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ऋग्वेद पर शोध करने वाले दुनिया के प्रथम मुस्लिम विद्वान थे प्रोफेसर खालिद, मऊ जनपद के हमीदपुर गांव के निवासी थे

पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के छोटे से गांव हमीदपुर के मूल निवासी प्रोफेसर खान अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संस्कृत के पूर्व विभागाध्यक्ष थे। विद्वानों ने उनके निधन को संस्कृत जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया। प्रोफेसर खालिद वेदाें को सामाजिक-व्यावहारिक जीवन का सर्वश्रेष्ठ आधार मानते थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Thu, 06 May 2021 10:33 AM (IST)
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संस्कृत विद्वान प्रोफेसर खालिद बिन युसुफ खान नहीं रहे।

मऊ, जेएनएन। ऋग्वेद पर शाेध करने वाले, अनेक पुस्तकों के लेखक प्रमुख संस्कृत विद्वान प्रोफेसर खालिद बिन युसुफ खान नहीं रहे। 4 मई को को उनका निधन हो गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के छोटे से गांव हमीदपुर के मूल निवासी प्रोफेसर खान अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में संस्कृत के पूर्व विभागाध्यक्ष थे। विद्वानों ने उनके निधन को संस्कृत जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया। प्रोफेसर खालिद वेदाें को सामाजिक-व्यावहारिक जीवन का सर्वश्रेष्ठ आधार मानते थे। उन्होंने वेदों में मानव जीवन के उपयोगी सूत्रों पर विशेष अध्ययन कर उन्हें अपने शोध का विषय बनाया था।

मऊ जनपद के नदवासराय बाजार के पास हमीरपुर गांव में छह अगस्त 1961 को जन्मे खालिद खान बचपन से ही काफी मेधावी छात्र थे। संस्कृत के प्रति इनकी रुचि का आलम यह रहा कि हाईस्कूल से लगायत परास्नातक तक इन्होंने संस्कृत में सदैव विशेष योग्यता के अंकों के साथ उत्तीर्ण किया। वैदिक अध्ययन, तुलनात्मक धर्म और दर्शन में इन्हें विशेष रुचि थी। इन्होंने पीएचडी के लिए भी विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद को चुना।

1989 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरा करने के बाद विश्वविद्यालय में ही उन्हें संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति मिल गई। बाद में एसोसिएट प्रोफेसर और अंत में 15 दिसंबर 2005 में प्रोफेसर बनाए गए। वह विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें अपने जीवनकाल में अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, यथा-अलीगढ़ रत्न पुरस्कार, विविध पुरस्कार, विजय रत्न अवार्ड इत्यादि। उनकी विद्वत्ता को देखते हुए राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी उन्हें मुक्त सार्क मौलाना अब्दुल कलाम आजाद राष्ट्रीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में 1991 में प्रथम पुरस्कार प्रदान करते हुए पुरस्कृत किया था। इन्होंने अपने जीवनकाल में आठ पुस्तकों के साथ-साथ 55 शोधपत्र लिखे, अनेक सेमिनारों एवं कांफ्रेंस में वेदों पर परिचर्चाओं में भाग लिया। ‘ऋग्वेद में नीति तत्व’, ‘धर्म एवं मानवाधिकार’, ‘ऋक्चयनिका’, ‘ऋग्वेद इन्द्र सूक्तों में नीति तत्व’ इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। संस्कृत के क्षेत्र में उनके सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।

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