वाराणसी के पंचगंगा घाट स्थित प्राचीन बिंदु माधव धरहरा मंदिर का मामला अब कोर्ट में, धार्मिक कार्य करने की मांगी इजाजत
पंचगंगा घाट स्थित प्राचीन बिंदु माधव धरहरा मंदिर क्षेत्र में हिंदुओं को पूजा-पाठ व अन्य धार्मिक कार्य करने की इजाजत देने और एक वर्ग विशेष को प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने की मांग को लेकर मंगलवार को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) आकाश वर्मा की अदालत में वाद दायर किया गया।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Wed, 01 Jun 2022 12:38 AM (IST)
जागरण संवाददाता, वाराणसी : Bindu Madhav Dharhara temple पंचगंगा घाट स्थित प्राचीन बिंदु माधव धरहरा मंदिर क्षेत्र में हिंदुओं को पूजा-पाठ व अन्य धार्मिक कार्य करने की इजाजत देने और मुसलमानों को प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने की मांग को लेकर मंगलवार को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) आकाश वर्मा की अदालत में वाद दायर किया गया। बिंदु माधव धरहरा मंदिर को भी मुगल बादशाह औरंगजेब ने तोड़वाकर यहां मस्जिद का निर्माण कराया था।
गायघाट निवासी अतुल, हरतीरथ निवासी राहुल मिश्रा, कोटवां निवासी राजेंद्र प्रसाद, मध्यमेश्वर कोतवाली निवासी श्यामजी सिंह व मच्छोदरी निवासी रमेश यादव ने वकील राजा आनंद ज्योति के मार्फत अदालत में यह वाद दायर किया है। अदालत ने इस पर सुनवाई के लिए चार जुलाई की तिथि तय की है। वाद में कहा गया है कि पहले पंचगंगा घाट पर बिंदु माधव (भगवान विष्णु) का मंदिर था। औरंगजेब ने इसे तोड़वा कर 1669 में बड़े चबूतरे पर मस्जिद का निर्माण कराया। इसे धरहरा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इसका कलात्मक पक्ष बेजोड़ है। गंगा तट पर स्थित मस्जिद मुगलकालीन उत्कृष्ट कला का अहसास कराती है। मीनारों के नाम पर इस मस्जिद का नाम धरहरा पड़ा। फिलहाल यह आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआइ) के संरक्षण में है। मौके के अवलोकन से स्पष्ट प्रतीत होता है कि मंदिर के अवशेष पर मुस्लिम उपासना स्थल का निर्माण कराया गया है।
देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में समस्त देवों के वास की मान्यता देव मंदिरों को देख कर पुष्ट होती है। इसमें शैव के साथ ही वैष्णव व शाक्त संप्रदाय के मंदिर गली-मोहल्लों में स्थित हैं। मत्स्यपुराण में दशाश्वमेध, लोलार्क कुंड, आदि केशव,बिंदु माधव व मणिकर्णिका को तीर्थ की मान्यता है। बिंदु माधव को लेकर यह मान्यता इससे भी पुष्ट होती है कि यह पंचगंगा पर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि यहां पांच नदियों (पंचनद) यथा गंगा, यमुना, विशाखा, धूतपापा और किरणा का संगम का मिलन होता है। इस नाते यहां श्रीहरि को समर्पित कार्तिक में मास पर्यंत स्नान व बिंदु माधव के दर्शन का विधान है। यहां ही रामानंदाचार्य परंपरा की मूल पीठ श्रीमठ अवस्थित है।
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