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पं. महामना मदन मोहन मालवीय के तर्कों पर मंत्रमुग्ध विद्वान ने थमा दिया अपनी बेटी का हाथ

तकरीबन 140 वर्ष पहले 15 वर्षीय मदन मोहन अपने चाचा पंडित गदाधर प्रसाद के यहां मीरजापुर आए थे। उनके चाचा संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और यहां के गवर्नमेंट स्कूल में शिक्षक थे। इसी दौरान वर्ष 1878 में यहां धार्मिक व्यवस्था को लेकर विद्वानों की सभा आयोजित की गई थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Fri, 25 Dec 2020 06:55 AM (IST)
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तकरीबन 140 वर्ष पहले 15 वर्षीय मदन मोहन अपने चाचा पंडित गदाधर प्रसाद के यहां मीरजापुर आए थे।
मीरजापुर [सतीश रघुवंशी]। तकरीबन 140 वर्ष पहले 15 वर्षीय मदन मोहन अपने चाचा पंडित गदाधर प्रसाद के यहां मीरजापुर आए थे। उनके चाचा संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और यहां के गवर्नमेंट स्कूल में शिक्षक थे। इसी दौरान वर्ष 1878 में यहां धार्मिक व्यवस्था को लेकर विद्वानों की सभा आयोजित की गई थी। वे बड़े ध्यान से विद्वानों के वक्तव्य को सुनते रहे। इसी बीच उन्हें कुछ बातें खटकीं तो विद्वानों की सहमति से पंडित मदन मोहन ने भी अपने विचार रखे। किशोरवय मदन मोहन के विचारों व प्रमाणिक तर्कों से विद्वानों ने दांतों तले अंगुली दबा ली। इससे मोहित पंडित नंदराम सभा खत्म होते ही गदाधर से मिलकर अपनी इकलौती बेटी कुंदन देवी का मदन मोहन से विवाह करने का आग्रह किया। इसके बाद पंडित मदन मोहन मालवीय का विवाह कुंदन देवी के साथ हो गया। 

मीरजापुर जनपद भी महामना पंडित मदन मोहन मालवीय से अछूता नहीं रहा है। यहां के ईमली महादेव मोहल्ले में ससुराल होने के चलते उनकी यादों को लोग आज भी संजोए हुए हैं। पंडित मदन मोहन मालवीय को नेतृत्व और वकृत्व में प्रवीणता प्राप्त थी। महामना मालवीय को याद करते हुए पंडित शिव लाल अवस्थी कहते हैं कि उनके वकृत्व कुशलता की एक घटना का उल्लेख उनके पिता स्व. रामनाथ अवस्थी अक्सर करते थे। नगर स्थित बड़ी माता (ईमली महादेव) मोहल्ले के नंदराम की सुकन्या कुंदन देवी से मालवीय जी का विवाह हुआ था। मदन मोहन के चाचा गदाधर प्रसाद सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। उनकी अपने चाचा के प्रति अगाध श्रद्धा व लगाव भी था। वह स्कूल में नियमित रूप से उपस्थित रहते थे। अकारण अवकाश लेना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। स्कूल की प्रत्येक गतिविधियों में बढ़कर भाग लेते थे। यह संयोग की बात है कि जब मदन मोहन वर्ष 1878 में अपने चाचा के पास मीरजापुर आए थे। उन्हीं दिनों आयोजित धार्मिक सभा में महज 15 वर्ष की उम्र में उनके मधुर स्वर और तर्क सहित विचारों को सुन विद्वान दंग रह गए थे। सभा में मौजूद पंडित नंदराम, मदनमोहन से खासे प्रभावित हुए औक सभा समाप्त होते ही सीधे गदाधर के घर पहुंच गए। उन्होंने अपनी इलकौती बेटी कुंदन देवी का विवाह मदन मोहन से करने का प्रस्ताव रख दिया। मालवीय परिवार के वैष्णव परिवार से जुड़े होने के नाते श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता था। इसमें पंडित मदन मोहन मालवीय बड़े उत्साह व मनोयोग से भाग लिया करते थे। 

बैलगाड़ी से सात दिन में प्रयागराज से मीरजापुर आई थी बारात

पंडित मदन मोहन मालवीय व यहां की बेटी कुंदन देवी के विवाह का साक्षी बड़ी माता (ईमली महादेव) मोहल्ले का भवन व शिलापट्ट आज भी हैं। वे जीवनभर उनकी छाया बनी रहीं और हर पथ पर उनका साथ दिया। शहर का वह ऐतिहासिक स्थल अब उन यादों की दीवार लिए खड़ा है। जो भी उस रास्ते से गुजरता है, गर्व महसूस करता है कि पं. मदन मोहन मालवीय की ससुराल यही है। प्रयागराज से बैलगाड़ी से बरात आई थी और तब 90 किलोमीटर की दूरी तय करने में सात दिन लगे थे। इतना ही नहीं, विवाह के बाद सात दिनों तक जनवासा लगा। पूरी बरात सात दिनों तक आवभगत का लुत्फ उठाती रही और वैवाहिक रीतियां चलती रहीं। इसके बाद बरात वापस पहुंचने में सात दिन लग गए। इस तरह से पं. मालवीय की शादी की रस्में 21 दिनों में पूरी हुईं। 

21 फीट के मलखम संग करते थे रियाज

परिवार के रमाशंकर मालवीय ने बताया कि परिवार के सदस्यों ने बताया कि वह कसरत के शौकीन थे। बगीचा स्थित अखाड़ा में लगभग 21 फीट के मलखम संग रियाज करते थे। लोढ़ई कहार द्वारा 52 हाथ की रस्सी से कूंए से पानी निकाल कर नहलाया जाता था। वहीं लल्लू नाऊ द्वारा दामाद की मालिश की जाती थी।

भारत रत्न मिलने पर मना था जश्न

प्रमोद अग्रवाल ने बताया कि बीते 24 दिसंबर 2014 को भारत सरकार ने पं. महामना मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की घोषणा की। इसके बाद ईमली महादेव मोहल्ले में जश्न मनाया गया था। वर्ष 1998 में तत्कालीन नगर पालिका परिषद चेयरमैन अरुण कुमार दुबे की अगुवाई में उनकी इस यादगार को संवारने की पहल हुई और मकान पर एक बोर्ड लगाया गया। वर्तमान समय में भी प्रशासन इसे विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है और जल्द ही इस धरोहर को नया रूप दिया जा सकेगा। 

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