Mukhtar Ansari: मऊ दंगे में मुख्तार की मौजूदगी ने बरपाया कहर, खुली जिप्सी में लहराते हुए फोटो हुई थी पूरे देश में वायरल
Mukhtar Ansari Death मऊ भीषण दंगे में कुल 17 लोगों की जान गई थी। पूरा शहर जली हुई दुकानों के चलते मरघट सा दिख रहा था। 35 दिनों तक पूरा शहर कर्फ्यू की जद में रहा। पुलिस प्रशासन से हालात न संभले तो केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया और अंत तक बीएसएफ और आरएएफ को भेजा गया तब जाकर हालात किसी तरह नियंत्रण में आए।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। Mukhtar Ansari Death 14 अक्टूबर वर्ष 2005 का दिन भारत के गिने चुने सबसे बड़े दंगों में शामिल मऊ दंगे के लिए हमेशा के लिए काले अक्षरों में दर्ज हो चुका है। शाही कटरा के मैदान में भरत मिलाप लीला के मंचन के दौरान माइक का तर नोचे जाने की घटना से उपजे विवाद ने भीषण दंगे का रूप ले लिया और फिर इस दंगे में तत्कालीन विधायक रहे मुख्तार अंसारी की मौजूदगी तथा उसकी भूमिका ने पूरे दौगे को वीभत्स रूप दे दिया।
खुली जिप्सी में हथियारबंद गुर्गों के साथ पिस्टल लिए बैठे मुख्तार का शहर में भ्रमण दंगाइयों की हौसला अफजाई के लिए काफी था। अपराध का नंगा नाच तो मऊ की जनता ने उसे समय देखा जब सलाहाबाद मोड़ पर एक साड़ी कारखाने के मजदूर रामप्रताप यादव की गिरी लाश को देखने के लिए अनजाने में पहुंचे आसपास के दुकानदारों की भीड़ को मुख्तार अंसारी ने अपने वाहन से उतरकर खुली पिस्टल ले पैदल ही काफी दूर तक दौड़ा लिया था। उसकी यह फोटो भी उस समय के अखबारों और पत्रिकाओं में खूब छपी थी।
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हुआ यह कि 14 अक्टूबर 2005 की भोर में मऊ की रामलीला में होने वाले भरत मिलाप के मंचन की तैयारी 13 अक्टूबर की शाम से ही आरंभ हो गई थी। शाही कटरा के मैदान में हजारों की भीड़ भोर में होने वाली इस लीला को देखने के लिए जमा थी। बिरहा व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे थे। इसी बीच पास के मदरसे से निकले कुछ लड़कों ने माइक का तार नोच दिया।
इस पर रामलीला कमेटी के लोगों ने एतराज जताया और मौके पर मौजूद पुलिस प्रशासन से इसकी शिकायत की। पुलिस ने मामले में दो आरोपितों को हिरासत में लिया और कोतवाली भेज दिया। बात यहीं समाप्त हो जाती लेकिन दूसरे पक्ष की ओर से तत्कालीन विधायक मुख्तार अंसारी ने तुरंत अपने प्रभाव का प्रयोग कर लड़कों को छुड़ा दिया। इससे नाराज रामलीला समिति के लोगों ने लीला न करने का निर्णय ले लिया।
पूरी रात की मशक्कत के बाद नगर पालिका सभागार में पुलिस प्रशासन, रामलीला समिति के बीच हुई बैठक में यह तय हुआ की रमजान खत्म होते ही 29 अक्टूबर के बाद आरोपितों की गिरफ्तारी की जाएगी। रामलीला समिति ने भी तभी (आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद) ही रामलीला करने की बात कही। अब रामलीला ना होने की घोषणा सुन आसपास के गांवों से आए दर्शक अपने-अपने घरों को वापस जाने लग। तभी पौ फटते ही एक समुदाय की भीड़ काफी संख्या में संस्कृत पाठशाला की ओर बढ़ी।
इसे भी पढ़ें- मुख्तार के साथ आतंक के 'अध्याय' का भी अंत, माफिया के साथ ही दफन हो गए कई राज भीवहां अपने घर और परिवार को खतरे में देख हिंयुवा नेता अजीत सिंह चंदेल ने फायरिंग कर दी। बस इसी घटना ने दंगे का रूप ले लिया लेकिन कुछ ही देर में पूरे शहर में जिस तरह से दंगे की आग ने विकराल रूप धारण किया ऐसा लगा कि सब कुछ सुनियोजित था और इस दंगे की तैयारी पहले से कर ली गई थी।
अब जगह-जगह आगजनी का सिलसिला शुरू हुआ। चुन-चुन कर हिंदू समुदाय की दुकानों में आग लगा दी गई। आगजनी और मजहबी नारेबाजी का नग्न तांडव देख लोग भयभीत हो घरों में छिप गए। तभी सड़क पर पुलिस प्रशासन द्वारा कर्फ्यू का ऐलान हो जाने के बावजूद मुख्तार अंसारी और उसके लगभग आधा दर्जन गुर्गे खुली जिप्सी में सवार होकर हथियारों से लैस होकर शहर की सड़कों पर निकल पड़े।चौक, संस्कृत पाठशाला, मिर्जाहादीपुरा होते यह गिरोह सलाहाबाद मोड़ पर पहुंचा। तभी वहां ग्रामीण क्षेत्र से सुबह-सुबह एक साड़ी कारखाने में रोज की तरह काम करने आए रामप्रताप यादव नाम के युवक की गोली लगने से मौत हो गई। गोली की आवाज सुनकर दंगे से बेखबर सलाहाबाद मोड़ क्षेत्र में अपनी दुकानें खोलने पहुंचे आसपास के दुकानदार साड़ी कारखाने की तरफ बढ़े ही थे कि सामने से मुख्तार का काफिला वहां पहुंच गया और उधर से दुकानदारों के बढ़ते समूह को देख मुख्तार अंसारी अपनी जिप्सी से उतर पिस्टल ले उस भीड़ को दौड़ा लेता है लोग अपनी जान बचाकर गिरते-पड़ते भागे और मुख्तार की जिप्सी आगे बढ़ गई लेकिन इसके पीछे सलाहाबाद मोड़ क्षेत्र में आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट और गोलीबारी की जो घटनाएं हुईं वह रूह कंपा देने वाली थीं।
17 लोग मरे, 35 दिनों तक कर्फ्यू की जद में रहा शहर, बंद रही रेलइस भीषण दंगे में कुल 17 लोगों की जान गई थी। पूरा शहर जली हुई दुकानों के चलते मरघट सा दिख रहा था। जगह-जगह राख और ध्वस्त की गई दुकानों के मलबे बिखरे पड़े थे। 35 दिनों तक पूरा शहर कर्फ्यू की जद में रहा। पुलिस प्रशासन से हालात न संभले तो केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया और अंत तक बीएसएफ और आरएएफ को भेजा गया तब जाकर हालात किसी तरह नियंत्रण में आए। 14, 15 और 16 अक्टूबर तीन दिनों तक भीषण आगजनी, गोलीबारी और बमबाजी की घटनाएं शहर में जगह-जगह होती रहीं और पुलिस प्रशासन और प्रदेश तक के उसके आला अधिकारी वहां मौजूद रहकर भी मूकदर्शक बने हुए थे।
मुख्तार की हनक के आगे प्रशासन था नतमस्तकपूरा शहर भीषण दंगे की आग में जल रहा था लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ था। यही नहीं तत्कालीन विधायक मुख्तार अंसारी की हनक और रुतबा का आलम यह कि जिन अधिकारियों को दंगा रोकने के लिए शहर की सड़कों पर होना चाहिए उन्हें मुख्तार अंसारी ने पीडब्ल्यूडी के डाक बंगले में बैठा रखा था और इसे दंगा रोकने की रणनीति बनाने वाली मीटिंग का नाम दिया गया।
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