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वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में हुआ ये जरूरी शोध, भीषण तापमान में भी उगाई जा सकेंगी गोभी व टमाटर समेत ये सब्जियां

भीषण गर्मी की बढ़ती समय अवधि को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) के विज्ञानी पौष्टिकता बढ़ाने के साथ-साथ जलवायु अनुकूल सब्जियों की किस्मों को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। आइआइवीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राकेश कुमार दुबे ने बताया कि संस्थान में टमाटर की दो संकर प्रजातियां ‘काशी अद्भुत’ और काशी तपस विकसित की गई हैं...

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Published: Mon, 01 Jul 2024 07:01 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jul 2024 07:01 PM (IST)
वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में अधिक तापमान में पैदा होने वाली प्रजाति पर मिली सफलता

मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव गंभीर रूप से सामने आने लगे हैं। इस साल डेढ़ महीने से भी अधिक समय तक पूरा उत्तर भारत 46-47 डिग्री सेल्सियस तापमान पर झुलसता रहा। भीषण गर्मी की बढ़ती समय अवधि को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइआइवीआर) के विज्ञानी पौष्टिकता बढ़ाने के साथ-साथ जलवायु अनुकूल सब्जियों की किस्मों को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। 

यहां के विज्ञानियों को अधिक तापमान में भी पैदा होने वाली गोभी, टमाटर, मूली की संकर प्रजातियों को विकसित करने में सफलता मिली है। आमतौर पर सर्दियों की सब्जियां मानी जाने वाली गोभी, टमाटर, मूली अब 34 डिग्री से लेकर 43 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में भी पैदा की जा सकेंगी।  

टमाटर की दो संकर प्रजातियां की गई विकसित

आइआइवीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राकेश कुमार दुबे ने बताया कि संस्थान में टमाटर की दो संकर प्रजातियां ‘काशी अद्भुत’ और काशी तपस विकसित की गई हैं जिनकी 34 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में भी अच्छी पैदावार मिलेगी। ‘काशी ऋतुराज’ मूली 38 से 43 डिग्री तक का ताप सह सकती है। यानी टमाटर और मूली की इस प्रजाति की पैदावार सर्दियों के साथ गर्मी के मौसम में की जा सकेगी।

‘काशी तपस’ को उप्र में व्यावसायिक खेती के लिए हरी झंडी भी मिल गई है। साथ ही काशी अद्भुत की सिफारिश की गई है। इसकी रोपाई फरवरी के पहले सप्ताह में की जाती है और तोड़ाई जून के तीसरे सप्ताह तक जारी रहती है। अंतिम तुड़ाई तक इसके फलों का आकार (45-60 ग्राम) और फलों का रंग (लाल) स्थिर रहता है।

अभी बाजार में जो मूली की प्रजाति है उसमें दाग बहुत है, लेकिन ‘काशी ऋतुराज’ बेहतर साबित होगी। विभिन्न ऋतुओं में इसकी उच्च विपणन योग्य उपज क्षमता 35-70 टन/हेक्टेयर तक है।

28 राज्यों में किया गया सफल परीक्षण

कलमी साग (करमुआ) ‘काशी मनु’ को तो 60 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहने के लिए तैयार किया जा रहा है। डा. दुबे ने बताया कि पिछले महीने केंद्रीय प्रजाति विमोचन समिति की ओर से इस साग का नाम काशी मनु तय किया गया। 28 राज्यों में गोभी, टमाटर, मूली व साग की नई किस्म का सफल परीक्षण किया जा चुका है और कुछ स्थानों पर तो पैदावार भी शुरू हो गई है। 

आइआइवीआर के कार्यकारी निदेशक डा. नागेंद्र राय बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के दौर में कलमी साग काफी कारगर सिद्ध होगा। इसे सूखा और अत्यधिक बारिश दोनों ही परिस्थितियों भी उगाया जा सकता है। लागत न के बराबर और मुनाफा इतना की किसानों की आय दोगुनी करने में कलमी साग की खेती काफी प्रभावी सिद्ध होगी। इसका प्रयोग पोषण एवं औषधीय गुणों के लिए प्राचीन काल से होता आया है।

संस्थान में पालक की भी एक ऐसी किस्म ‘काशी बारामासी’ विकसित की गई है, जिसकी जब चाहे बोआई कर सकते हैं। इसकी खास बात यह है कि बोने के मात्र 25-30 दिन बाद ही कटाई कर खाया जा सकता है। इसमें भी 40-45 डिग्री सेल्सियस तापमान सहने की शक्ति है।

भिंडी व मूली भी हो गई लाल 

डा. नागेंद्र राय ने बताया कि पोषण सुरक्षा के लिए अन्य सब्जियों पर भी शोध हो रहा है जो अधिक गर्मी में भी उगाई जा सकें। संस्थान में लाल भिंडी की किस्म तैयार की गई है। इसके अलावा 'काशी कृष्णा' काला गाजर की किस्म भी विकसित की गई है। इसमें 36 गुना तक एंटी आक्सीडेंट है। ऐसे ही लाल मूली विकसित की गई है जिसमें एंटी आक्सीडेंट की मात्रा अधिक है। इसमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट से डायबिटीज, हाइपरटेंशन व कैंसर की तीव्रता में भी कमी आएगी। 

इसके अलावा यहां विकसित पंखिया सेम की खासियत यह है कि इसके फूल, फल, पत्ते, तने और जड़ सभी को फायदे के लिए खाने में उपयोग किया जा सकता है। सभी में एंटी आक्सीडेंट के साथ भरपूर प्रोटीन मौजूद है। संस्थान ने अब तक विभिन्न सब्जियों, फसलों की 125 से अधिक किस्मों को विकसित किया है। 

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