जलवायु परिवर्तन, घटती मृदा शक्ति से निपटेंगी धान की नई प्रजातियां, अंतराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र की बड़ी सफलता
वाराणसी स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) के विज्ञानियों ने एक तकनीक विकसित की है जिससे नई प्रजातियां विकसित करने का समय चार से पांच साल तक कम हो गया है। इससे बदलती जलवायु और भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी के बाद भी धान की पैदावार बढ़ाई जा सकेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 दिसंबर 2021 को इरी में स्पीड ब्रीडिंग सेंटर का उद्घाटन किया गया था।
मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। जलवायु परिवर्तन और मृदा की घटती पोषणीयता पूरे विश्व के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। यदि समय रहते इसका समाधान नहीं ढूंढा गया तो खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर संकट खड़ा हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि बदलती परिस्थितियों के अनुसार ही फसलों की प्रजाति विकसित की जाए।
वाराणसी स्थित अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) के विज्ञानियों ने एक तकनीक विकसित की है, जिससे नई प्रजातियां विकसित करने का समय चार से पांच साल तक कम हो गया है। इससे बदलती जलवायु और भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी के बाद भी धान की पैदावार बढ़ाई जा सकेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 दिसंबर 2021 को इरी में स्पीड ब्रीडिंग सेंटर का उद्घाटन किया गया था। इरी सार्क के निदेशक डा. सुधांशु सिंह के निर्देशन में कृषि विज्ञानी विकास कुमार सिंह, उमा महेश्वर सिंह व पल्लवी सिन्हा ने एक साल में ही धान की पांच फसलों को प्राप्त करने की तकनीक (प्रोटोकाल) विकसित की है। इसका नाम ‘स्पीड फ्लावर’ दिया है।
इरी सार्क के निदेशक डा. सुधांशु सिंह
इसके तहत उन्हें धान की उपज पर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को न्यूनतम करते हुए नई प्रजातियां विकसित करने के लिए होने वाले शोध के समय को लगभग चार साल तक घटाने में सफलता मिली है।अब छह, सात वर्ष के बजाय डेढ़, दो वर्ष में ही नई किस्में तैयार होंगी। इरी की यह उपलब्धि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच 2030 तक बढ़ती वैश्विक आबादी को चावल की आपूर्ति एवं उपज के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगा।
डा. सुधांशु सिंह ने बताया कि हमने अपने शोध के लिए प्रेरणा अमेरिका की अंतरिक्ष नासा से ली है। अपने मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उन्होंने अंतरिक्ष की परिस्थितियों में गेहूं के पौधों को विकसित करने में सफलता प्राप्त की।आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमने इसी तर्ज पर स्पीड फ्लावर तकनीक से धान की प्रजाति को विकसित किया है। उन्होंने बताया कि यह शोध प्लांट बायोटेक्नोलाजी जर्नल में पिछले साल नौ दिसंबर को प्रकाशित हो चुका है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बावजूद बहुत कम अवधि में अधिक उपज देने वाली और अधिक पोषणयुक्त चावल की बेहतर किस्में विकसित कर सकते हैं। इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा में हम अपने योगदान को बढ़ा सकेंगे। इस शोध में मिली सफलता के बाद अब सब्जी व अन्य फसलों की भी नई किस्में विकसित करने में सहायता मिलेगी। - डा. सुधांशु सिंह, निदेशक, दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान)
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