संगीत समारोह की तीसरी निशा में जल तरंग पर उदक ध्वनि निकाली तो जो जहां था वहीं ठहर गया
मा कूष्मांडा दुर्गा मंदिर संगीत समारोह की तीसरी निशा संगीत प्रेमियों में अमिट छाप छोड़ गई।
By Edited By: Updated: Sat, 31 Aug 2019 09:26 AM (IST)
वाराणसी, जेएनएन। मां कूष्मांडा दुर्गा मंदिर संगीत समारोह की तीसरी निशा संगीत प्रेमियों में अमिट छाप छोड़ गई। शुक्रवार रात एक तरफ मंच पर कलाकार पद्श्री पं. राजेश्वर आचार्य ने जैसे ही जल तरंग पर उदक ध्वनि निकाली तो जो जहां था वहीं ठहर गया। इस अतिप्राचीन व दुर्लभ संगीत की परंपरा को सुनने मंदिर में भारी भीड़ उमड़ी। वहीं पं. आचार्य ने अपने सुरों की तान से भी मां कूष्माडा को नमन किया। प्रख्यात नर्तक पं. रविशकर व ममता टंडन ने कथक के जरिए पूरा मंदिर झंकृत कर दिया।
पं. राजेश्वर आचार्य ने सबसे पहले जल तरंग की अवतारणा की। उन्होंने राग हंस ध्वनि में अलाप, जोड़ के साथ मध्य लय, दु्रत तीन ताल में निबद्ध धुन सुनाई। पं. आचार्य ने सबसे पहले राग जोग में विलंबित एक ताल में निबद्ध बड़ा ख्याल 'मैया बिगरी बना दे आज' फिर छोटा ख्याल 'मइया पावन चरण तिहारे' सुनाया। तत्पश्चात उन्होंने एक भजन 'भोले मोहन बानी बोले' सुनाकर समापन किया। उनके साथ तबले पर नंद किशोर मिश्र, हारमोनियम पर नागेंद्र शर्मा तथा तानपुरे पर डॉ. प्रीतेश आचार्य व शिवानी आचार्य ने संगत की।
अंत में भगवती पर आधारित भजन 'जय-जय भवानी दुर्गे रानी' पर कथक प्रस्तुत कर मां कूष्माडा को नमन किया। निशा की तीसरी प्रस्तुति मैहर घराने के सितार वादक पं. देव प्रसाद चक्रवर्ती की रही। चौथी प्रस्तुति पं. रोहित मिश्र व राहुल के शास्त्रीय गायन की रही। उन्होंने सबसे पहले राग मालकौंस में विलंबित एक ताल मध्य लय द्रुत तीन ताल में निबद्ध रचना 'पीर ना जाने बलमा' सुनाया। दूसरी निशा की मध्यरात्रि में कश्मीर घराने के ख्यात संतूर वादन अभय रुस्तम सोपोरी ने प्रस्तुति दी। उन्होंने स्वरचित राग महाकाली में निबद्ध रचना सुनाकर मां को संगीताजंलि अर्पित की। वहीं राजेंद्र प्रसन्ना ने बांसुरी वादन किया। संचालन सोनू झा, अंकिता खत्री एवं सीमा केशरी ने किया। कलाकारों का स्वागत महंत राजनाथ दुबे ने मा की चुनरी ओढ़ा कर किया।
- महोत्सव में तीसरे दिन विशेष श्रृंगार वार्षिक श्रृंगार महोत्सव के तीसरे दिन मां कुष्माडा का श्रृंगार कोलकाता से आए विशेष फूलों से किया गया। तीसरे दिन भी मां को छप्पन भोग अर्पण किया गया। आरती पं. संजय दुबे ने उतारी। श्रृंगार चंदन दुबे ने किया।
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