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Holi 2021 : वाराणसी में होलिका दहन का मुहुर्त आज शाम 7 बजे से मध्यरात्रि 12.39 तक, गोधूलि बेला शुभ

इस बार होली पर भद्रा नहीं रहेगा। होलिका दहन के लिए करीब 2 घंटे 10 मिनट का समय मिलेगा। होलिका दहन के दिन भद्राकाल सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर तक रहेगा। शाम को गोधूलि बेला में होलिका दहन करना शुभ रहेगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sun, 28 Mar 2021 02:24 PM (IST)
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शाम को गोधूलि बेला में होलिका दहन करना शुभ रहेगा।
वाराणसी [सौरभ चंद्र पांडेय] । फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाएगा। काशी  विद्वत  परिषद  के  महामंत्री  प्रो.  रामनारायण  द्विवेदी  के अनुसार होलिका की लौ से ही देश के वर्ष  भर  का  भविष्य  पता  चल जाता है। वहीं दीपावली और शिवरात्रि की तरह होलिका दहन की रात को भी महारात्रि कहा गया है। इसमें की गई पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस बार होली पर भद्रा नहीं रहेगा। होलिका दहन के लिए करीब 2 घंटे 10 मिनट का समय मिलेगा। होलिका दहन के दिन भद्राकाल सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर तक रहेगा। शाम को गोधूलि बेला में होलिका दहन करना शुभ रहेगा

12:39 बजे तक जला सकते हैं होलिका

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी  के  अनुसार  फाल्गुन  शुक्ल  की  पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। उसके  बाद  चैत्र  मास  के कृष्णपक्ष के प्रतिपदा तिथि को रंगोत्सव मनाया जाता है। पूर्णिमा  तिथि  27 को देर रात 2.28 बजे लग रही है। जो  28  को  मध्यरात्रि  12:39  बजे तक रहेगी। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार प्रतिपदा, चतुदर्शी,  दिन  और भद्रा काल में होलिका दहन नहीं करना चाहिए।इस बार भद्रा रविवार को दिन में 1:33 बजे समाप्त हो जा रही है। वहीं प्रदोष शाम को 6:59 बजे समाप्त हो जाएगा। उसके  बाद  सात  बजे  से  लेकर 12:39 बजे तक होलिका दहन किया जा सकता है।

लौ से दिखेंगे शुभ-अशुभ के संकेत

प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार होलिका दहन की लौ यदि पूरब दिशा की ओर उठती है तो इससे आने वाले समय में धर्म, अध्यात्म, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में उन्नति के अवसर बढ़ते हैं। पश्चिम में लौ उठे तो पशुधन को लाभ होता है। लौ यदि उत्तर का रुख करे तो देश व समाज में सुख-शांति बनी रहती है। यदि दक्षिण दिशा में होली की लौ हो तो अशांति और क्लेश बढ़ता है।

फाल्गुन पूर्णिमा होती है महारात्रि

होलिका दहन की रात को भी दीपावली और शिव रात्रि की भांति महारात्रि की श्रेणी में शामिल किया गया है। होलिका की राख को मस्तक पर लगाने का विधान है। ऐसा करने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। इस रात मंत्र जाप करने से जीवन सुखमय बनता है। जीवन में आने वाली परेशानियों का निराकरण होता है।   पूर्णिमा तिथि पर पानी में गंगाजल और गोमूत्र मिलाकर नहाना चाहिए।

होलिका में हरे वृक्ष को जलाना ब्रह्महत्या के समान

काशी हिंदू  विश्वविद्यालय  के  ज्योतिष  विभागाध्यक्ष  प्रो.  विनय  कुमार पांडेय के अनुसार हरे पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध करते हैं। हरे वृक्षों में जीवांश रहता है। जिसको जलाने की आज्ञा शास्त्र नहीं देता है। भारतीय संस्कृति में   वृक्ष को दानी गुरु माना गया है। जो अपना सर्वस्व दान दे देता है। अत: हरे वृक्ष को  होलिका में प्रयोग करने से ब्रह्महत्या के समान पाप लगता है।

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