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National Technology Day : आगामी वर्षों में तकनीकी क्षेत्र में भारत होगा पूरी तरह आत्मनिर्भर : प्रो. पीके जैन

आगामी पांच से दस वर्षों में भारत तकनीकी क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस स्वप्न को पूरा करने के लिए सभी प्रौद्योगिकी संस्थान और तकनीकी विशेषज्ञ तन्मयता से लगे हैं। यह कहना है आइआइटी-बीएचयू के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार जैन का।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Wed, 11 May 2022 08:48 PM (IST)
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार जैन
वाराणसी, जागरण संवाददाता। आगामी पांच से दस वर्षों में भारत तकनीकी क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस स्वप्न को पूरा करने के लिए सभी प्रौद्योगिकी संस्थान और तकनीकी विशेषज्ञ तन्मयता से लगे हैं। देश में न तो मेधा की कमी है और न ही तकनीकी दक्षता की, कमी है तो बस आधारभूत ढांचे की। सरकार यदि दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए इसे उपलब्ध कराए तो देश के युवा कुछ भी कर सकते हैं।

आखिर विश्व के तकनीकी रूप से उन्नत देशों की अधिकांश शक्ति भारतीय युवा ही तो हैं। यह कहना है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार जैन का। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के उपलक्ष्य में दैनिक जागरण संवाददाता शैलेश अस्थाना से विस्तृत बातचीत में उन्होंने विविध पक्षों पर स्पष्ट रूप से अपने विचार रखे।

प्रश्न : वर्तमान में देश के समक्ष तकनीकी क्षेत्र में आप क्या बड़ी चुनौतियां देखते हैं।

उत्तर : देखिए, तकनीकी क्षेत्र में देश अब काफी आगे है। विभिन्न क्षेत्रों में काफी शोध हो रहे हैं और उसके अच्छे परिणाम भी आ रहे हैं। हमारे सामने मुख्य समस्या यह है कि शोधों के परिणाम धरातल पर भी उतरें। यही नहीं हो पाता।

प्रश्न : इसके पीछे क्या वजह है।

उत्तर : शोध दो प्रकार के होते हैं। एक तो जो शोधकर्ता की रुचि का है, दूसरा, जो बाजार या समय की मांग से जुड़ा है। हमारे देश में अभी ऐसा माइंड सेटअप बना हुआ था कि जो दूसरे देशों से आने वाली तकनीक ही श्रेष्ठ है। जबकि ऐसा नहीं है। यही कारण है कि इंडस्ट्री से विज्ञानियों के शोधों को प्राथमिकता नहीं मिलती इसलिए शोध जमीन पर नहीं उतर पाते।

प्रश्न : ऐसे में आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न कैसे पूरा होगा।

उत्तर : यह भी एक अद्भुत प्रयोग है। विदेशों में इंडस्ट्री विज्ञानियों को शोध के लिए फंडिंग करती है कि वे उसकी मांग के अनुसार, बाजार के अनुसार उत्पादों पर शोध करें और कुछ नया दें। हमारे यहां यह काम सरकार कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का जो लक्ष्य सामने रखा है, उसके लिए सरकार पूरी तत्परता से लगी हुई है। इसके लिए शोधों को फंडिंग भी हो रही है और विदेशी कंपनियों को अपने भारत में मैनुफैक्चरिंग के लिए भी आमंत्रित किया जा रहा है। जब मैनुफैक्चरिंग यहां शुरू होगी तो नवीनतम शोधों की मांग बढ़ेगी और देश आत्मनिर्भरता की ओर।

प्रश्न : देश को आत्मनिर्भर बनाने में आइआइटी बीएचयू की क्या भूमिका होगी।

जवाब : हमने इस दिशा में काफी बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को हाथ में लिया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर राज्य सरकार के रक्षा कारीडोर पर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने रक्षा क्षेत्र में अब आयात को लगभग पूरी तरह से रोक दिया है। ऐसे में देश की जरूरत के हिसाब से हथियारों से लेकर सभी साजो-सामान, विमान, राकेट, मिसाइल आदि अब सब कुछ यहीं बनेगा और वह भी पूरी तरह से स्वदेशी। इसके लिए इसरो की भी एक इकाई अपने परिसर में स्थापित की गई है। आइआइटी बीएचयू इस पर काम कर रहा है। आने वाले दिनों में भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा। इस परियोजना में आइआइटी कानपुर भी शामिल है।

प्रश्न : लिथियम बैट्री, चिप आदि के मामले में भारत अभी दूसरे देशों पर आश्रित है, इस पर क्या कुछ काम हो रहा है।

उत्तर : हां, अपने संस्थान में ही कई विज्ञानी लिथियम बैट्री, हाइड्रोजन ईंधन और इलेक्ट्रानिक वाहनों पर काम कर रहे हैं, उसमें सफलता भी मिलती दिख रही है। सरकार का जोर चिप निर्माण पर भी है। तकनीक और मैन पावर तो हमारे पास है पर आधारभूत सुविधाएं नहीं थीं, लिहाजा सरकार बड़ी-बड़ी कंपनियों को इसके लिए आमंत्रित कर रही है।

प्रश्न : एआइ पर क्या प्रगति है।

उत्तर : आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम बुद्धि आज की आवश्यकता बनती जा रही है। अपने संस्थान में इस पर काफी काम हो रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में, रक्षा के क्षेत्र में और विविध सेवाओं में इसकी उपयोगिता पर प्रयोग चल रहे हैं। कई एक में सफलता भी मिल चुकी है। अब तक हमने लगभग 56 पेटेंट भी करा लिए हैं। लगभग 20 पेंटेंट फाइल की गई है।

प्रश्न : आइआइटी बीएचयू की पहचान किस तकनीकी क्षेत्र में विशेष रूप से बनती दिख रही है।

उत्तर : हमारे यहां तो कुल 17 विभाग हैं, इनमें लगभग 325 फैकल्टी व सैकड़ों शोध छात्र काम कर रहे हैं। शिक्षा, रक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, अंतरिक्ष, फार्मेसी, बायो-मेडिकल, सिविल, सिरैमिक, पर्यावरण आदि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिस पर यहां काम नहीं हो रहा है। सबमें बेहतर परिणाम आ रहे हैं। हमने प्रिसिजन इंजीनियरिंग हब विकसित किया है, जिसमें सभी क्षेत्र की तकनीकों के थ्री-डी प्रिंटिंग के माध्यम से डिजाइनिंग कर विज्ञानी अपने काम को आसान कर रहे हैं।

प्रश्न : आइआइटी बीएचयू का सामाजिक अवदान क्या है।

उत्तर : कई स्तरों पर काम चल रहा है। गंगा में प्रदूषण कम करने के उपायों के तहत लिथियम बैट्रीयुक्त नावें, आसपास के गांवों के बच्चों को निश्शुल्क रूप से शिक्षित करने, विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने का कार्य यहां के छात्र कर रहे हैं तो अब आसपास के गांवाें के लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उनका डाटा बेस बनाने की योजना है।

प्रश्न : बनारस के लोगों को क्या लाभ मिल रहा है।

उत्तर : स्थानीय लघु उद्योगों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने के लिए दो पंजीकृत कंपनियां हमने बनाई हैं जो स्टार्ट अप करने वाले युवाओं को तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रही हैं। डिजाइन इनोवेशन सेंटर लघु उद्यमियों को प्रशिक्षण दे रही है। यहां के हैंडीक्राफ्ट, बनारसी साड़ी, चुनार के पाटरी उद्योग आदि डिजाइन व तकनीकी सहायता व प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

बनारसी साड़ी पर टैग लगाने के लिए बारकोड आदि बनाने का काम हो रहा है।

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