Subramaniam Bharti : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती के सम्मान में बीएचयू में कुर्सी की घोषणा की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को तमिल अध्ययन के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती की याद में कुर्सी स्थापित करने की घोषणा की। बीएचयू में कला संकाय में चेयर स्थापित की जाएगी। सुब्रमण्यम भारती की 100वीं पुण्यतिथि पर यह घोषणा की।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sat, 11 Sep 2021 02:28 PM (IST)
जागरण संवाददाता, वाराणसी। Subramaniam Bharti प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को तमिल अध्ययन के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती की याद में कुर्सी स्थापित करने की घोषणा की। बीएचयू में कला संकाय में चेयर स्थापित की जाएगी। प्रधानमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए अहमदाबाद स्थित सरदारधाम भवन का उद्घाटन करते हुए सुब्रमण्यम भारती की 100वीं पुण्यतिथि पर यह घोषणा की। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि आज 11 सितंबर, एक और बड़ा अवसर है। भारत के महान विद्वान, दार्शनिक और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रमण्य भारती की 100वीं पुण्यतिथि है। एक भारत श्रेष्ठ भारत का जो सपना सरदार साहब ले जाते थे, वही दर्शन है महाकवि भारती के तमिल लेखन में पूर्ण दिव्यता के साथ चमक रहा है ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं इस अवसर पर एक महत्वपूर्ण घोषणा भी कर रहा हूं। बीएचयू में सुब्रमण्य भारती के नाम पर एक कुर्सी स्थापित करने का निर्णय लिया गया है। तमिल अध्ययन पर सुब्रमण्य भारती चेयर’ बीएचयू के कला संकाय में स्थापित किया जाएगा।
सुब्रमण्यम भारती की रचनाओं ने देश प्रेम की जो अलख जगाई थी, वह आज भी हमें प्रेरणा दे रही
यदि हम बीसवीं सदी के पूर्वार्ध के भारतीय साहित्य पर गौर करें तो पाएंगे कि पराधीन भारत में मलयालम कवि कुमारन आशान एवं वल्लथोल नारायण मेनन, ओडिया कवि गोपबंधु दास एवं लक्ष्मीकांत महापात्र, तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती, मराठी कवि भास्कर रामचंद्र तांबे एवं कुसुमाग्रज, बांग्ला कवि काजी नजरुल इस्लाम, कन्नड़ कवि कुवेम्पु, असमिया कवि अंबिकागिरि रायचौधरी और हिंदी कवि माखनलाल चतुर्वेदी एवं रामधारी सिंह दिनकर अपनी क्रांतिकारी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रवाद का शंखनाद कर रहे थे।सुब्रमण्यम भारती (1882-1921) ने मात्र दो दशकों के साहित्यिक जीवन में कवि, गद्यकार, पत्रकार और देशभक्त के रूप में तमिल साहित्य ही नहीं, तमिल लोक-मानस में भी एक नई चेतना का प्रसार किया।
मात्र पांच वर्ष की अवस्था में वे अपनी मां की स्नेहछाया से वंचित हो गए। चूंकि उनके पिता अनुशासनप्रिय थे, लिहाजा बालक सुब्रमण्यम को अपने समवयस्क बालकों से अधिक घुलने-मिलने की आजादी नहीं थी। लेकिन उन्होंने अपने अकेलेपन को अपने भीतर की खोज में बदल दिया। एकांत के उन्हीं दिनों में कविता के प्रति उनके पहले प्यार का अंकुर फूटा। पिता की नजरों से दूर रहकर वे मंदिरों के कोनों में छिपकर तमिल साहित्य का अध्ययन करते रहे। उन्होंने कंबन कृत तमिल रामायण रामावतारम का भी अध्ययन किया। पढ़ने के प्रति उनकी रुचि तो बहुत थी, पर उनका मन पाठ्य पुस्तकों में कम, साहित्य में अधिक लगता था।
अंतत: पिता ने उनको अंग्रेजी पढ़ने के लिए तिरुनेलवेली भेजा। लेकिन दसवीं की परीक्षा में वे फेल हो गए। स्थानीय रियासत की सेवा में रखवाने के अलावा उनके पिता के पास अब कोई विकल्प न था। चूंकि वे तमिल और अंग्रेजी के जानकार थे, और उस रियासत का राजा प्रतिभावानों की कद्र करता था, इसलिए उसने सुब्रमण्यम का स्वागत किया। उसी समय एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया। एक विरोधी ने दसवीं में फेल होने का प्रसंग छेड़कर उनको भरी सभा में अपमानित करने की कोशिश की। सुब्रमण्यम ने आरोप लगानेवाले को वाद-विवाद में मुकाबला करने की चुनौती दी। कुछ लोग उनकी प्रतिभा को भांप चुके थे। वहां वाद-विवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उस सभा में सुब्रrाण्य के वक्तव्य को सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। वहां उपस्थित विद्व-मंडली ने उनको भारती की उपाधि प्रदान की। इसके बाद से वे सुब्रमण्यम भारती के नाम से प्रसिद्ध हुए।
वर्ष 1898 में पिता के निधन के बाद वे तीर्थयात्रा करते हुए पैदल ही काशी पहुंचे। यहां उन्होंने सेंट्रल हिंदू कॉलेज में नामांकन कराया। काशी प्रवास के दो वर्षो के दौरान उनमें अंग्रेजी कविता के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई। काव्य-संबंधी परंपरागत मान्यताओं का बोध तो हुआ ही, कविता की परंपरागत सीमाओं को लांघकर अपने लिए एक नया क्षितिज तलाशने का हौसला भी पैदा हुआ। उनका मानना था कि अंग्रेजी पुस्तकें रटकर अपने को विशेषज्ञ माननेवाले लोग गणित का अध्ययन करते हैं, पर आकाश के एक तारे की सही स्थिति की खोज नहीं कर पाते। रट लगाते हैं अर्थशास्त्र की, पर अपने देश की आíथक गिरावट से बेखबर! अंग्रेजी शिक्षा संबंधी अपने अनुभव का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा था कि कॉलेज के शिक्षित भारतीय अनभिज्ञ हैं देश के गरिमामय अतीत से, वर्तमान पतन से और भावी उत्थान से। उन्होंने स्वदेशमित्रन नामक तमिल-दैनिक के सहायक संपादक के रूप में और फिर इंडिया नामक तमिल साप्ताहिक के संपादक के रूप में काम किया था। इंडिया में छपनेवाले क्रांतिकारी लेखों के कारण ब्रिटिश सरकार भारती को गिरफ्तार करके उनकी आवाज को दबाने का मन बना रही थी। गिरफ्तारी से बचने के लिए सितंबर 1908 में वे भूमिगत हो गए, जिस दौरान उनको सुब्रrाण्य अय्यर एवं सुब्रमण्यम शिव जैसे देशभक्तों का सहयोग भी मिला।
भारती लोकमान्य तिलक और अरविंद घोष से बहुत प्रभावित थे। तिलक के प्रति आदर व्यक्त करते हुए उन्होंने एक बेहतरीन कविता भी लिखी थी। अरविंद की प्रेरणा से उन्होंने वैदिक ऋषियों की कविता की एक लंबी परिचयात्मक भूमिका लिखी। उन्होंने पतंजलि के योगसूत्र और भगवद्गीता का अनुवाद किया। पतंजलि के समाधि पथ के भारती के अनुवाद को अरविंद ने बहुत श्रेष्ठ माना। उन्होंने अपनी एक लघुकथा लोमड़ी और कुत्ता में लिखा है कि एक शिकारी के पास कई तरह के शिकारी कुत्ते थे। उनमें से एक का नाम था बहादुर। एक दिन बहादुर की मुलाकात एक लोमड़ी से हुई। बहादुर ने लोमड़ी को सगर्व बताया कि उसका मालिक एक संपन्न शिकारी है जो उसे अच्छे ढंग से रखता है और भरपूर भोजन देता है। लोमड़ी जंगल में रहती थी, जहां उसे यथेष्ट भोजन नहीं मिल पाता था। उसको बहादुर से ईष्र्या हुई। उसने बहादुर से कहा कि वह जंगली जानवरों को ढूंढने में शिकारी की मदद करेगी। बहादुर उसे शिकारी के पास ले जाने के लिए तैयार हो गया।
अचानक लोमड़ी ने बहादुर की गर्दन पर एक बड़ा निशान देख उसके बारे में जानना चाहा। बहादुर ने बताया कि घर पर वह चांदी की जंजीर से बंधा रहता है। यह उसी जंजीर के निशान हैं। लोमड़ी को महसूस हुआ कि बहादुर स्वतंत्र नहीं है, बल्कि वह शिकारी का गुलाम है। लोमड़ी ने बंधनों में बंधे रहने के लिए बहादुर की भर्त्सना की और वह वापस घने जंगल की ओर चली गई। चाहे भूखे रहना पड़े या दुख उठाना पड़े, उसको अपनी स्वतंत्रता से समङौता मंजूर नहीं था। इस लघुकथा में भारती की प्रबल स्वातंत्र्य-चेतना व्यक्त हुई है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।