राजनारायण जयंती : जब लोकबंधु ने अपनी पत्नी के बारे में पूछा- ‘ये कौन हैं पहले इनका परिचय तो बताओ’
राजनारायण ने वर्ष 1977 में चुनाव जीतने के बाद जब उनकी पत्नी को उनके पास लाया गया तो उनका पहला सवाल था कि -‘ये कौन हैं पहले इनका परिचय बताओ’। असल समाजवाद को जीने के लिए रिश्ता-नाता तक वार दिया। क्या पत्नी क्या बेटा-बेटी सपने की तरह सबको बिसार दिया।
By Ajay Krishna SrivastavaEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Tue, 22 Nov 2022 10:46 PM (IST)
वाराणसी, कुमार अजय : ‘कबीर खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर आपन फूंकन चाहे चले हमारे साथ...’ इस फक्कड़ी दर्शन को लोक बंधु राजनारायण ने समाजवादी संघर्ष का प्रथम सूत्र मानते हुए इसे अपने कृतित्व का आधार बनाया। न सिर्फ सार्वजनिक जीवन में बल्कि निजी व्यवहार में भी इसे संस्कार रूप में अपनाया। न कोई संपत्ति न कोई बैंक बैलेंस बस चार जोड़ी कपड़ों में जीवन बिताया।
आज जब परिवारवाद का पृष्ठपोषण राजनीति का पर्याय बन गया हो। यह जानकारी अटपटी लग सकती है कि समाजवाद के इस अलमबरदार ने कर्म क्षेत्र में उतरने से असल समाजवाद को जीने के लिए रिश्ता-नाता तक वार दिया। क्या पत्नी, क्या बेटा-बेटी, सपने की तरह सबको बिसार दिया।
वरिष्ठ समाजवादी नेता राधेश्याम सिंह ने एक संस्मरण में राजनारायण (जन्म : 23 नवंबर 1917, निधन : 30 सितंबर 1986) के अक्खडी स्वभाव व घर परिवार के प्रति को रेखांकित करते लिखा है कि सार्वजनिक जीवन की व्यस्तताओं में उन्होंने घर-बार के मोह से अपने को बिल्कुल मुक्त रखा था।
इतना भी याद नहीं रहता था की अपनी पत्नी को आखिरी बार कब देखा
बताया गया है कि परिवार के प्रति उनका मोह इतना कम था कि उन्होंने इतना भी याद नहीं रहता था की अपनी पत्नी को उन्होंने आखिरी बार कब देखा था। अपने बच्चों के शादी-ब्याह तक में वे कभी शामिल नहीं हुए। जनता पार्टी सरकार में जब वे केंद्रीय मंत्री बनने के बाद जब वे रेसकोर्स स्थित बंगले में रहते थे, तो उनके बेटे ओमप्रकाश को बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में जगह मिली हुई थी।
वर्ष 1977 में चुनाव जीतने के बाद जब उनकी पत्नी को उनके पास लाया गया तो उनका पहला सवाल था कि -‘ये कौन हैं पहले इनका परिचय बताओ’। उनके नजदीकी रहे राधेश्याम सिंह बताते है कि उन्हें आज भी याद है वह वाकया जब उनके बेटे ओमप्रकाश एक मामूली से काम के लिए उनके पास गए तो कुछ कहने के पहले ही उनका सामना पिता की फटकार से हुआ।
राजनारायण ने कहा कि तुम अभी तक यहीं घूम रहे हो। इसके बाद उन्होंने एक कार्यकर्ता से टिकट कराया और बेटे को संदूकची के साथ बनारस रवाना कर दिया। आज अपने बेटे-बेटियों के लिए सुनहरे भविष्य की जमीन तैयार करने के लिए ऊंच-नीच का विचार किए बगैर एड़ी चोटी का जोर लगाने में खपे जा रहे राजनेता, क्या इन मूल्यों की महत्ता समझ सकते है?
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