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दक्षिण भारतीय वेशभूषा में पीएम मोदी ने संस्कृत के श्लोकों से दिया राष्ट्रीय एकात्मता का संदेश

Kashi-Tamil Sangama प्रधानमंत्री वाराणसी में लालबहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर अपने विमान से दक्षिण भारतीय वेशभूषा में बाहर आए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन में आयोजन का उद्देश्य राष्ट्रीय एकात्मता को बताया। संस्कृत के श्लोक बोलते हुए इसे स्पष्ट किया।

By Shailesh AsthanaEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Sat, 19 Nov 2022 09:08 PM (IST)
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काशी तमिल संगमम् : इलायराजा से मिलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। Kashi-Tamil Sangamam : प्रधानमंत्री वाराणसी में लालबहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर अपने विमान से दक्षिण भारतीय वेशभूषा में बाहर आए। उन्होंने शर्ट-लुंगी पहनी हुई थी और कंधे पर गमछा था। बीएचयू के एंफीथिएटर में अपने संबोधन की शुरुआत हर-हर महादेव, वणक्कम काशी, वणक्कम तमिलनाडु से की। तमिलनाडु से आए नौ शैव पीठों के आधीनम (धर्माचार्य) का वंदन, अभिनंदन किया।

इंजीनियरिंग-मेडिकल व प्रबंधन के छात्रों से मिले और तमिल ग्रंथ तिरुक्कल की अनुदित पुस्तकों का विमोचन किया। समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, उप्र की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, तमिलनाडु के विश्व विख्यात संगीतकार व राज्यसभा सदस्य इलैया राजा, केंद्रीय सूचना प्रसारण राज्य मंत्री एल मुरुगन उपस्थित थे। पीएम दोपहर 1.15 बजे काशी आए और 4.48 बजे दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गए।

एक ही चेतना है जो पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधती है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन में आयोजन का उद्देश्य राष्ट्रीय एकात्मता को बताया। संस्कृत के श्लोक बोलते हुए इसे स्पष्ट किया। छांदोग्य उपनिषद के सूत्र एकोहं बहुस्याम: के माध्यम से कहा, ईश्वर ने कहा है, मैं एक ही हूं, बहुत से रूपों में प्रकट हुआ हूं। 

यहां भी एक ही चेतना है जो पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधती है, वही चेतना आज विभिन्न रूपों में यहां प्रकट हो रही है। विष्णु पुराण में कहा गया है, उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षंतद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:। यानी समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि है, उसे भारत भूमि कहते हैं और हम सब भारतीय इसकी संतति हैं। हम सुबह उठकर सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालम् कारममलेश्वरम् (द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति) के माध्यम से केदारनाथ से रामेश्वरम तक का ध्यान करते हैं।

राष्ट्रीय एकता के इसी भाव पर बल देते हुए संघ की शाखाओं में प्रात: काल गाए जाने वाले एकात्मता स्तोत्र के श्लोक गंगा सरस्वती सिंधु: ब्रह्मपुत्रश्च गंडकी। कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी में याद दिलाया जाता है कि हम वही भारतीय हैं जो प्रात:काल उठकर देश की सभी नदियों का स्मरण करते हैं। यह नदियां उत्तर की हैं तो दक्षिण भारत की भी।

तमिल विभूतियों को याद किया

पीएम मोदी ने काशी के निर्माण में तमिल विभूतियों के योगदान को याद किया। महाकवि सुब्रह्मण्य भारती को नमन करते हुए कहा, भारत वो राष्ट्र है, जिसने हजारों वर्षों से सं वो मनांसि जनताम् के मंत्र से एक दूसरे के मनों को जानते हुए, सम्मान करते हुए स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है।

मेरा अनुभव है कि रामानुजाचार्य और शंकराचार्य से लेकर चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य जी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन, राजेश्वर शास्त्री, पट्टाभिराम शास्त्री तक दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में आयोजित काशी तमिल संगमम् उत्तर और दक्षिण भारत के दर्शन, संस्कृति और साहित्य की गौरवशाली विरासत को एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना के अनुरूप समृद्ध करेगा।

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