कबीरचौरा महोत्सव 2021 : कबीरदास के निर्वाण दिवस पर प्रथम संध्या में हुई सांगीतिक प्रस्तुतियां
संत कबीरदास के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में चल रहे तीन दिवसीय कबीरचौरा महोत्सव की प्रथम संध्या की। सांगीतिक प्रस्तुतियों ने इसे यादगार बना दिया। संत कबीर के मठ में गूंजते पंचनाद के स्वरों की हद भले ही शास्त्रीयता के बंधनों तक रही हो।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Wed, 24 Feb 2021 12:20 AM (IST)
वाराणसी, जेएनएन। 'मन लाग्यो मेरो यार फकीरी में..., 'हम न मरब मरिहैं संसारा... 'मेरो तेरो मनवा रे.... कैसे एक होई रे... आदि एक से बढ़कर एक भजन, कबीर भजनावली पर आधारित कथक नृत्य की प्रस्तुति और पंचनाद के गूंजते सुर..... अद्भाुत, अपूर्व, अतीव आनंद की सृष्टि.... कबीरमय वातावरण... और झूम उठे सब लोग। बात कर रहे हैं संत कबीरदास के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में चल रहे तीन दिवसीय कबीरचौरा महोत्सव की प्रथम संध्या की। सांगीतिक प्रस्तुतियों ने इसे यादगार बना दिया।
अद्भुत संयोग था, संत-सुर और संगीत का संगम, जिसमें पंचनाद की झंकार और टंकार ने हर हृदय को परमानंद की उस चरम अवस्था तक पहुंचा दिया, जहां श्रोता की सभी इंद्रियां, तन और मन के साथ एकाकार होकर डूब चुकी थीं। संत कबीर के मठ में गूंजते पंचनाद के स्वरों की हद भले ही शास्त्रीयता के बंधनों तक रही हो, पर लोग अनहद अतीव आनंद के चरम तक पहुंच चुके थे।
स्वकर्म संस्थान द्वारा आयोजित महोत्सव के द्वितीय दिवस की सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ मूलगादी मठ के महंत आचार्य विवेकदास, पद्मभूषण पं. साजन मिश्र, महेश चंद्र श्रीवास्तव, प. कामेश्वर नाथ मिश्र ने दीप प्रज्वलित कर किया। आयोजन की यह निशा नृत्य साम्राज्ञी पद्मश्री डा. सितारा देवी के जन्म शताब्दी वर्ष के नाते उनकी स्मृति में समर्पित रही।
कटनी से आए कबीर भजन गायक चंदूलाल कबीर ने अपनी मधुर वाणी से कबीर के साखी और उनके वाणी से जनता को मुग्ध कर दिया। नेहा सिंह के गायन के साथ तबले पर शशिभूषण मिश्र की थाप, हारमोनियम पर पंकज मिश्र और सारंगी पर आशीष मिश्र ने समां बांध दी। इसके बाद पंडित सुखदेव मिश्र के साथ कलाकारों ने पंचनाद के माध्यम से चारू पेशी राग की ऐसी प्रस्तुति दी कि लोग झूम उठे। खुद पंडित मिश्र वायलिन पर, सितार पर डा. श्रावणी विश्वास, तबला पर ललित कुमार, पखावज पर आदित्य दीप ने संगत दी।
अंत में पद्मश्री सितारा देवी की पुत्री कथक क्वीन जयंती माला मिश्रा की प्रस्तुति ने सबको आनंद के सागर में डुबो दिया। कृष्ण वंदना से शुरू कथक संत कबीरदास की रचना मन 'लाग्यो मेरो यार फकीरी में... तक जब पहुंचा तो लोग सुध-बुध खोकर हद से अनहद के चरम तक पहुंच चुके थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वकर्म संस्थान के सचिव डा. रवींद्र सहाय ने महोत्सव पर प्रकाश डाला। संचालन उमेश कबीर ने किया।
पं. कामेश्वर मिश्र को संत कबीर गुुरुश्री सम्मान महोत्सव में संस्थान द्वारा इस वर्ष का संत कबीर गुरुश्री सम्मान पं. कामेश्वर मिश्र जी को दिया गया। तूलिका से कैनवस पर उतरी कबीर की बानीसंत कबीर की साधनास्थली मूलगादी में चल रहे कबीरचौरा महोत्सव के दूसरे दिन राष्ट्रीय चित्रकला कार्यशाला का शुभारंभ हु़आ। इसमें कुल तीन दर्जन कलाकारों ने प्रतिभाग करते हुए कबीर की बानी, साखी-सबद-रमैनी को तूलिकाओं के माध्यम से जो भाव दिए कि देखने वाले रंग-विभोर हो उठे।
कार्यशाला की संयोजक काशी हिंदू विश्वविद्यालय चित्रकला विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा.उत्तमा दीक्षित ने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य कबीर के दोहे तथा उनके दर्शन को चित्रों के माध्यम से उकेर सहज भाव से दर्शकों के हृदय तक पहुंचा देना है। आज कबीर विश्व की जरूरत हैं, उनकी बानियां युगों-युगों तक मानवता का पथ-प्रदर्शन करती रहेंगी। बताया कि कबीर को समझना और उन्हें उकेरना कबीरत्व को प्राप्त होने की दशा है। उधर कलाकार भी कबीर-दर्शन के भावों में डूब उन्हें चित्ररूप देते हुए कबीर के साथ संपूर्णता में समरूप होते दिखे।
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