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1902 से 1942 के बीच महात्मा गांधी 13 बार काशी आए, BHU और विद्यापीठ हुआ करता था ठिकाना; हर बार बनारस को किया प्रेरित

महात्मा गांधी ने 1902 से 1942 के बीच 13 बार काशी की यात्रा की। उनके आगमन से स्वतंत्रता संग्राम में नई जान आ जाती थी। बीएचयू और काशी विद्यापीठ में युवाओं को देश सेवा और हिंदी भाषा के प्रति प्रेरित किया। इस लेख में उनके काशी प्रवास और योगदान का विस्तृत वर्णन है। कैसे उन्होंने हर बार अपनी मौजूदगी भर से वाराणसी को प्रेरित कर दिया था।

By Jagran News Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Wed, 02 Oct 2024 03:17 PM (IST)
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तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। जागरण

जागरण संवाददाता, वाराणसी। महात्मा गांधी 1902 से 1942 के बीच 13 बार काशी आए। वह कई-कई दिनों तक बीएचयू व काशी विद्यापीठ में रुकते थे और विद्यार्थियों के बीच सभाएं करते थे। देश में जल रही स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला के बीच महात्मा गांधी का काशी आगमन यहां के स्वातंत्र्य संग्राम से जुड़े सत्याग्रहियों में को रोमांचित कर उनमें हर बार नया उत्साह भर जाता।

बीएचयू महिला महाविद्यालय में हिंदी विभाग की प्रोफेसर सुमन जैन ने बापू की यात्राओं को लिपिबद्ध किया है। बताती हैं कि उनके ससुर स्व. आचार्य शरद कुमार साधक संत विनोबा भावे के रचनात्मक कार्यों में सहयोगी थे। हमेशा घर में सत्याग्रहियों का आना-जाना था। उन लोगों के मुख से तथा घर में उपलब्ध पत्रों-पत्रिकाओं, पत्राचारों को मैंने बाद में पुस्तक का रूप दिया।

कहती हैं कि महात्मा गांधी ने यहां युवाओं को देश व समाज की सेवा के लिए प्रेरित किया तो हिंदी भाषा का भी शंखनाद किया। नागरी प्रचारिणी सभा से लेकर बीएचयू के कार्यक्रमों तक में हिंदी के प्रति उनका जो आग्रही स्वभाव दिखा है, वह अनुपम है।

हर बार बनारस को गांधी ने किया प्रेरित

  • 21-22 फरवरी सन् 1902 : गांधीजी पहली बार काशी पहुंचे। काशी की गलियों की गंदगी और मंदिरों के पास रहने वाले भिखारियों का उन पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा था।
  • 1916 की फरवरी में 13 दिनों के अंतराल पर दो बार आए। तीन फरवरी 1916 को आए तो पांच दिन रहे। चार फरवरी 1916 को विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में सम्मिलित हुए। पांच फरवरी 1916 को नागरी प्रचारिणी सभा के 22वें वार्षिकोत्सव में हिंदी का शंखनाद किया। सात फरवरी तक यहां रहे।
  • 20, 21 फरवरी, 1916 : टाउनहाल मैदान में खिलाफत आंदोलन की सभा में। दूसरे दिन 21 फरवरी को बीएचयू में छात्रों की सभा में हिंदी में भाषण दिया।
  • 30 मई 1920 : असहयोग आंदोलन पर विचार करने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में अगमन।
  • 24 से 27 नवंबर, 1920 : बीएचयू में। 26 नवंबर को विश्वविद्यालय के अहाते के बाहर विद्यार्थियों की सभा तो उसी दिन शाम को टाऊनहाल में बाबा भगवानदास की अध्यक्षता में हुई सभा में। 27 नवंबर को महामना के आग्रह पर यूनिवर्सिटी हाल में भाषण। रामघाट के समीप सार्वजनिक सभा।
  • 9, 10 फरवरी 1921 : काशी विद्यापीठ का शिलान्यास।
  • 17 अक्टूबर 1925 : बलिया से लखनऊ जाते समय, बाबा भगवानदास के आग्रह पर काशी विद्यापीठ में छात्रों के बीच।
  • 7, 8 फरवरी 1927 : आचार्य कृपलानी द्वारा स्थापित गांधी-आश्रम के वार्षिकोत्सव में। नौ फरवरी को महामना के साथ एक जुलूस में दशाश्वमेध घाट पर स्वामी श्रद्धानंद को श्रद्धांजलि।
  • 25, 26 सितंबर 1929 : बीएचयू के छात्रों को संबोधित किया। काशी विद्यापीठ के पदवीदान समारोह में भाग।
  • दो अक्टूबर 1929 : हरिजनों के लिए चंदा एकत्र किए।
  • 27 जुलाई 1934 : हरिजन बस्तियों में, महिला सभा में 2788 रुपये चंदा मिला।
  • अक्टूबर 1936 : बाबू शिवप्रसाद गुप्त के आग्रह पर 12वीं बार आगमन। भारत माता मंदिर का उद्घाटन।
  • 21 जनवरी 1942 को 13वीं व अंतिम बार काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रजत समारोह में।
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