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वाराणसी से सौ साल पहले चोरी होकर कनाडा गई थी अन्‍नपूर्णा की मूर्ति, जानिए क्‍या है मूर्ति की विशेषता

माता पार्वती का स्‍वरूप ही अन्‍नपूर्णा के रूप में आस्‍था का प्रतीक काशी में माना जाता है। माता का स्‍वरुप भक्‍तों को भरपेट भोजन और अन्‍न से परिपूर्ण रहने के आशीष का प्रतीक है। इसी रूप में माता अन्‍नपूर्णा की पूजा का प्राविधान माना गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Fri, 12 Nov 2021 04:16 PM (IST)
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माता पार्वती का स्‍वरूप ही अन्‍नपूर्णा के रूप में आस्‍था का प्रतीक काशी में माना जाता है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। मीरजापुर जिले में चुनार के बलुआ पत्‍थर से बनी अन्‍नपूर्णां की यह मूर्ति 18 वीं सदी की विशेषज्ञों ने बताई है। माता अन्‍नपूर्णा के एक हाथ में खीर का कटोरा और दूसरे हाथ में चम्‍मच है। मूर्ति तीन सदी पुरानी होने की वजह से काफी हद तक अपना प्राकृतिक कलेवर खो चुकी है लेकिन रखरखाव विदेश में काफी बेहतर तरीके से होने की वजह से अब भी बलुआ पत्‍थर की पहचान आसानी से की जा सकती है। काशी में आज भी इसी काल की कई मूर्तियां काशी के प्रस्‍तर कला की शिनाख्‍त करती हैं। मूर्ति के साथ ही मूर्ति स्‍थापना के निर्माण भी मूर्ति की वैभवशाली निर्माण की गाथा को सुनाती है। 

मान्‍यता है कि माता अन्‍नपूर्णा अपने हाथों में चमचे से खीर का प्रसाद भक्‍तों को वितरित कर उनके धन धान्‍य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। माता का यह स्‍वरूप ही अन्‍नपूर्णा के रूप में आस्‍था का प्रतीक माना जाता है। माता का स्‍वरुप भक्‍तों को भरपेट भोजन और अन्‍न से परिपूर्ण रहने के आशीष का प्रतीक है। इसी रूप में माता अन्‍नपूर्णा की पूजा का प्राविधान माना गया है। इस लिहाज से माता अन्‍नपूर्णा का यह प्रतीक काशी को आशीर्वाद स्वरूप अनाज का प्रसाद और कभी भूखा न सोने देने की कामना का प्रतीक है। सौम्‍य, शांत और कांतिपूर्ण देवी की मूर्ति हाथों में खीर के प्रतीक के तौर पर भोजन और पालन की मान्‍यता प्रदान करती हैं। भगवान शिव की पत्नी पार्वती के रूप में अन्नपूर्णा देवी, काशी में स्थापित मानी गई हैं। इसका प्रमाण शिव पुराण में भी मिलता है। अन्‍नपूर्णा माता को लेकर काशी में ऐसी मान्यता भी है कि यहां कभी कोई भूखा नहीं रहता है।

अन्‍नपूर्णा की मान्‍यता : मां अन्नपूर्णा ही मां दुर्गा का एक रूप हैं मानी गई हैं। मां अन्नपूर्णा ही अन्न की देवी हैं, इन्हीं का आशीर्वाद मिलने से विश्व में भोजन नसीब होता है। मां अन्नपूर्णा का एक रूप 'मां शाकुम्भरी देवी' माना गया है।शिव की पत्‍नी के रूप में मां पार्वती स्‍वरूप में काशी में अन्‍नपूर्णा की मान्‍यता है। विवाह के उपरांत भगवान शंकर ने कैलाश पर्वत पर रहने का फैसला किया, परंतु हिमालय की पुत्री पार्वती को मायके में रहना नहीं सुहाया तो उन्होंने काशी को रहने के लिए चुना था। इसके बाद से ही काशी मां अन्नपूर्णा की नगरी कही जाने लगी। काशी में बाबा दरबार क्षेत्र में 'मां अन्नपूर्णा' का एक स्‍वर्णमयी मंदिर मौजूद है। यह मंदिर अन्नकूट के दिन भक्‍तों के लिए खुलता है और उनको 56 तरह के भोग लगते हैं और वह अन्‍नधन का खजाना लुटाती हैं। जानकारों के अनुसार स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में मां अन्नपूर्णा के स्‍वरूप के बारे में विस्‍तृत वर्णन किया गया है।

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