पांच ग्रंथों के समावेश से सजती है जौनपुर के जंगीपुर की रामलीला, 1921 से स्थायी मंच पर होती है लीला
बक्शा विकास खंड के जंगीपुर गांव के आदर्श धर्म मंडल की ऐतिहासिक रामलीला आज भी अपनी विशिष्ट पहचान संजोए हुए है। दो सौ साल पूर्व विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला की तर्ज पर यहां भी दिन में भ्रमण कर रामलीला होती थी।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Sun, 10 Oct 2021 05:14 PM (IST)
जौनपुर, ओंकार मिश्र। बक्शा विकास खंड के जंगीपुर गांव के आदर्श धर्म मंडल की ऐतिहासिक रामलीला आज भी अपनी विशिष्ट पहचान संजोए हुए है। दो सौ साल पूर्व विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला की तर्ज पर यहां भी दिन में भ्रमण कर रामलीला होती थी। वर्ष 1921 से गांव के प्राथमिक विद्यालय के समीप बने स्थायी मंच पर अनवरत मंचन किया जा रहा है। इस रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके मंचन में पांच ग्रंथों में वर्णित प्रसंगों का समावेश किया जाता है। रामलीला की शुरुआत रविवार को मुकुट पूजन के साथ की गई। रामलीला समिति के प्रबंधक मार्कंडेय सिंह मुन्ना ने बताया कि रामलीला मंचन की सारी तैयारी पूरी कर ली गई है। रामलीला रामचरित मानस, राधेश्याम रामायण, बसुनायक, वाल्मीकि रामायण एवं रामरस सुधा जैसे ग्रंथों के समावेश से होती है जो अपने आप में अलग है।
महानगरों से आकर करते लीला का मंचन
रामलीला शुरू होने से पहले मुंबई व दिल्ली जैसे महानगरों में रोजी-रोटी के सिलसिले में रह रहे पात्र समय से पहुंचकर अपने अभिनय का पूर्वाभ्यास शुरू कर देते हैं। कलाकारों की खासियत यह है कि पात्रों का चयन व उनकी साज-सज्जा लोगों को बरबस ही आकर्षित कर लेती है जो देखते ही बनती है। मुन्ना सिंह बताते हैं कि समय के साथ पुराने कलाकारों को सहयोगी के रूप में रखकर नए कलाकारों को मौका दिया जाता है।
राम चबूतरा का है विशेष महत्वऐतिहासिक धर्म मंडल रामलीला समिति की निर्मित राम चबूतरे का खासा महत्व है। यहां विजय दशमी के दिन मेले का भी आयोजन होता है। आस-पास के कई गांवों के महिला, पुरुष व बच्चे मेले में आते हैं। मान्यता है कि इस राम चबूतरे पर कसम खाकर व खिलाकर आज भी छोटे-मोटे वाद-विवाद को खत्म करा देते हैं।
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