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750 साल से हो रही है ये खास आरती, गर्भगृह में सोने की परत; काशी विश्वनाथ के इन तथ्यों को नहीं जानते होंगे आप

Kashi Vishwanath Temple काशी विश्वनाथ मंदिर अब काशी की पहचान बन गया है। साल 2021 में हुए इस मंदिर के कायाकल्प के बाद से ही इसकी तस्वीर बदल गई है। अब काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। घाट से लेकर मंदिर के गर्भगृह तक मंदिर की तस्वीर बदल गई है। इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है और इसका नाता खुद महादेव से है।

By Swati SinghEdited By: Swati SinghUpdated: Wed, 23 Aug 2023 02:31 PM (IST)
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12 ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर, अद्भुत हैं इसकी माया; जानिए खास बातें

वाराणसी, जागरण डिजिटल डेस्क। कहते हैं काशी किसी को नहीं छोड़ती। काशी जो आया, वो कभी ना लौट सका। गंगा काशी पहुंची तो मोक्ष की वाहिनी बन गई, शिव पहुंचे तो महादेव और शक्ति पहुंचीं तो गौरा। जहां पहुंचे शब्द तो वेद बने और तुलसी पहुंचे तो रचा गया श्री राम चरित मानस। ये वही काशी है जहां भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ समय बिताया और यहीं पर विराजमान है काशी विश्वनाथ। काशी के कण-कण में शिव हैं और इन्हीं का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है काशी विश्वनाथ मंदिर।

काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे भगवान शिव के सातवें प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर को विश्वेश्वर नाम से भी जाना है। इस शब्द का अर्थ होता है 'ब्रह्मांड का शासक'।

ऐसे हुई थी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना

काशी विश्वनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। किवदंतियों के अनुसार जब भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, तब भोलेनाथ का निवास स्थान कैलाश पर्वत था और पार्वती मां अपने पिता के घर रहती थीं। एक बार जब शिव जी माता पार्वती से मिलने आए तो माता ने उन्हें अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की। माता पार्वती की बात मानकर भगवान शिव उन्हें काशी ले आए और तब से यहीं बस गए। भगवान शिव ने खुद को विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित कर लिया।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ का यह मंदिर युगो-युगांतर से यहां मौजूद है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे पौराणिक वेद-ग्रंथ में किया गया है। वर्तमान समय में भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए जिस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग आते हैं, उसका निर्माण वर्ष 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था और फिर कई राजाओं ने इस मंदिर में पूजा-पाठ और दान किया था।

रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी 'श्री काशी विश्वनाथ धाम' के प्रांगण में लगाई गई। अहिल्याबाई के बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया। कहा जाता है ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने भी मुख्य मंदिर का मंडप बनवाया था। कई महान साधु-संत जैसे आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, गोस्वामी तुलसीदास भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर चुके हैं।

जब मुगलों ने किया था मंदिर पर आक्रमण

काशी विश्वनाथ की भव्यता ने मुगलों को भी अपनी ओर आकर्षित किया था। इस भव्य धाम की संपदा को लूटने के लिए कई बार मुगल शासकों ने इस पर आक्रमण भी किया। 1194 में मुहम्मद गौरी ने इस मंदिर को लूटने के बाद इसे तुड़वा दिया था। जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने भी इस मंदिर को तुड़वाया था। ये भी कहा जाता है कि औरंगजेब ने भी इस पर आक्रमण किया था।

विश्वनाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कई रोचक तथ्य भी हैं। पुराणों से लेकर यहां के बुजुर्गों और पुराने लोग कई ऐसी किस्से कहानियां सुनाते रहते हैं। तो आइए इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जान लेते हैं..

  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल की नोक पर टिकी हुई है।
  • वैदिक पुराणों में बताया गया है कि काशी में भगवान विष्णु के अश्रु गिरे थे, जिससे बिंदु सरोवर का निर्माण हुआ था। साथ ही पुष्कर्णी का निर्माण भी उन्हीं के चिंतन से हुआ था।
  • काशी को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जो मनुष्य यहां शरीर त्यागता है वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके गण भैरवनाथ के दर्शन को अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि काशी के कोतवाल अर्थात काल भैरव की अनुमति के बिना दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता है।
  • ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी।

काशी विश्वनाथ का हुआ कायाकल्प

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर का कायाकल्प साल 2021 में हुआ। बाबा विश्वनाथ धाम का विकास हुआ और इसकी तस्वीर बदल गई। नया कॉरिडोर बनाया गया और साथ ही श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधा की गई। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के साथ ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अब तो हर वक्त यहां दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। घाटों को संवारने से लेकर क्रूज तक की व्यवस्था यहां की गई है।

इसके साथ ही मंदिर के गर्भगृह में 37 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है। दरअसल काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर सोने की परच लगी है। गर्भगृह की दीवारों पर चढ़ाई गई सोने की परत में कुल 37 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के खुलने का समय

काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर सुबह 2:30 बजे खुलता है। यहां प्रतिदिन पांच बार भगवान शिव की आरती होती है। पहली आरती सुबह 3 बजे और आखिरी आरती रात 10.30 बजे की जाती है। इसके साथ ही घाटों पर गंगा आरती की जाती है, जिसे देखने के लिए लोगों का हूजूम उमड़ता है।

मंगला आरती से बाबा विश्वनाथ का कपाट भक्तों के लिए खुलता है। उसके बाद दोपहर के भोग और शाम को सप्तऋषि फिर रात में श्रृंगार और शयन आरती की जाती है। इन आरती में सप्तऋषि आरती सबसे खास होता है। इस आरती को अलग अलग क्षेत्र के सात ऋषि या ब्राह्मण करते हैं, जो अलग-अलग गोत्र के होते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में ये परंपरा 750 वर्षों से अधिक समय से चली आ रही है।

इस वक्त उमड़ती है भक्तों की भीड़

वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। 12 ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ है, जिसके दर्शन के लिए लोग अक्सर यहां पहुंचते हैं। वैसे तो सावन के महीने में काशी विश्वनाथ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा महाशिवरात्रि और नाग पंचमी पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए लोग पहुंचते हैं।

ऐसे पहुंचे काशी विश्वनाथ धाम

काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको वाराणसी आना होगा। वाराणसी आप बस, ट्रेन और हवाई यात्रा करके भी आ सकते हैं। ट्रेन और बस से आने वालों के लिए मंदिर तक पहुंचने का सफर थोड़ा आसान हो जाता है। वाराणसी रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब साढ़े चार किलोमीटर है। बस स्टैंड से भी मंदिर की दूरी करीब इतनी ही है। बस स्टैंड से उतरकर आप ऑटो से यहां पहुंच सकते हैं।

अगर आप फ्लाइट से वाराणसी पहुंच रहे हैं तो आपको लगभग 25 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा। मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा बाबतपुर में लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

यहां से आप कैब या बस से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जा रहें तो इन बातों का रखें ध्यान

काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए अगर आप जा रहे हैं तो इन बातों का खास ध्यान रखें।

  1.  मंदिर में बाबा के दर्शन के लिए लंबी कतार लगती है। अगर आप जल्दी दर्शन करना चाहते हैं तो सुबह सात बजे ही यहां पहुंच जाएं। सुबह-सुबह यहां भीड़ कम रहती है और आप आसानी से बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर पाएंगे।
  2. सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में सेलफोन, कैमरा, धातु की वस्तुएं, सिगरेट और लाइटर आदि ले जाने की अनुमति नहीं है।
  3. यहां आपको अपने मोबाइल फोन, कार की चाबियां, कैमरा और अन्य सामान रखने के लिए निःशुल्क लॉकर की व्यवस्था है।