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वाराणसी में भगवान धन्वंतरि का मंदिर एक दिन के लिए खुला, भक्‍तों को आनलाइन ही दर्शन

कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी पर भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाई जा रही है। गुरुवार को सुडिय़ा स्थित धन्वंतरि निवास में भगवान के मंदिर के कपाट दोपहर 12 बजे खोला गया। यह मंदिर सालभर में सिर्फ आज ही खोला जाता है। शास्त्रोक्ति विधि से पूजा-भोग-आरती की गई।

By saurabh chakravartiEdited By: Updated: Thu, 12 Nov 2020 05:31 PM (IST)
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वाराणसी में सडि़या स्थित भगवान धनवंतरी का पूजा करते पूजारी।

वाराणसी, जेएनएन। कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी पर भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाई जा रही है। गुरुवार को सुडिय़ा स्थित धन्वंतरि निवास में भगवान के मंदिर के कपाट दोपहर बारह बजे खोला गया। यह मंदिर सालभर में सिर्फ आज ही खोला जाता है। शास्त्रोक्ति विधि से पूजा-भोग-आरती की गई। खास यह कि श्रद्धालुओं को इस बार आनलाइन ही दर्शन मिल पाएगा। पूजन-अनुष्ठान इंटरनेट मीडिया पर लाइव किया जाएगा।

 

मोक्ष नगरी की मान्यता वाले शहर बनारस में धनत्रयोदशी की रात अमृत कलश छलकेगा। इस उपहार के साथ बाबा विश्वनाथ की पुरी में अवतरित होंगे स्वयं भगवान धन्‍वंतरि जिनकी इस दिन जयंती मनाई जाती है। इसी दिन देवी लक्ष्मी साक्षात हरि के साथ दर्शन देंगी तो अन्नपूर्णेश्वरी भक्तों पर दोनों हाथों से धन-धान्य का खजाना दे रहीं हैा। हर कारज शुभ करने को विघ्नहर्ता गणपति भी महज एक-दो नहीं, 56 विनायकोंं के रूप में उपस्थित रहेंगे। तिथि विशेष पर आरोग्य अमृत बरसाने खुद भगवान धन्‍वंतरि आएंगे।

आज भी धन्‍वंतरि कूप के रूप में प्रसिद्ध महामृत्युंजय मंदिर के प्रांगण में पूजनीय

सुडिय़ा स्थित धन्‍वंतरि भवन में सैकड़ों वर्ष पुरानी उनकी अनूठी प्रतिमा इसी तिथि पर आमजनों के दर्शन के लिए खोली जाती है। रजत सिंहासन पर करीब ढाई फुट ऊंची रत्न जडि़त मूर्ति साक्षात हरि के सामने खड़े होने का आभास कराती है। एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे में शंख, तीसरे में चक्र और चौथे हाथ में जोंक तो दोनों ओर सेविकाएं चंवर डोलाती और दिव्य झांकी के दर्शन कर भक्त मंडली जयकार लगाती है। राजवैद्य शिवकुमार शास्त्री का परिवार पांच पीढिय़ों से प्रभु की सेवकाई में रत है। बताते हैं कि उनके बाबा पं. बाबूनंदन जी ने 300 वर्ष पहले धन्‍वंतरि जयंती की शुरूआत की थी। यहां से ही अन्यत्र इसका प्रसार हुआ। आज भी परंपरा जारी है, पूर्व संध्या पर ही प्रभु धन्‍वंतरि के विग्रह की साज-सज्जा, औषधीय पौधों से श्रंगार और प्रात: षोडशोपचार विधि से पूजन अर्चन। प्रथम दर्शन के लिए गोपाल मंदिर के षष्ठ पीठाधीश्वर स्वामी श्याम मनोहर महाराज की विशेष उपस्थिति और फिर खुल जाता है दरबार। पूर्व के वर्षों में दर्शन रात भर और अगले दिन तक चलता था लेकिन अब इसे तेरस की रात 10 बजे तक सीमित कर दिया गया है। मान्यता है कि प्रभु धन्‍वंतरि के दर्शन से वर्ष भर परिवार में रोग-व्याधि नहीं होती है। इसके लिए श्रद्धालुओं को प्रसाद के तौर पर फल-फूल दिया जाता है।

श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि विष्णु के 24 अवतारों में धन्‍वंतरि भी एक थे। वह सीधे समुद्र से हाथ में अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। यह काल दोपहर का था, ऐसे में पूजन इस बेला में ही किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार पृथ्वीलोक पर आयुर्वेद की उत्पत्ति काशी से ही होती है। कहा जाता है शिव ने विषपान किया, धन्‍वंतरि ने अमृत प्रदान किया और काशी कालजयी नगरी बन गई। स्वामी शिवानंद लिखित पुस्तक में काशी में धन्‍वंतरि तीर्थ का भी उल्लेख है जो आज भी धन्‍वंतरि कूप के रूप में प्रसिद्ध महामृत्युंजय मंदिर के प्रांगण में पूजनीय है। मान्यता है कि सात घाटोंं वाले इस कूप के हर घाट का पानी और पानी की तासीर अलग-अलग है।

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