Premchand Birth Anniversary : मुंशी प्रेमचंद के पूछते हैं किरदार, मुंशी जी को क्यों भूल गए सरकार!
मुंशी जी की कहानी में झूरी के बैल हीरा और मोती तो अपनी दर पर लौट आए थे मगर उनकी वाराणसी लमही को सजाने-संवारने के वादे उनकी जन्मस्थली पर नहीं लौट सके।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 31 Jul 2020 03:24 PM (IST)
वाराणसी [सौरभ चंद्र पांडेय]। मुंशी जी की कहानी में झूरी के बैल हीरा और मोती तो अपनी दर पर लौट आए थे, मगर उनकी लमही को सजाने -संवारने के वादे उनकी जन्मस्थली पर नहीं लौट सके। यही कारण है कि करोड़ों रुपये खर्चने के बाद भी सपने अधूरे हैं और योजनाएं अधर में। बेहतरी की आस में मुंशी जी उम्मीदों की फाइलों में खो गए। जिन पात्रों को मुंशी जी ने अपनी लेखनी से अमर बनाया वे आज भी लमही में किसी न किसी रूप में दिखते हैं। इन मौन किरदारों का एक सवाल होता है-कहां गया साहित्य सरोकार, मुंशी जी को क्यों भूल गए सरकार।
मुंशी प्रेमचंद के गांव को प्रशासन ने एक दशक पहले हेरिटेज विलेज बनाने की घोषणा की थी। तय था कि मुंशी जी के घर के पास पोखरे का सुंदरीकरण कर बाउंड्री बनेगी। फव्वारा और लाइटिंग के साथ ही साहित्य प्रेमियों के लिए बैठने की व्यवस्था कर उसे पर्यटन स्थल बनाएंगे। गांव वालों में उम्मीद जगी कि यहां पर्यटन का मार्ग प्रशस्त होगा। रोजगार के अवसर मिलेंगे, लेकिन फाइलों पर समय की धूल जमती गई। विकास के इंतजार में मुंशी जी का गांव ठहर गया। पोखरे के पानी का रंग काला हो गया। प्रेमचंद स्मारक की देखरेख करने वाले सुरेश चंद्र दुबे ने बताया कि वीडीए ने वर्ष 2008 में पोखरे का सुंदरीकरण कराया था। उसके बाद दैनिक जागरण के अभियान के क्रम में तालाब साफ हुआ। इसके बाद तो कोई झांकने नहीं आया। हां, यह जरूर है कि जयंती पास आने पर प्रशासनिक अमला सक्रिय दिखने के प्रयास में लग जाता है।
सॉरी मुंशी जी, यह हमारे हिस्से का नहीं हैकरोड़ों रुपये खर्च करके वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने प्रवेश द्वार पर मुंशी जी की रचनाओं के पात्रों की प्रतिमाएं उकेरीं। इसकी खूब सराहना हुई। हालांकि विभागों में सामंजस्य न होने से देखरेख के अभाव में प्रतिमाओं के आगे झाडिय़ां खड़ी हो गईं। हर वर्ष इंतजार रहता है कि 31 जुलाई के पूर्व सफाई होगी, लेकिन इस बार कोरोना संकट के कारण इसके लिए भी अगले वर्ष तक इंतजार करना होगा।
सैलून, शौचालय करते हैं स्वागतमुंशी जी के गांव में घुसते ही अवैध रूप से स्थापित एक सैलून और एक बजबजाता शौचालय सलामी देता है। दाएं और बाएं बने पार्कों की हालत किसी जंगल से कम नहीं है। उद्यान विभाग कहता है सफाई उसके जिम्मे नहीं है। गांव के सफाईकर्मियों को प्रधान अनुमति देते नहीं। बची-खुची कसर अवैध आटो स्टैंड पूरी कर रहा है। हालांकि इन समस्याओं को स्थानीय लोग भी सुलझा सकते हैं। लेकिन गांव में दो गुट हैं। एक हटाएगा तो एक बसाएगा। इन सबके बीच पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है।
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