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मेहमान की कलम से: सांसद रवि किशन बोले- काशी जब भी आता हूं, जीवित मोक्ष पा जाता हूं; बाबा विश्वनाथ ने बनाया स्टार

MP Ravi Kishan सांसद रवि किशन ने दैनिक जागरण से काशी और बाबा विश्वनाथ के प्रति अपने प्रेम को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे काशी में आने से उन्हें जीवित मोक्ष का अनुभव होता है और नई ऊर्जा मिलती है। रवि किशन ने अपने संघर्ष के दिनों को भी याद किया और बताया कि कैसे भोजपुरी ने उन्हें स्टार बनाया।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 13 Nov 2024 12:36 PM (IST)
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काशी विश्‍वनाथ के दरबार में सांसद रवि किशन। जागरण
काशी-विश्वनाथ-गंगा का दर्शन किसे न भाए। कौन ऐसा होगा जो बाबा की नगरी में आए और मुरीद न हो जाए। इनमें से ही एक हैं भोजपुरी फिल्म स्टार गोरखपुर के सांसद रविकिशन, लेकिन उनका सोच ‘काशी मरणान्मुक्ति:’ के फलसफे से कुछ अलग है।

बेबाकी से कहते हैं, आज जो कुछ भी पाया, बन पाया, बाबा ने बनाया। यहां जब भी आता हूं, जीवित मोक्ष पा जाता हूं, नई ऊर्जा से भर जाता हूं। यह हर एक के साथ होता है, यह बात और है कि वह कितना उसका अनुभव कर पाता है।

फिल्म सिंघम-3 की सफलता और लापता लेडीज के आस्कर में जाने से उत्साहित रवि किशन पिछले दिनों काशी में थे। उन्होंने बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ का दर्शन-पूजन किया। काशी के अपने अनुभवों को दैनिक जागरण से साझा किया। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश...

रवि किशन की जन्म भूमि भले जौनपुर हो लेकिन मन से बनारसी हैं। केराकत की माटी में पले-बढ़े और नाम करते हुए ख्याति की ऊंचाइयों तक चढ़े लेकिन देश-दुनिया में चाहे जिस मंच पर खड़े हों हर हर महादेव का उद्घोष काशी से बटोरी ऊर्जा और उत्साह का आभास कराता है।

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कहते हैं-कुछ भी तो नहीं था मैं। बाबा ने फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया। कला का कीड़ा था बचपन से तो रामलीला में माता सीता की भूमिका निभाता। मां की साड़ी ले जाता। पिता जी ने देखा तो खूब पिटाई की। ...तब क्या-क्या ख्याल आते थे, लेकिन अब लगता है पिता जी की पिटाई ने जीवन संवार दिया।

घर से भागा तब मां ने कुछ रुपये दिए थे, आशीर्वाद ही तो था वह। मुंबई पहुंचा तो बांद्रा की चाल में सिर छिपाने की छत मिली। संघर्षों के बाद इमरान खालिद की फिल्म पीतांबर में काम का मौका मिला, फ्लाप रही। उधार की जिंदगी की, नहीं चली। वह दौर था जब निर्देशक पूछते थे, काम चाहिए या पैसा।

सांसद रवि किशन। जागरण


सतीश कौशिक ने ‘तेरे नाम’ के लिए बुलाया। सहायक कलाकार पंडित का किरदार पसंद किया गया। पहचान मिली, लेकिन काम का संकट बना रहा। ऐसे दौर में अपनी भोजपुरी ने हाथ बढ़ाया, गले से लगाया और यहां पहुंचा दिया। ‘सइयां हमार’ हिट रही। ‘कब होई गवना हमार’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

पंडित जी बताईं न बियाह कब होई आदि फिल्मों के साथ सिलसिला बढ़ता चला गया। आज विभिन्न भाषाओं में 750 फिल्में कर चुका। ‘लापता लेडीज’ बेस्ट फारेन कैटेगरी में आस्कर में जा चुकी है। सिंघम-3 सफल रही। यह सब जो कुछ है बाबा के आशीष से तो ही हो सका। यहीं मोहल्ला अस्सी शूट किया और तन्नी गुरु के रूप में बनारस को जी लिया, मानो सपना पूरा हो गया।

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काशी को बचपन में देखा, बदलते देखा और देखता जा रहा हूं। बाबा ने, भोजपुरी ने बहुत कुछ दिया। स्टार बनाया। पहले भोजपुरी का अर्थ लोग लोअर क्लास मानते थे। आज आइएस, आइपीएस हों या बड़ा से बड़ा खरबपति कारोबारी भोजपुरी में बात करने में गर्व करते हैं।

भोजपुरी फिल्में मल्टीप्लेक्स में जगह पा रही हैं। मैं इसी माटी का हूं विदेश घूमा लेकिन सदा दिल से देशी रहा। अपनी आत्मा को बचा कर रखा। बाबा के आशीष से सकारात्मकता को जिंदा रखता हूं। लगता है उनका ही गण हूं। उन्हें शीश नवाता हूं, आगे बढ़ता जाता हूं। आज भोजपुरी ने ही स्टार बनाया, संसद में पहुंचाया। यह बाबा की कृपा और भोजपुरी का कर्ज है मुझ पर, अंतिम सांस तक ऋणी रहूंगा।

प्रस्तुति: प्रमोद यादव।

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