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Gopal Krishna Gokhale Birth Anniversary गोखले के नेतृत्व में आयोजित बनारस अधिवेशन में पड़ी बीएचयू की नींव

Gopal Krishna Gokhale Birth Anniversary गोखले के नेतृत्व में आयोजित बनारस अधिवेशन में पड़ी बीएचयू की नींव।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sat, 09 May 2020 01:02 PM (IST)
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Gopal Krishna Gokhale Birth Anniversary गोखले के नेतृत्व में आयोजित बनारस अधिवेशन में पड़ी बीएचयू की नींव
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। Gopal Krishna Gokhale Birth Anniversary (जन्म : नौ मई 1866, मृत्यु : 19 फरवरी 1915) 1905 में बनारस का कांग्रेस अधिवेशन भारतीय राष्ट्रवाद का जीता-जागता स्वरूप था। राष्ट्रवाद की यह बुनियाद न केवल अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष से, बल्कि स्वदेशी आंदोलन की घोषणा और भारतीय शिक्षा के प्रति बढ़ रही जागरूकता से पड़ी थी। लगभग 115 साल पहले जब भारत बड़े स्तर पर राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा था तो बनारस के राजघाट मैदान में 27 से 30 दिसंबर, 1905 तक महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। बाल गंगाधर तिलक, लाल लाजपतराय और बिपिन चंद्र पाल जैसे देशभर के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेता जुटे थे।

बीएचयू के पूर्व अधिकारी विश्वनाथ पांडेय के मुताबिक दरअसल, महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के देश के पहले हिंदू विश्वविद्यालय के प्रस्ताव को इसी अधिवेशन में 31 दिसंबर 1905 को बड़ी सराहना मिली थी। कांग्रेस अधिवेशन में ऐसे विश्वविद्यालय की बात जब उठी तो दुनियाभर के लोगों में भारतीय शिक्षा पद्धति को लेकर क्रांति मच गई।

सभी ने एक मत से स्वीकार किया प्रस्ताव

टाउनहॉल में ही सभी सदस्यों ने एक मत से एक जनवरी 1906 को इस प्रस्ताव को स्वीकार कर घोषणा भी कर दी। इस तरह यह कहना सर्वथा अनुचित नहीं होगा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विचार को गोपाल कृष्ण गोखले के नेतृत्व में हुए इस ऐतिहासिक बैठक से एक प्रबल आधार मिला।

बैठक में पाठ्यक्रम पर हुई थी चर्चा

विश्वविद्यालय के आधिकारिक किताब 'काशी हिंदू विश्वविद्यालय का इतिहास' के तीसरे अध्याय के मुताबिक कांग्रेस नेताओं की बैठक में हिंदू विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम का संक्षिप्त अंश या विवरण पुस्तिका को अंतिम रूप देने के साथ ही विश्वविद्यालय योजना को प्रोत्साहित करने के लिए एक अस्थायी समिति का भी गठन किया गया। बीएचयू में इतिहास विभाग की प्रो. अरुणा सिन्हा के मुताबिक 18-19वीं शताब्दी के वक्त भारत में ब्रिटिश शिक्षा पद्धति का ही बोलबाला था। यह शिक्षा भारत की आजादी के रास्ते में बाधक बन रही थी। इसी को लेकर महामना ने एक पूर्ण स्वदेशी शिक्षा पर आधारित विश्वविद्यालय की स्थापना की बात सोची, जिससे भारतीय युवा अपने आजादी का मार्ग खुद प्रशस्त कर सकें।

बनारस से स्थापित हुआ स्वशासन का लक्ष्य

'आकाश में बादल छा गए हैं, किसी भी समय तूफान उठ सकता है, आगे चट्टानें हैं और इनके चारों ओर क्रोधित लहरें और ऐसे समय में मुझे कांग्रेस रूपी नौका की जिम्मेदारी दे दी गई है।' यह बात गोपाल कृष्ण गोखले ने बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए कही थी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में महज सुधारों की बात न करते हुए 'स्वशासन' का एक साफ लक्ष्य स्थापित किया।

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