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महापंडित गागाभट्ट के वंशज थे पं. लक्ष्मीकांत, श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण में भी प्रमुख आचार्य की निभाई थी भूमिका

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कराने वाले कर्मकांडी दल के प्रमुख आचार्य व वैदिक विद्वान पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित का निधन हो गया है। शनिवार की सुबह सात बजे उन्होंने मंगला गौरी मंदिर के पास स्थित अपने आवास पर नश्वर शरीर का त्याग कर दिया। अंतिम संस्कार महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर दाेपहर एक बजे विधि-विधानपूर्वक वैदिक रीति-रिवाज से किया गया।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Sun, 23 Jun 2024 02:22 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2024 02:22 PM (IST)
आचार्य पं. लक्ष्मीकांत राम मंदिर ही काशी विश्‍वनाथ धाम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा में मुख्‍य पुजारी थे। जागरण

 जागरण संवाददाता, वाराणसी। आचार्य पं. लक्ष्मीकांत के सुपुत्र पं. जयकृष्ण दीक्षित ने बताया कि वे लोग महापंडित गागाभट्ट की 11वीं पीढ़ी के हैं। राज्याभिषेक के पश्चात जब छत्रपति शिवाजी काशी आए थे तो उनके साथ गागाभट्ट भी आए थे। उनके परिवार की एक शाखा काशी में रह गई थी और वे लोग उसी वंश परंपरा से हैं। उनका परिवार रामघाट के समीप मंगला गौरी मंदिर के पास निवास करता है।

अयोध्या में प्रभु श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कराने वाले पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित शुक्ल यजुर्वेद शाखा व घनांत अध्ययन के लिए वह काशी आ गए। हालांकि काशी में उनका परिवार पीढ़ियों से रहता था। श्रौत-स्मार्त यागों का उन्होंने विशिष्ट अध्ययन किया था। अपने गुरु व चाचा उद्भट विद्वान वेदमूर्ति गणेश दीक्षित (जावजी भट्ट) व स्व. वेद मूर्ति मंगलजी बादल से उन्होंने विभिन्न वेद-वेदांगों व उपनिषदों का विशद ज्ञान प्राप्त किया तथा शुक्ल यजुर्वेद का सांगोपांग अध्ययन किया।

वह रामघाट स्थित सांगवेद महाविद्यालय में वरिष्ठ आचार्य थे। उनकी अंतिम यात्रा आवास से जब सुबह 11 बजे चली तो सैकड़ों की संख्या में विद्वत जन, उनके शिष्य, अनेक राजनीतिक दलों के नेता, क्षेत्रीय नागरिक, विधायक डा. नीलकंठ तिवारी, मंडलायुक्त कमिश्नर कौशल राज शर्मा, पं. गणेश्वर शास्त्री द्रविड़, पं. विश्वेश्वर शास्त्री, प्रो. पतंजलि मिश्र, संतोष सोलापुरकर, नलिन नयन मिश्र, पार्षद कनकलता मिश्र के साथ मराठा समाज के लोग प्रमुख रूप से सम्मिलित हुए।

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देश में अनेक श्रौतयागों तथा स्मार्तयागों का किया था निर्देशन

आचार्य पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित ने देश में अनेक श्रौतयागों तथा स्मार्तयागों का निर्देशन किया था। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में श्रौतयज्ञशाला का निर्माण कराय तथा 1998 में नेपाल में विशिष्ट श्रौतयाग (सोमयाग) का अनुष्ठान कराया था।

रक्षासूत्र बंधवाकर प्रधानमंत्री ने किया था चरण-स्पर्श

अयोध्या में प्रभु श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पूर्ण होने पर जब पं. लक्ष्मीकांत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रक्षासूत्र बांधा तो उन्होंने पूरे भक्ति भाव से पं. दीक्षित का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया था।

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रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए किया गया चयन पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित की विद्वत्ता, याज्ञिगता और कर्मकांड की अत्यंत सूक्ष्म जानकारी को देखते हुए अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर नवनिर्मित भव्य मंदिर में उन्हें प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का दायित्व सौंपा गया था। इसके पूर्व श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण में भी उन्होंने प्रमुख आचार्य की भूमिका निभाई थी।

मिले थे अनेक सम्मान व पुरस्कार

l पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित को उनकी विद्वत्ता व वेदों के प्रचार-प्रसार के चलते अनेक पुरस्कार व सम्मान प्रदान किए गए थे।

l चारों पीठों के शंकराचार्य द्वारा विशेष सम्मान।

l सन् 2012 में द्वारका ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्ती द्वारा ‘वैदिक रत्न पुरस्कार’

l सन् 2014 में ‘वेदसम्राट पुरस्कार’

l सन् 2015 में ‘वैदिक भूषण अलंकरण’

l श्रृंगेरी के शंकराचार्य संस्थान द्वारा ‘वेदमूर्ति’ पुरस्कार

l ‘वेदसम्मान घनपाठी’ पुरस्कार प्राप्त

l साङ्ग वेद विद्यालय द्वारा ‘सम्मानपत्र’ एवं ‘वेदमूर्ति’ पुरस्कार

l सन् 2016 में लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा ‘देवी अहिल्याबाई राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित

l सन् 2019 में संपूर्णानंद संस्कृत विवि द्वारा स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सम्मान।

l श्रृंगेरी पीठ द्वारा सन् 2010 में विशेष सम्मान

l वर्ष 2022 में लोस अध्यक्ष द्वारा भारतात्मा पुरस्कार।

अनेक संगठनों, संस्थाओं, विद्वानों ने जताया शोक

वेदमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित के निधन से संपूर्ण विद्वत समाज मर्माहत है। अनेक संस्थाओं, संगठनों व विद्वानों ने उन्हें संस्कृत व संस्कृति का अप्रतिम साधक बताते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। शनिवार को दशाश्वमेध स्थित शास्त्रार्थ महाविद्यालय में आयोजित शोक सभा में विप्र समाज के संयोजक डा. पवन कुमार शुक्ल ने कहा कि जब भी किसी विशेष मुहूर्त अथवा पर्व विशेष की तिथियों में विषमता उत्पन्न होती थी तो काशी के विद्वतजन वैदिकगण पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित से ही समाधान कराते थे और उनके बताए निर्णय पर सभी सहमत हो जाते थे।

सभा की अध्यक्षता डा. सारनाथ पांडेय ने की। डा. गणेश दत्त शास्त्री, आचार्य विशाल ओंढेंकर, षडानन पाठक, विकास दीक्षित, अशोक कुमार आदि ने भी पुण्यात्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। काशी पंडित सभा के मंत्री व शारदा भवन के संचालक डा. विनोद राव पाठक ने कहा कि पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित प्रत्येक वर्ष गणेशशोत्सव में शामिल होकर गणेशजी को वेदमंत्र सुनाते थे। संस्कृत जगत की महान विभूति महामहोपाध्याय पं.लक्ष्मीकांत दीक्षित के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है।

उन्होंने कर्मकांड व वेद के क्षेत्र में कई प्रतिमान गढ़े। देश में अनेकों यज्ञों का आचार्यत्व किया। उनका जाना समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। विश्व हिंदू परिषद के आनुषांगिक संगठन धर्म जागरण न्यास के विजय चौधरी ने कहा कि काशी की विद्वत परंपरा के महानायक परम आदरणीय आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित का निधन अत्यंत दुखद है।


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