रवींद्रनाथ टैगोर जयंती : ‘गुरुवर’ ने गाजीपुर में गंगा तीरे बनाया था बसेरा, 1888 में आए थे
गाजीपुर के मनोरमदृश्य को देखने की ललक में खींचे चले आए राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर ने गंगा तीरे छह माह तक अपना बसेरा बनाया था। रोजाना गंगा की लहरों और आती-जाती नौकाओं को नजरों से निहारते थे।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 06 May 2022 06:41 PM (IST)
जागरण संवाददाता, गाजीपुर। यहां के मनोरमदृश्य को देखने की ललक में खींचे चले आए राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर ( जन्म 7 मई 1861, मृत्यु 7 अगस्त 1941) ने गंगा तीरे छह माह तक अपना बसेरा बनाया था। रोजाना गंगा की लहरों और आती-जाती नौकाओं को नजरों से निहारते थे। नौका डूबी और मानसी में उन्होंने गाजीपुर से जुड़े कई अनछुए पहलुओं को उकेरा भी है।
वर्ष 1818 में आर हैबर ने कोलकाता से सिलोन तक अपनी यात्रा वृतांत में गाजीपुर की रमणीयता का बखान किया था। इसके कुछ ही समय बाद ब्रिटिश लेखिका एम्मा रार्बट्स ने भी अपनी यात्रा वृतांत में गंगा किनारे बसे गाजीपुर का मनमोहक चित्रण किया था। दोनों लेखकों के यात्रा वृतांत को पढ़ने के बाद ‘गुरुदेव’ अपने को यहां आने से रोक नहीं पाए थे। इतिहासकार डा. उबैदुर्रहमान सिद्दीकी बताते हैं कि कविवर रवींद्र नाथ टैगोर गाजीपुर में छह माह रहे थे। यहां के एक छोटा सा इतिहास में लिखा है कि गाजीपुर के बारे में सुन रखा था कि वहां गुलाब के बगीचे हैं। गुलाब का मोह मुझे बहुत जोरों से खींच लाया।
अफीम फैक्ट्री में तैनात दूर के रिश्तेदार गगनचंद्र राय बड़े अफसर थे। उनकी मदद से मेरे रहने एक बड़ा सा बंगला मिल गया, जो गंगा-तीर पर ही था। रवींद्र नाथ टैगोर ने लिखा है कि गंगा में मिल भर का लंबा रेत पड़ा है औ गंगा तकट पर जौ, चने और सरसों के खेत हैं। गंगा की धारा दूर से ही दिखाई देती है। रस्सी से खींची जा रहीं नावें मंद गति से चलती हैं। घर से सटी काफी जमीन परती पड़ी है। पश्चिमी कोने पर एक बहुत बड़ा और पुराना नीम का पेड़ है। उसकी पसरी हुई घनी छाया में बैठने की जगह है। सफेद धूलों से भरा रास्ता घर के बगल से चला गया है। दूर तक खपरैल के घरों वाला मुहल्ला है। इतिहासकार बताते हैं कि अपनी मानसी रचना में गाजीपुर के प्रवास का जिक्र किया है। ‘नौका डूबी’ का पहला अध्याय की शुरुआत यहीं से की है।
कालोनी का नाम रखा रवींद्रपुरी
गाजीपुर का एक बड़ा हिस्सा को गोरा बाजार के नाम से जाना जाता है। दरअसल माना जाता है कि अंग्रेजों की छावनी रही है। गुरदेव के आगमन के बाद जहां वह रहे थे उस कालोनी का नाम रवींद्रपुरी रखा गया है। आज भी वहां एक चबूतरा है, जहां वह यदा-कदा बैठते थे। पूर्व में जिलाधिकारी राजन शुक्ला ने चबूतरे का सौंदर्यीकरण कराया था।
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