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मर रही इंसानियत: वाराणसी में अचानक मौतें बढ़ीं चार गुना तो लकड़ियों के भी भाव छूने लगे आसमान, शव जलाने के लिए लग रही लंबी लाइन

उत्‍तर प्रदेश में इस समय भयंकर गर्मी पड़ रही है।वहीं वाराणसी में मौसम की तल्खी कम होने के बाद भी उमस व गर्मी का कहर जारी है। उल्टी-दस्त व बुखार पीड़ितों से अस्पतालों की ओपीडी में कतार है तो वार्ड भरे हुए हैं। गर्मी के कारण मरने वालों की संख्‍या भी अधिक है। ऐसे में वाराणसी के घाटों पर लंबी लाइन लग रही है।

By Shailesh Asthana Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 20 Jun 2024 02:27 PM (IST)
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मणिकर्णिका घाट पर रखीं लकड़ियां व जलते शव। जागरण
जागरण संवाददाता, वाराणसी। ‘लकड़ी क्या भाव है भैया!’ पहले तो कोई जवाब देने की बजाय दुकानदार चेहरा पढ़ता रहा। फिर अपने काम में लग गया। पुन: यही प्रश्न दो बार और करने पर उत्तर मिला, ‘लकड़ी नहीं है, खत्म हो गई।’ ‘अरे, इतनी तो पड़ी है, क्या भाव है’, ‘कहे न, खत्म हो गई, आगे बढ़िए।’

मणिकर्णिका घाट पर दो-तीन लकड़ी के टालों पर पूछने पर यही जवाब मिला, ‘लकड़ी नहीं है, खत्म हो गई।’ ऊपर की ओर सीढ़ियों पर चढ़ने पर एक दुकानदार से जब फिर यही प्रश्न किया गया तो उसने पूछा, ‘कितना चाहिए’।

‘पांच मन’, यह बताने पर वह बोला, ‘कुल 9500 रुपये लगेंगे, ढुलाई, चिता सजवाई तक, जगह देख लीजिए, पहुंचा दें।’ ‘अरे, इतनी महंगी!’ कहने पर उसने कहा, ‘जा तब खोजा, चाहे कहीं अउर ले जाके फुंक ला।’ यह वह महाश्मशान है, जहां की चिता कभी बुझती नहीं और मान्यता है कि अंतिम संस्कार यहां होने पर दिवंगत आत्मा को सीधे मोक्ष मिलता है।

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इन दिनों यहां लकड़ियों की कमी बताकर खुली लूट मची है। जो लकड़ी कुछ दिन पूर्व तक 480 रुपये प्रति मन बिक रही थी, उसके 1600 से 1700 रुपये तक वसूले जा रहे हैं, जबकि इस बीच में कहीं भी लकड़ी की कीमत में वृद्धि नहीं हुई है। मृृतक को मोक्ष मिले, न मिले, अपने प्रियजनों के विछाेह में बिलखते स्वजन यहां आकर खुली लूट के शिकार हो रहे हैं। इस ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है।

मौत के कहर की लहर में किश्ती जमा रहे व्यापारी

इन दिनों प्रचंड तापमान और भीषण लू के कारण माैतें काफी हो रही हैं। घाट पर सामान्य दिनों की अपेक्षा लगभग चार गुना अधिक शव पहुंच रहे हैं। लकड़ी व्यापारी इस मौत के कहर की लहर में अपनी किश्ती जमा रहे हैं। यह संभव है कि अचानक मौतों की वजह से शवों की संख्या बढ़ गई हो और उसके सापेक्ष लकड़ी के भंडार कम पड़ गए हों, लेकिन मौत के इस व्यापार में शोक को थोक रूप में कैश करना मानवता को शर्मसार करने वाला है। किसी शोकग्रस्त परिवार से निर्धारित राशि से लगभग साढ़े तीन गुना, चार गुना अधिक दाम वसूलना लूट नहीं तो और क्या है।

घाट के लकड़ी व्यापारी राजेंद्र मिश्र ने बताया कि लकड़ी की खपत भी मई की अपेक्षा दोगुनी हो गई है। मार्च में 400-500 रुपये प्रति मन लकड़ी बिकती थी। अब 1500 से 2000 मन तक लकड़ी बिक रही है।

घाट पर मिले एक पुराने और बड़ेे लकड़ी व्यापारी अरुण सिंह कहते हैं कि हमारे पास इन दिनों वास्तव में लकड़ी नहीं है, खत्म हो गई है। नहीं तो हम उसी पुराने भाव में ही बेच रहे थे। लोग आपदा में अवसर खोज शोकाकुल बिलखते स्वजनों से लूट कर रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है।

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लगभग चार गुना बढ़ गई शवों की संख्या, लग रहीं कतार, घंटों प्रतीक्षा

महाश्मशान मणिकर्णिका पर जहां मार्च माह में 80 से 110 शव तक आते थे, वहीं जून आते-आते इनकी संख्या 350 से 400 तक पहुंच गई है। हरिश्चंद्र घाट पर भी सामान्य दिनों में जहां 40-50 शव दाह संस्कार के लिए पहुंचते थे, अब 200-225 तक पहुंचने लगे हैं। माना जा रहा है कि हीट स्ट्रोक की वजह से इन दिनों मौतों का आंकड़ा बढ़ गया है। ऐसे में शवों को दाह के लिए लंबी-लंबी कतारें लगने लगी हैं। लोगों को अपने साथ लाए शव के दाह संस्कार के लिए स्थान खाली होने के लिए घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।

निर्माण की वजह से भी हुई स्थान की कमी

मणिकर्णिका घाट पर इन दिनों कारीडोर निर्माण का कार्य चल रहा है। घाट को अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त कर उसे और विस्तार दिया जा रहा है। ताकि आने वाले दिनों शवदाह करने आने वाले लोगाें को असुविधा न हो। इसके चलते घाट व उसके आसपास तोड़-फोड़ चल रही है। इससे भी घाट पर शवदाह के स्थान की कमी हो गई है और लोगाें को घंटों झेलना पड़ रहा है।

हरिश्चंद्र पर पुरानी ही कीमत में मिल रही लकड़ी

हरिश्चंद्र घाट पर लकड़ी की कीमत वही है, जो पिछले माह थी। इस समय भी वहां पर 480 रुपये प्रति मन लकड़ी बिक रही है। शव दाह कराने वाले विशाल चौधरी ने बताया कि हम लोगों ने शव दाह का भी शुल्क नहीं बढ़ाया है, जबकि मणिकर्णिका पर इसके लिए भी अधिक पैसे मांगे जा रहे हैं।

जौनपुर के सदईकला निवासी रामअजोर ओझा ने कहा कि लकड़ी की मनमानी कीमत ली जा रही। इसके पीछे लकड़ी लाने में दिक्कत को कारण बताया जा रहा। अन्य सामान महंगे दिए जा रहे। इस तरह जो काम पांच-सात हजार में हो जाता था, अब 15 हजार से अधिक लग जा रहा। जगह कम होने से बारी की प्रतीक्षा करनी पड़ रही। फेरी तक नहीं लगाने दी जा रही। मोक्ष नगरी में शवदाह को आए लोगों से यह व्यवहार ठीक नहीं। प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। घाट सुविधाजनक बन रहा खुशी की बात है, लेकिन लोगों की तात्कालिक दिक्कतें तो दूर होनी ही चाहिए। 

सिकरौल निवासी सोनू ने कहा कि बीते रविवार को अपने बड़े पिता का अंतिम संस्कार करने शव को लेकर मणिकर्णिका घाट गए थे। वहां घाट के दूसरे सिरे की तरफ निर्माण कार्य होने से बहुत कम स्थान चिता लगाने के लिए था। इलेक्ट्रामिक चिमनी बंद थी जिससे शव सीढ़ियों पर पड़े थे। लंबी लाइन लगी थी। पहले यहां चिता जलाने के लिए 6000 देने होते थे, अब 8500 देने पड़े।

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