Martyr Day 2021: 60 वें जन्मदिन पर जौनपुर से राष्ट्रपिता ने दिया था पलो, बढ़ो व पढ़ो का नारा
Martyr Day 2021 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शीराज-ए-हिंद की सरजमीं पर दो बार आए थे। एक बार तो अपने 60 वें जन्मदिन के खास मौके पर जौनपुर में ही थे। यहीं पर उन्होंने पलो बढ़ो और पढ़ो का नारा दिया था। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मूलमंत्र भी दिया था।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sat, 30 Jan 2021 01:09 PM (IST)
जौनपुर, जेएनएन। Martyr Day 2021 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शीराज-ए-हिंद की सरजमीं पर दो बार आए थे। एक बार तो अपने 60 वें जन्मदिन के खास मौके पर जौनपुर में ही थे। यहीं पर उन्होंने पलो, बढ़ो और पढ़ो का नारा दिया था। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मूलमंत्र भी दिया था।
पहली बार 10 फरवरी 1920 में ट्रेन से काशी से लखनऊ जाते समय भंडारी स्टेशन पर हजारों लोगों को संबोधित किया था। एक बार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह तो दूसरी बार मानिक चौक पर राधामोहन मेहरोत्रा के आवास पर रुके थे। अगले दिन महिलाओं के अधिवेशन को संबोधित किया था। स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय रामेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी 115 वर्षीया महारानी देवी ने गांधीजी के दौरे का आंखों देखा हाल बताते हुए कहा कि वह स्वयं पति के साथ इस आंदोलन से जुड़ी रहीं और अधिवेशन में बापू का स्वागत किया था। बताया कि बापू जब देश को आजाद कराने को दौरा कर रहे थे। उस दौरान नागपुर के अधिवेशन में जिले के तमाम सेनानी उनके पति रामेश्वर प्रसाद सिंह के नेतृत्व में वहां गए। लोगों ने उनसे जौनपुर आने का निवेदन किया। 10 फरवरी 1920 को उनके आने की सूचना पर प्रशासन ने विद्यालयों को बंद कर दिया था, फिर भी करीब बीस हजार लोग राष्ट्रपिता का भाषण सुनने टूट पड़े। प्लेटफार्म पर बने मंच से ही उन्होंने 10 मिनट भाषण दिया। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात के साथ पलो, बढ़ो और पढ़ो का नारा दिया। आंदोलन को गति देने को गांधीजी दूसरी बार अपने 60 वें जन्मदिन पर 2 अक्टूबर 1929 को जौनपुर आए।
इस बार वे सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह के आवास पर रुके। अगले दिन महिलाओं के अधिवेशन को संबोधित किया। सेनानी रामेश्वर सिंह की डायरी में इन बातों का विधिवत उल्लेख है। पूछने पर महारानी देवी कुछ पल तक सोचने की मुद्रा के बाद 92 साल पुरानी कहानी का रुक-रुक कर न केवल जीवंत वर्णन शुरू कर दिया, बल्कि अतीत की यादों में खो जाने समय समय पर उनकी आंखें भी नम हो गईं। बताया कि दूसरी बार 2 अक्टूबर 1929 को उनके आवास पर भी आए। हालांकि रात्रि विश्राम मानिक चौक स्थित राधामोहन मेहरोत्रा के आवास पर किया था। अगले दिन सुबह महिला अधिवेशन में महिलाओं को चरखा चलाने और आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी। उसके बाद रामलीला मैदान में सभाकर एकता की शिक्षा दी। यहां पर उनकी दरियादिली देख लोग उनके और भी दीवाने हो गए। आगमन के दौरान वे किसी गांव में भ्रमण पर निकले तो देखा कि महिलाओं के कपड़े फटे और मैले थे। इस दशा पर उन्हें बड़ा दुख हुआ और भेंट में मिले अपने साफे के कपड़े को उन्होंने महिलाओं में वितरित कर दिया था।
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