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महादेव की नगरी में विराजेंगे बालाजी, काशी में तिरुपति बालाजी मंदिर की तरह ही सजेगा प्रभु का दरबार

तिरुपति की तर्ज पर काशी में उनका दरबार सजेगा। खास बात यह कि मंदिर तिरुपति की अनुकृति नजर आएगा लेकिन आकार में कुछ छोटा होगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Tue, 18 Feb 2020 04:42 PM (IST)
महादेव की नगरी में विराजेंगे बालाजी, काशी में तिरुपति बालाजी मंदिर की तरह ही सजेगा प्रभु का दरबार
वाराणसी, जेएनएन। धर्मनगरी काशी में शैव-वैष्णव एका की पुरातन परंपरा और समृद्ध होने जा रही है। इसके कारक बनेंगे तिरुपति बालाजी। इसे मजबूती देने यहां स्वयं विराजेंगे। तिरुपति की तर्ज पर काशी में उनका दरबार सजेगा। खास बात यह कि मंदिर तिरुपति की अनुकृति नजर आएगा लेकिन आकार में कुछ छोटा होगा। इसके अलावा मुंबई व जम्मू में भी मंदिर बनाया जाएगा। दिव्य-भव्य मंदिर के निर्माण की गति को बढ़ाने के लिए 29 फरवरी को तिरुपति मंदिर ट्रस्ट की बैठक में निर्णय लिया जाएगा।

तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट ने गतवर्ष बनारस समेत दो शहरों में बालाजी का मंदिर स्थापित करने का निर्णय ले लिया था। काशी में इसके लिए भूमि चिह्नित करने के लिए ट्रस्टी वीएनपी वेंकटेश के नेतृत्व में जमीन की तलाश भी शुरू की जा चुकी है। इस कार्य में आंध्र से जुड़़े विशिष्टजनों को लगाया गया है लेकिन इसे लेकर गोपनीयता बरती जा रही है।

मंदिर ट्रस्ट का प्रयास है कि तिरुपति बालाजी का मंदिर दशाश्वमेध समेत गंगा तटवर्ती किसी इलाके में बने ताकि बनारस आने वालों को दोनों देवों के दर्शन आसानी से हो सकें। इस लिहाज से कई स्थलों को चिह्नित किया जा चुका है लेकिन एक साथ चार एकड़ जमीन न मिलने से अभी तलाश जारी है।

तिरुपति से आएंगे अर्चक-सेवादार

मंदिर के अर्चक-सेवादार तिरुपति बालाजी से ही आएंगे। उनके लिए मंदिर परिसर में धर्मशाला व अर्चकों-सेवादारों के लिए आवास भी बनाए जाएंगे। ऐसे में कुछ अधिक जमीन की जरूरत होगी। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम् के अन्नमाचार्य प्रोजेक्ट में निदेशक प्रो. वी विश्वनाथन के अनुसार 29 फरवरी को मंदिर निर्माण के संबंध में फैसले के बाद इस दिशा में तेजी आएगी।

बनारस में पहले से बालाजी का मंदिर

शैव-वैष्णव एका की नगरी काशी में पहले से ही बालाजी का मंदिर है। पंचगंगा घाट की सीढिय़ों पर बालाजी, पत्नी श्रीदेवी व भूदेवी की मूर्ति स्थापित हैै। मान्यता है कि प्रभु की मूर्ति गंगा तट पर निवास करने वाले गरीब ब्राह्मïण को मिली जिसे उन्होंने पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया था। 1857 में पेशवाओं ने विग्रह मंदिर में स्थापित किया। भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान इस मंदिर में शहनाई का रियाज करते थे। 

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