Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Pitru Paksha 2024: पितरों का श्राद्ध-तर्पण 17 सितंबर से, दो अक्टूबर को होगा पितृ विसर्जन

इस बार पितृपक्ष 18 सितंबर (बुधवार) से शुरू हो रहा है। तिथियों को लेकर इस बार कोई परेशानी नहीं होगी। सभी तिथियां क्रमवार हैं। 15वें दिन यानी दो अक्टूबर दिन बुधवार को अमावस्या एवं अज्ञात तिथिनाम श्राद्ध के तर्पण के साथ पितृ विसर्जन का समापन होगा। ज्योतिषाचार्य पंडित नरोत्तम द्विवेदी के अनुसार पितृपक्ष में पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष दूर होते हैं।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 12 Sep 2024 11:02 AM (IST)
Hero Image
Pitru Paksha 19 सितंबर से होगा जो दो अक्टूबर तक रहेगा। जागरण

 जागरण संवाददाता, वाराणसी। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने, उनकी पूजा-आराधना और तर्पण-अर्पण के विधान 17 सितंबर से ही शुरू हो जाएंगे। इस दिन मातृकुल के पितरों नाना-नानी आदि का तर्पण अर्थात पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा और प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को होगा। हालांकि उदयातिथि अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष का आरंभ 19 सितंबर से होगा जो दो अक्टूबर तक रहेगा।

इस दिन पितृ-विसर्जन किया जाएगा। वहीं तीन अक्टूबर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र आरंभ हो जाएगा।काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषि विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय के अनुसार 17 सितंबर को प्रात: 11 बजे पूर्णिमा तिथि लग रही जो 18 सितंबर को सुबह 8:41 बजे तक रहेगी। रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा के चलते पूर्णिमा का व्रत स्नान व मातृकुल का श्राद्ध इसी दिन होगा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. गिरजाशंकर शास्त्री बताते हैं कि उदयातिथि के मान के चलते आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आरंभ होने वाले पितृपक्ष का आरंभ 19 सितंबर से माना जाएगा, किंतु प्रतिपदा की तिथि मध्याह्न में 18 सितंबर को मिलने के कारण प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को किया जाएगा।

इसे भी पढ़ें-अवैध मतांतरण के लिए दिल्ली की NGO में बुना गया था गहरा जाल

इसके पूर्व 17 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध उस तिथि में प्राण त्यागने वाले पूर्वजों तथा मातृकुल के पूर्वजों यथा नाना-नानी आदि के लिए किया जाएगा। ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष व काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि 17 सितंबर को पूर्णिमा के श्राद्ध से आरंभ पितरों की पूजा-उपासना का यह काल अत्यंत शुद्ध, सात्विक तरीके से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्यतीत करना चाहिए।

इस काल में जिनके पिता जीवित नहीं हैं, उनकी पुण्यतिथि पर चौलकर्म करते हुए विधि पूर्वक पिंडदान, गरीबों को दान-पुण्य व ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

पितृदोष से बचने के लिए आवश्यक है पितरों की संतुष्टि

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रो. सुभाष पांडेय ने कहा कि 15 दिनों के काल में पूर्वजों की पुण्यतिथि के अनुसार निश्चित तिथि पर उनके लिए पिंडदान करना चाहिए। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पं. श्रीकांत मिश्रा बताते हैं कि भ्रम की स्थिति यह होती है कि लोग इस काल में पूजा-पाठ करने या मंदिर जाने से परहेज करते हैं। यह कोई सूतक काल नहीं, जिसमें मंदिर नहीं जा सकते, पूजा-अर्चना आदि नहीं कर सकते।

कहा कि यह एक पवित्र पक्ष है। इसमें सभी प्रकार के पूजन-अर्चन पूर्ववत किए जा सकते हैं। मंदिर आदि जाने में कोई दोष नहीं। इस पक्ष में नई वस्तुओं की खरीदारी भी की जा सकती है। हां, जिनके पिता नहीं हैं, उन्हें नए उपभोग की कोई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए। पिता की तिथि बीत जाने के बाद खरीदारी कर सकते हैं।

इसे भी पढ़ें-पूर्वांचल में स्मार्ट मीटर से बिजली चोरी पर लगेगी लगाम, काशी से होगी निगरानी

पूर्णिमा से ज्योतिर्विद पं. ऋषि द्विवेदी का कहना है कि महालया का आरंभ भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से होता है और यह आश्विन अमावस्या तक रहता है। जिस दिन पूर्णिमा उदयातिथि में होती है, उसी दिन महालया का आरंभ होता है और उसी दिन से श्राद्ध कर्म भी आरंभ होते हैं। चूंकि इस बार उदयातिथि में पूर्णिमा 18 सितंबर को है, इसलिए महालयारंभ भी उसी दिन से होगा। अतएव पूर्णिमा व प्रतिपदा दोनों दिन के श्राद्ध उसी दिन किए जाएंगे।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर