भोजन का बैरिकेडिंग में ही इंतजाम किया गया।

सुरक्षा बाबत कैमरों की संख्या बढ़ा दी गई

मंदिर प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि सुरक्षा बाबत कैमरों की संख्या बढ़ा दी गई है। जिसके लिए कंट्रोल रूम बना है। जहां से सभी पर रहेगी नजर। मंदिर में जगह-जगह सेवादार तैनात रहेंगे। जिससे दिव्यांग व बुजुर्ग भक्तों को माता के दर्शन में समस्या न हो।

स्वर्ण प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में

मां अन्नपूर्णेश्वरी की स्वर्ण प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में है। इनमें उल्लेख है कि राजा दिवोदास के काल में काशी में भयंकर अकाल पड़ा। निजात के लिए राजा ने धनंजय नामक ब्राह्मण से मां अन्नपूर्णा की साधना को कहा। ब्राह्मण ने कामरूप जाकर मां की साधना की। लंबे समय तक दर्शन न मिलने से वह काफी दुखी हुआ और प्राण त्यागने को तालाब में छलांग लगा दी। भक्त के भाव से विह्वïल मां ने स्वर्णिम रूप में प्रकट हो दर्शन दिया। उनके आग्रह पर देवी अन्नपूर्णा सदा के लिए काशी की होकर रह गईं। मंदिर महंत के अनुसार वर्ष 1601 में तत्कालीन महंत केशव पुरी के समय भी देवी के इस विग्रह के पूजन का प्रमाण उपलब्ध है।

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