मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा मऊ, मछली पालन पर सरकार दे रही 60 फीसद तक अनुदान
मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर बनने की ओर है। इसी कड़ी में मऊ जिले में मछली पालन पर सरकार 60 फीसद तक अनुदान दे रही है। इसमें लोगों को मात्र 40 फीसद तक ही रकम लगानी पड़ेगी। इससे स्वरोजगार में खूब इजाफा भी होगा।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Wed, 22 Jun 2022 01:23 PM (IST)
मऊ, जागरण संवाददाता। प्रधानमंत्री मत्स्य संप्रदा योजना के तहत सरकार अत्यधिक मछली उत्पादन को जोर देकर लोगों को आत्मनिर्भरर बना रही है। मऊ को भी मत्स्य उत्पादन का हब बनाने के लिए अब यहां 25 लाख की लागत से रतनपुरा के बढ़या में हैचरी बनाई जा रही है। यह हैचरी जुलाई माह से काम करना शुरू कर देगी। यहां हर साल हजारों क्विंटल मछली उत्पादन का लक्ष्य निर्धारि किया गया है। ताकि यहां के मत्स्य व्यापार को बढ़ावा मिल सके।
जनवरी माह से ही शासन की तरफ से यहां हैचरी निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। इसके लिए बढ़या गांव के सुधीर को चयनित किया गया था। हैचरी निर्माण करीब दो हेक्टेयर में बन रही है। इसमें 60 फीसद सरकार की तरफ से अनुदान दिया गया जबकि 40 फीसद लाभार्थी को दिया जाना है। इसके तहत अब तक हैचरी बनकर तैयार हो चुकी है। छोटे-बडे़ कुल 15 तालाब खोद दिए गए हैं। यही नहीं इनमें पानी भी भर दिया गया है। जुलाई माह से यहां रोहू, ग्रास, सिल्वर, चाईना आदि मछलियों का मत्स्य बीज तैयार किया जाएगा। इसके बाद जिले भर के मत्स्य पालकों को निर्धारित दर पर मत्स्य बीज भेजा जाएगा। मत्स्य पालकों को बाहर से मत्स्य बीज मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बेमतलब हो चुकी है घोसी की हैचरी : घोसी के हाजीपुर गांव में स्थित जिले का एक मात्र हैचरी सरकार की उदासीनता के चलते बेकार पड़ी है। इसका शिलान्यास तत्कालीन पशुधन व मत्स्य मंत्री फागू चौहान ने 24 अगस्त 2001 को किया था। 9.89 लाख की लागत से इसका निर्माण किया गया था। इसमें प्रशिक्षण भवन, प्रशासनिक भवन के साथ मत्स्य बीज उत्पादन का सिस्टम बनाया गया लेकिन स्टाफ की कमी व धन के अभाव में बीज ब्रीडिंग नहीं हो रही है। यहां पर पांच मछुआ की जगह दो की तैनाती है। चौकीदार की नियुक्ति तक नहीं है। लाखों खर्च के बाद भी यहां पर गोरखपुर से स्पान लाकर या बहुत छोटे मछली के बच्चे लाकर तालाबों में रखकर बढ़ाकर बेचा जाता है। मत्स्य बीज को लाकर रख रखाव कर बड़ा करने पर 70 प्रतिशत बच्चे मर जाते हैं। वर्ष 2013-14 से यहां प्रशिक्षण भी नहीं हुआ।
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