अंतरराष्ट्रीय हकलाना जागरूकता दिवस : हल्के में न लें बच्चे का हकलाना, कराएं उपचार
अंतरराष्ट्रीय हकलाना जागरूकता दिवस मस्तिष्क के दो हिस्से सुनने व बोलने का काम करते हैैं। दाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के मस्तिष्क का बायां जबकि बाएं हाथ से काम करने वालों के दिमाग का दायां हिस्सा अधिक सक्रिय होता है।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 22 Oct 2021 09:35 PM (IST)
वाराणसी, मुकेश चंद्र श्रीवास्तव। मस्तिष्क के दो हिस्से सुनने व बोलने का काम करते हैैं। दाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के मस्तिष्क का बायां जबकि बाएं हाथ से काम करने वालों के दिमाग का दायां हिस्सा अधिक सक्रिय होता है। कार्पस कलोसम (संयोजिका तंत्र) मस्तिष्क के दाएं और बाएं सेरेब्रल गोलाद्र्ध को जोडऩे का काम करता है। जो लोग हकलाते हैं, उनमें कार्पस कलोसम कमजोर होता है। इसके कारण दोनों हिस्सों का आपस में संचार बाधित होने लगता है। डोपामाइन नाम का रासायनिक तत्व इस संचार को ऊर्जा देता है। मगर हकलाने वाले व्यक्ति में डोपामाइन की मात्रा ज्यादा होती है। इसके बढ़ जाने से मुंह की जगह पहले जीभ तो जीभ की जगह पहले मुंह चल जाता है। वहीं, पार्किंसन बीमारी में डोपामाइन घट जाने से स्टैमरिंग (हकलाना) कम हो जाता है।
गंभीरता से लेकर समय से कराएं इलाजयह समस्या कुछ बच्चों में आनुवंशिक कारणों से होती है तो कुछ में टीचर या घर के लोगों की पिटाई के भय से। हालांकि समय रहते इसे गंभीरता से लिया जाए तो उपचार संभव है। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित न्यूरोलाजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. वीएन मिश्र बताते हैं कि हकलाना एक बोलने संबंधित विकार है। लोगों को हकलाहट के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय हकलाना जागरूकता दिवस (इंटरनेशनल स्टमरिंग अवरनेस डे) मनाया जाता है। इस साल की थीम "शब्दों की यात्रा, लचीलापन और वापसी" है।
देश-दुनिया की कई बड़ी हस्तियां है इससे ग्रसित उन्होंने बताया कि इस समस्या से देश-विदेश हस्तियां भी ग्रसित हैं। इसमें बालीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता ऋतिक रोशक, केरला के पूर्व मुख्यमंत्री अंबुदरी पाथ, प्रसिद्ध पार्श्व गायक स्व. किशोर कुमार, धावक बो जांसन व अमेरिकी राष्ट्रीय बाइडन के भी नाम शामिल हैं। प्रो. मिश्र बताते हैं कि जो बाइडन के अमेरिका के राष्ट्रीय बनने के बाद स्टमरिंग को लेकर और अधिक शोध एवं नई तकनीक खोज की उम्मीद जगी है। प्रो. मिश्र बताते हैं कि दुनिया में एक प्रतिशत लोगों में कम या ज्यादा हकलाहट है। वहीं बच्चों में यह आंकड़ा पांच फीसद तक पहुंच जाता है। हालांकि बच्चों की यह समस्या काफी हद तक उम्र बढ़ने या उपचार के बाद दूर हो जाती है।
दवा के साथ साइक्लोजिकल थेरेपी भी कारगर प्रो. वीएन मिश्र ने बताया कि इस समस्या को जानने के लिए एमआरआइ, ईजी, खून-पेशाब अादि की जांच कराई जाती है। इसके साथ डोपमीन को कम करने, ब्रेन ग्रोथ करने के लिए दवाएं भी है। साथ ही साइक्लोजिक थेरेपी भी कारगर है। बताया कि अक्सर इंसान बोलते समय अगर हकलातने के कारण असहज महसूस करने लगता है। कारण कि यह समस्या एक भावनात्मक भी है, क्योंकि कई बार इस विकार में यह स्पष्ट पता नहीं चल पाता है कि व्यक्ति क्या बोलना चाहता है।
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